मुखौटे पर मुखौटा है
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
छंद-विधाता
विधा- गीतिका
मुखौटे पर मुखौटा है, कहां ढूंढूं मैं’ परछाईं।
भरी है दिल में मक्कारी, कहां ढूंढूं मैं’ सच्चाई।।
फरेबी है जहां सारा,मनुज शैतान सा दिखता ,
बुराई ही बुराई है , कहां ढूंढूं मैं’ अच्छाई।
शिथिल हैं अंग यौवन के, शिथिलता ही हुई हावी,
कमर टूटी है यौवन की, कहां ढूंढूं मैं’ तरुणाई।
लगी है सेंध सागर में, अजा पर भार है भारी,
हुआ सागर तलैया सा , कहां ढूंढूं मैं’ गहराई।
लगें हैं ढेर ल्हाशो के,चमन आंगन भी उजड़ा है,
फिजां में है गमे-आलम, कहां ढूंढूं मैं’ शहनाई।।
भरी है दिल में’खुदगर्जी,सहजता अब नहीं दिखती,
छिड़ी है जंग आपस में, कहां ढूंढूं मैं’ नरमाई।
सड़क पे गंदगी फैली, गगन में धुंध है देखो,
हुआ शामिल अटल इसमें, करेगा कौन भरपाई।