मुक्तक – हूर-ए-ज़न्नत भी तेरे नूर पे बेनूर हो जाए
हूर-ए-ज़न्नत भी तेरे नूर पे बेनूर हो जाए।
रब भी तरास कर तुझे देखते मग़रूर हो जाए।।
कारीगिरी से रब ने ऐ खूबसूरत रूप बख्शा है।
आइना देखते ही तुमको न चकनाचूर हो जाए।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’
हूर-ए-ज़न्नत भी तेरे नूर पे बेनूर हो जाए।
रब भी तरास कर तुझे देखते मग़रूर हो जाए।।
कारीगिरी से रब ने ऐ खूबसूरत रूप बख्शा है।
आइना देखते ही तुमको न चकनाचूर हो जाए।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’