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23 Nov 2016 · 1 min read

मुक्तक

“आखिर कोई कितना रोए
अश्रु से दुख क्यों भिगोए
भारी होते भीग भीग कर
दुखड़े हैं रूई के फोहे

चलो हँसी की हवा चलाएँ
भीगे हैं गम उन्हें सुखाएँ
मन की पीड़ा हल्की होगी
तितली जैसे पंख फैलाएँ”

✍हेमा तिवारी भट्ट✍

Language: Hindi
2 Comments · 462 Views
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