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28 Apr 2021 · 53 min read

मुक्तक 2021-22

आज़ाद गज़लें संग्रह

पत्थर पे फूल खिला सकते हो क्या
सोई हुई ज़मीर जगा सकते हो क्या ।
बड़ा गरूर है अपने तरक़्क़ी पर तुम्हें
मरे हुए को भी जिला सकते हो क्या ।
बड़े आए हो यहाँ तुम मसीहा बनकर
पत्थरों को भी पिघला सकते हो क्या ।
किस वहम-ओ-गुमान में जी रहें हो
वक़्त को बेवकूफ बना सकते हो क्या।
अज़ीब अहमक हो यार,अजय तुम भी
गजलों से गरीबी मिटा सकते हो क्या।
-अजय प्रसाद

लोग यहाँ बेमौत मर रहे हैं
और आप शायरी कर रहे हैं ।
कमाल के शख्स हैं आप भी
जिम्मेदारियों से मुकर रहे हैं ।
इतने खुदगर्ज़ कैसे हो गए
कि संकट में भी संवर रहे हैं ।
इस कदर बेरूखी हालात से
हो कैसे आप बेखबर रहे हैं ।
ज़रा अपने पूर्वजों की सोंचे
क्या कभी लोग बेहतर रहे हैं ।
अब दिमाग मत चाटो अजय
हमारे दिल क्या पत्थर रहे हैं ।
अजय प्रसाद

चुभने लगे हैं अब तो गुलाब भी
जलाते हैं रातों को माहताब भी ।
नींद जब आती है तरस खा कर
सो चुके होते हैं तब ख्वाब भी ।
सोंच गर सड़ जाए सच्चाई की
खोखले लगतें तब इन्क़लाब भी।
बदल कर रख देगी वबा ज़रुर
इंसानियत की तरह इंतखाब भी ।
मेरा क्या है अजय रहूँ या न रहूँ
दुनिया रहेगी नेक और खराब भी ।
-,अजय प्रसाद

भूखे पेट तो प्यार नहीं होता
खाली जेब बाज़ार नहीं होता ।
पढ़ा-लिखा के घर पे बिठातें हैं
यूँही कोई बेरोज़गार नहीं होता ।
बेलने पड़ते हैं पापड़ क्या क्या
आसानी से सरकार नहीं होता ।
आजकल के बच्चों से क्या कहें
सँग रहना ही परिवार नहीं होता ।
दिल में गर खुलूस न हो अजय
तो फ़िर सेवा,सत्कार नहीं होता।
-अजय प्रसाद

जी रहें हैं वो गरीबों की हाय लेकर
जैसे खुश होता है बच्चा टॉय लेकर।
जानतें हैं नंगे आएं हैं नंगे ही जाएंगे
भला करेंगें क्या अकूत आय लेकर ।
ये तुम जो दिनरात जुगाड़ में लगे हो
क्या होगा ज़िंदगी भर उपाय लेकर ।
अमीरी-गरीबी हैं एक दूजे के पूरक
संबल का गुजारा है असहाय लेकर ।
शायद ज़िंदादिली इसी को कहते हैं
ज़िंदगी हरहाल जीए एन्जॉय लेकर ।
-अजय प्रसाद

मुझें साहित्यकार समझने की आप भूल न करें
उबड़-खाबड़,कांटेदार रचनाओं को फूल न कहें।
मेरी रचनाएँ बनावट और सजावट से हैं महरूम
कृपया अलोचना करें मगर ऊल-जुलूल न कहें ।
हाँ चुभते ज़रूर हैं चंद लोगों की नज़रों में यारों
हक़ीक़त में हैं नागफनी ,इन्हें आप बबूल न कहें।
कुछ तो बदलाव लाया जाए परंपरागत लेखन में
सदियों से रहा यही है साहित्य का उसूल न कहें ।
बड़े आए अजय तुम साहित्य के सुधारक बनकर
बहुत सह लिया हमनें आपको,अब फ़िज़ूल न कहें
-अजय प्रसाद

