Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Sep 2020 · 6 min read

मुक्त आकाश

कहानी
********
मूक्त आकाश
“””””””””””””””’
घनघोर वारिश के बीच कच्चे जंगली रास्ते पर भीगता काँपता हुआ सचिन घर की ओर बढ़ रहा था।उसे माँ की चिंता हो रही थी,जो इस विकराल मौसम में भी दरवाजे पर टकटकी लगाये उसका इंतजार कर रही होगी।पिता की मृत्यु के बाद मां बेटा ही एक दूसरे का सहारा थे।
किसी तरह भागदौड़ कर जंगल के पार बाजार में काम तलाश कर पाया था।आठ किमी. दूर ऊपर से जंगली रास्ता।परंतु पेट की आग इस खतरे के लिए विवश करती रहती रहती है।आज के हालात में वह मजबूर था।
इसी उधेड़बुन में तेजी से बढ़ रहे कदमों के बीच एक डरी सहमी नवयौवना को इस मौसम और खतरनाक जंगल में देखकर उसके कदम ठिठक से गये।सरल संकोची स्वभाव का सचिन हिचकिया,परंतु इस हालत में वह उसे छोड़ने की गलती नहीं कर सकता था।
हिम्मत संजोकर वह उस बदहवास सी सी लड़की के पास पहुंचा ,उससे हालत के बारे में जानना चाहा, परंतु कोई उत्तर न मिलने से वह परेशान सा हो उठा।
थकहार कर उसनें उसके कंधे पर हाथ रखकर झकझोरा।परंतु प्रत्युत्तर में निराशा ही हाथ लगी।
उधर अंधेरा बढ़ता जा रहा था, जिससे उसकी चिंता और बढ़ रही थी।
फिर एकाएक उसनें लड़की को कंधे पर उठाया और सावधानी से घर की ओर बढ़ चला।
भगवान का शुक्र ही था कि थोड़ा देर से ही सही वह सही सलामत घर पहुंच गया।
घर पहुंचते ही माँ ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
सचिन माँ से बोला-तू परेशान मत हो,पहले तू इस लड़की के कपड़े बदल, तब तक मैं जल्दी से कपड़ें बदल कर काढ़ा बना लेता हूँ।शायद तब तक ये भी कुछ बोलने बताने की स्थिति में आ जाय।
उसकी माँ ने किसी तरह उसको अपने कपड़ें पहनाये फिर खुद ही मिट्टी के पात्र में आग जलाकर इस उम्मीद में ले आई कि शायद आग की गर्मी से उसकी चेतना आ जाये।
तब तक संजय तीन गिलास में काढ़ा बना कर ले आया।
संजय की मां उस लड़की को बड़े लाड़ से काढ़ा पिलाने लगी।तब तक संजय ने मां को पूरी बात बता डाला और चिंतित भाव सेे पूछा-अब क्या होगा मांँ?
चिंतित तो माँ भी थी,परंतु बेटे का हौसला बढ़ाते हुए दुलराया।
देख बेटा हम गरीब जरूर हैं।परंतु हमारा जमीर जिंदा है।
सुबह प्रधान जी को बताते हैं,उनसे मदद माँगेंगे,फिर हम भी इसके परिवार का पता लगाते रहेंगे।
दुनिया समाज के हिचकोलों के बीच झूलता संजय बोला-फिर भी माँ अगर कुछ पता न चला तब?
