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22 Mar 2018 · 1 min read

मुक्तक

_________मुक्तक त्रयी——–

नफ़रतें आबाद कर ज़ालिम बनाती रोटियाँ।
भूख से तड़पा यहाँ चोरी करातीं रोटियाँ।
धर्म का ले नाम रोटी सेकते नेता यहाँ-
पाप दुनियाँ से करा सबको लुभाती रोटियाँ।1

कर मुहब्बत तू खुदा से जीव तुझको छल रहा।
रूप- दौलत, मोह-माया में फँसा क्यों जल रहा।
आदमी ही आदमी को खा रहा संसार में-
साधना, तप, योग करले कर्मयोगी फल रहा।2′

रीढ़ की हड्डी पिता औलाद का ये पाँव है।
स्वेद संतति सींचता वट वृक्ष शीतल छाँव है।
नींव का आधार बनकर ढो रहा है बोझ ये-
वारता तन-मन जिताता हारकर हर दाँव है।3

#स्वरचित
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी, उ. प्र.

Language: Hindi
274 Views
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