काटते हैं मुसीबतों का पहाड़ ‘मांझी’ जैसे
मसअले उजाड़ जातें हैं हौसले,आंधी जैसे ।
जालिमों कर लो ईज़ाद नए ज़ुल्मो सितम
ऊब गये हम लड़ते-लड़ते अब ‘गांधी’जैसे ।
खुदा भी मेहरबाँ है बिलकुल उसी तरह से
होतें महलों में बसे शहंशाहों के बांदी जैसे ।
गमों के गिर गए हैं दाम गरीबी देखके यारों
खुशियाँ हो गई महंगी सोने और चांदी जैसे।
अफ़सोस अजय तेरा ज़ेहनो ज़मीर ज़िंदा है
काश! जी लेता तू भी आधी आबादी जैसे
-अजय प्रसाद

बात को बतंगड़ बनाना ,कोई आप से सीखे
बेशर्मी की हद तक जाना कोइ आप से सीखे ।
यूँ तो कितने आये और गए सियासत में हुजूर
मौके का फायदा उठाना कोई आप से सीखे ।
हर्रे लगे न फिटकरी,मगर रंग चोखा हो जाए
भई , जनता को भरमाना कोई आप से सीखे।
मिट्टी के माधो बना कर रखा है विपक्षियों को
सियासी पैतरें आजमाना कोई आप से सीखे।
तुम भी कम नहीं हो लंबी हाँकने में अजय
घटिया शायरी पे इतराना कोई आप से सीखे ।
-अजय प्रसाद

खुद को तू खुदगर्ज होने से बचा
बहती गंगा में हाथ धोने से बचा।
भले लोग समझे पत्थर दिल तुझे
मगर घड़ियाली रोना रोने से बचा।
देख खूबसूरती होती है इक बला
अपनी आँखों को खोने से बचा ।
सादगी भी सितम ढाती है कभी
खुद को ही शिकार, होने से बचा ।
दिलो-दिमाग के झगड़े में अजय
अपनी लुटिया को डुबोने से बचा।
-अजय प्रसाद

बेहद मामूली और गौण हूँ
इल्म है मुझे की मैं कौन हूँ ।
मुझे पता है औकात मेरी
इसलिए तो रहता मौन हूँ ।
गलतफहमि आप न पालें
मैंने कब कहा,मै फिरौन हूँ ।
वक्त बहुत खुश है मुझ से
नज़रों में उसके मैं गौण हूँ ।
दहशत में हैं लिखने वाले
क्या मैं साहित्यक डौन हूँ ?
-अजय प्रसाद

भूला दिया एहसान,कोई बात नही
गर है यही पहचान,कोई बात नही ।
दुख होता है ,लोगो के खुदगर्ज़ी पे
मतलबी है इन्सान,कोई बात नही ।
वेबजह ही मैने ख्वाब देख डाले कई
दिल किया परेशान ,कोई बात नही ।
सारे इल्जाम भी मुझपे लगाए तुमने
हुए इतने मेहरबान ,कोई बात नही ।
जीना है अजय तुझे फना होने तक
है उनका ये फरमान, कोई बात नही ।
-अजय प्रसाद

दिल लगाने की बात न कर
इस जमाने की बात न कर ।
कौन कब धोखा दे दे यहाँ
दोस्ताने की बात न कर
मेरी किस्मत में है ही नही
घर बसाने की बात न कर ।
भूल जाते हैं लोग खुदा
आजमाने की बात न कर ।
तेरी महफिल में हम भी तो हैं
उठ के जाने की बात न कर ।
रौशनी गर मंजूर नहीं
घर जलाने की बात न कर ।
रूठ कर मैं जाऊँगा कहाँ
तू मनाने की बात न कर ।
-अजय प्रसाद