देख बेटा अगर तुझे एतराज नहीं होगा तो मैं सबके सामने इसे अपनी अपनी बेटी बना कर अपने आँचल की छाँव दूंगी।
तेरे फैसले पर मैनें कभी एतराज किया क्या?काश ऐसा हो सकता, तो बीस सालों से मेरी कलाई राखी के धागों से खिल जाती।
अच्छा बेटा अब सो जा।जैसी प्रभु की इच्छा।सुबह देखा जायेगा।मैं इसी के पास हूँ,पता नहीं कब होश में आ जाय बेचारी।
ठीक है माँ,इसे होश आये तो मुझे जगा लेना।अंजान जगह को देखकर परेशान हो सकती है।
इतना कहकर संजय सोने चला गया,परंतु अंजान जवान लड़की को लेकर उठ रहे सवालों ने उसकी माँ की आँखों की नींद उड़ा दी,वो कल के बारे में अधिक परेशान थी,ऊपर से लड़की का अब तक होश में न आना उसे और बेचैन कर रहा था।
रात में उस लड़की को होश आ गया, संजय की माँ उसके पास ही थी।
उसने सबसे पहले यह कौन सी जगह है ,वह यहां कैसे आयी?आप कौन हैं?मेरे कपड़े कहाँ हैं?ये कपड़े मुझे कौन पहनाया?जैसे प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
संजय की मां ने सब कुछ उसे बता दिया।जब उसे तसल्ली हो गई तब उसनें अपना नाम रमा बताया।फिर सब कुछ अपने बारे में सब कुछ कह डाला और रो पड़ी।संजय की माँ ने उसे हिम्मत बंधाई ,आँसू पोछें और अपने आँचल में समेट लिया।
संजय की आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था।वह भी बाहर लेटे हुए रमा के बारे में ही सोच रहा था।तभी उसे महसूस हुआ कि माँ किसी से बात कर रही हैतो वह उठकर अंदर आया।
माँ उसे देखकर बोली-इसका नाम रमा है,तू इसे नल पर ले जा।ये हाथ मुँह धो ले।फिर कुछ खा लेऔर तू भी कुछ खा ले। फिर बात करेंगे, बेचारी भूखी होगी।पता नहीं कब से भूखी होगी ।
रमा बोली-नहीं माँ,मुझे भूख नहीं है।
संजय की माँ ने रमा से कहा-देख बेटी!तेरी चिंता में मेरे बेटे ने भी कुछ नहीं खाया है।मैं किसी तरह एक रोट खा पाई हूँ।दवा जो खानी थी।
वैसे भी घर में कोई भूखा रहे ,ये ठीक नहीं लगता।
फिर माँ की आज्ञानुसार संजय ने रमा को नल दिखा दिया।
रमा ने अपने हाथ पैर मुँह को धोया और कमरे में आ गई।संजय ने खाना गर्म कर लिया था।दोनों ने खाना खाया।
अच्छा बेटा, अब तू जाकर सो जा,हम दोनों भी सो जाते हैं।
संजय उठकर जाने को हुआ तभी रमा बोल पड़ी -भैया, थोड़ा बैठो!और बताओ कि आपने मुझे मरने भी नहीं दिया।पर अब मेरा क्या होगा?
संजय बोला-देखो,तुम अपने चाचा का डर दिल दिमाग से हटा दो।बस ये बताओ अब तुम क्या चाहती हो?
रमा ने कहा- मै क्या कहूँ?मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
संजय ने माहौल हल्का करते हुए कहा-तो मेरी बात सूनो।अब से यह घर तेरा है।मेरी माँ अब से तेरी भी माँ है।तू मेरी बहन है।अब तुझे डरने या चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।
जी!रमा सिर्फ़ इतना ही बोल पाई और रो पड़ी।
संजय और उसकी माँ ने उसे रोने दिया।
थोड़ी देर तक रमा रोती रही ,फिर शांत हुई,संजय ने उसके आँसू पोंछे और उसके सिर पर हाथ फेरा तो वह संजय से लिपटकर फिर सिसक उठी।
संजय उसे अपने से अलग करते हुए बोला-अब अगर तू रोई तो मैं फिर तूझे जंगल में छोड़ दूंगा।
रमा ने जल्दी से अपने आँसू पोंछे।उसे डर सा लगा कि संजय सचमुच उसे फिर जंगल में न छोड़ दे।
बातों के क्रम में कब सुबह हो गई पता ही न चला ।दैनिक क्रिया और चाय पीकर संजय प्रधान काका और कुछ और लोगों को लेकर आ गया।
सभी ने रमा की बात ध्यान से सुनी।फिर प्रधान काका ने रमा से कहा-देख बेटा!अगर तू यहाँ रहना चाहती है तो ठीक है ,अन्यथा हम तुझे तेरे घर भिजवायेंगे।
रमा रूआंसी सी बोल पड़ी -किस घर की बात कर रहे हैं आप, जहाँ मेरे साथ जानवरों सा सूलूक होता है,माँ से पूछिये मेरे शरीर से निशान मेरे साथ हुए हैवानियत की सारी दास्तान बता रहे हैं।उस घर जाने से अच्छा है कि आप लोग मेरा गला ही घोंट दो।काश मेरे माँ बाप जिंदा होते।तो शायद..।
रमा की पीड़ा भरी दास्तान सुन प्रधान काका की आंखें नम हो गई।उन्होंने साथ के लोगों से कुछ बात की ,फिर बोले-देखो रमा बिटिया, अभी तक जो हुआ उसे भूल जाओ।आज से तुम हमारी जिम्मेदारी हो,बेटी हो।इस गाँव का हर घर तुम्हारा अपना है,हम सब तुम्हारे अपने हैं।तुम्हारे माँ बाप की कमी तो पूरी नहीं हो सकती, लेकिन भरोसा रखो कि उनकी कमी हम तुम्हें महसूस भी नहीं होने देंगें।
तुम्हारे हिस्से के खेत की खेती हम सब मिलकर करेंगे, उससे जो पैसा मिलेगा उसे तुम्हारे नाम जमा करायेंगे।वो सारा पैसा तेरी शादी में काम आयेगा, जो तेरे माँ बाप का तेरे लिए आशीर्वाद होगा।
अपने चाचा का डर निकाल दे,अब भूलकर भी वो तेरे पास आने की हिम्मत नहीं करेंगे।
बोल बेटा-और कुछ?
नहीं काका,जब इतने सारे लोगों की छाँव है फिर मैं क्यों डरूँ?रमा बोली
और हाँ,अगर तू संजय के घर न रहना चाहे तो बोल दे।प्रधान काका ने रमा से पूछा
रमा झट से बोल पड़ी-नहीं काका!मैं माँ और भाई के साथ ही खुश रहूँगी, बस आप लोग अपना आशीर्वाद बनाए रखिएगा ।इतना कहते हुए रमा ने प्रधान काका और अन्य लोगों के पैर छूए। सभी ने उसे आशीर्वाद दिया।
अब रमा खुश थी,जैसे उसे मुक्त आकाश मिल गया हो।
?सुधीर श्रीवास्तव

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 373 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
बाग़ी
बाग़ी
Shekhar Chandra Mitra
*भीड़ में चलते रहे हम, भीड़ की रफ्तार से (हिंदी गजल)*
*भीड़ में चलते रहे हम, भीड़ की रफ्तार से (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
भँवर में जब कभी भी सामना मझदार का होना
भँवर में जब कभी भी सामना मझदार का होना
अंसार एटवी
बार बार बोला गया झूठ भी बाद में सच का परिधान पहन कर सच नजर आ
बार बार बोला गया झूठ भी बाद में सच का परिधान पहन कर सच नजर आ
Babli Jha
World stroke day
World stroke day
Tushar Jagawat
सुख दुःख
सुख दुःख
विजय कुमार अग्रवाल
फटा जूता
फटा जूता
Akib Javed
कालजयी जयदेव
कालजयी जयदेव
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
नव संवत्सर
नव संवत्सर
Manu Vashistha
दिल का रोग
दिल का रोग
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
स्त्री:-
स्त्री:-
Vivek Mishra
इम्तहान ना ले मेरी मोहब्बत का,
इम्तहान ना ले मेरी मोहब्बत का,
Radha jha
विश्वेश्वर महादेव
विश्वेश्वर महादेव
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
Khuch rishte kbhi bhulaya nhi karte ,
Khuch rishte kbhi bhulaya nhi karte ,
Sakshi Tripathi
सेवा या भ्रष्टाचार
सेवा या भ्रष्टाचार
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
होली गीत
होली गीत
umesh mehra
*मां चंद्रघंटा*
*मां चंद्रघंटा*
Shashi kala vyas
हमारे जीवन की सभी समस्याओं की वजह सिर्फ दो शब्द है:—
हमारे जीवन की सभी समस्याओं की वजह सिर्फ दो शब्द है:—
पूर्वार्थ
⚘️🌾गीता के प्रति मेरी समझ🌱🌷
⚘️🌾गीता के प्रति मेरी समझ🌱🌷
Ms.Ankit Halke jha
तेरी सुंदरता पर कोई कविता लिखते हैं।
तेरी सुंदरता पर कोई कविता लिखते हैं।
Taj Mohammad
सोच का आईना
सोच का आईना
Dr fauzia Naseem shad
शुभ रात्रि मित्रों.. ग़ज़ल के तीन शेर
शुभ रात्रि मित्रों.. ग़ज़ल के तीन शेर
आर.एस. 'प्रीतम'
मोबाइल
मोबाइल
लक्ष्मी सिंह
2686.*पूर्णिका*
2686.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कितना भी दे  ज़िन्दगी, मन से रहें फ़कीर
कितना भी दे ज़िन्दगी, मन से रहें फ़कीर
Dr Archana Gupta
SUCCESS : MYTH & TRUTH
SUCCESS : MYTH & TRUTH
Aditya Prakash
चिड़िया
चिड़िया
Dr. Pradeep Kumar Sharma
एक समय बेकार पड़ा था
एक समय बेकार पड़ा था
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
शहीदों के लिए (कविता)
शहीदों के लिए (कविता)
दुष्यन्त 'बाबा'
गुलाम
गुलाम
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
Loading...