साहित्य की दीवार में सेंध लगा रहा हूँ
जबरन अपने लिए मैं जगह बना रहा हूँ ।
बड़े अकड़ थे सम्पादकों के यारों पहले
आजकल मैं उनको ठेंगा दिखा रहा हूँ ।
भला हो जमाना-ए- सोशल मीडिया का
खुद अपनी गज़लें पोस्ट कर पा रहा हूँ ।
फ़ेसबुक,ई-पत्रिकाएं,कई बड़े समूहों में
अब तो लाइव मुशायरों में भी आ रहा हूँ ।
नहीं लगता अजय तुम्हे ये कहना होगा
अपने को ही मुँह मियाँ मिट्ठू बना रहा हूँ ।
-अजय प्रसाद

हम से तेरे ये नाज़ो नखरें उठाए न जाएंगे
गली में तेरे मुझसे चक्कर लगाए न जाएंगे।
कबूल हूँ गर इश्क़ में तो तू खुद आके मिल
इस कदर भी आशिक़ी में झुकाए न जाएंगे ।
हाँ तू है बेहद खूबसूरत तो बता मै क्या करूँ
तारीफों के पुल हमसे और बनाए न जाएंगे ।
मेरी भी कुछ हैसियत तो होगी तेरी नज़रों में
रिश्ते गुजरे वक्त की तरहा निभाए न जाएंगे।
फारिग हो जा मुझसे या फना कर दे मुझे तू
बेबज़ह तेरे लिए दुसरे तो ठुकराए न जाएंगे ।
-अजय प्रसाद

प्रेम में प्रकृति से यूँ मुहँ मत मोड़ो
चाँद,सूरज को बख्शो,तारे मत तोड़ो ।
बादलों को रहने दो अपनी जगह
उन्हें हुस्न के ज़ुल्फ़ों से मत जोड़ो ।
फूल,कलियाँ हैं बागों की अमानत
बहारों से सबका रिश्ता मत तोड़ो।
बिजली,बारिश,सावन की घटा को
कृपा करके अपने हाल पर छोड़ो ।
प्रेम में प्रकृति ने लुटा दिया खुद को
या खुदा!उसे अब और मत तोड़ो ।
प्रेम में सिर्फ़ सेवा औ त्याग चाहिए
जिस्म के लिए रूह तो मत तोड़ो ।
बस बहुत हो गया अजय बकबक
खामखाह अपना सर मत फोड़ो।
-अजय प्रसाद

देखें ज़रा क्या पैगाम आता है
ज़हर या फिर ज़ाम आता है ।
चराग जो जला है आंधियों में
हवाओं से भी सलाम आता है ।
जाने क्यों जल जातें हैं लोग
ज़िक्र में जब वो नाम आता है ।
सुख में सब आते हैं बिन कहे
दुख में बस आँसू काम आता है ।
तेरी शायरी को अजय क्या कहें
जैसे मेढकी को जुकाम आता है ।
-अजय प्रसाद

विज्ञापनों के बहकावे में न आ
बेसिर-पैर के दिखावे में न आ ।
जो गुज़ार चुके हैं पूछ ले उनसे
यूँ ज़िंदगी के छ्लावे में न आ ।
हमेशा तबाही लेकर ही आती है
इस तकनीकि भूलावे में न आ ।
गल्तियों से सबक लेना तू सीख
फ़िर से उनके दोहरावे में न आ ।
हाँ वक्त देता है मौका सुधरने का
चका चौंध के शोरशरावे में न आ ।
-अजय प्रसाद

क्यों है नारा “बेटी बचाओ ”
क्यों नहीं”बेटों को समझाओ “।
आखिर कर बेटियाँ बचे कैसे
यही बेटों को भी तो बताओ ।
जब हक़ है दोनों के बराबर
तो प्यार दोनों पर लुटाओ ।
बेखौफ़ होके ज़िंदगी गुजारे
भई,ऐसा भी माहौल बनाओ ।
गर इतना-सा भी न कर सके
तो फिर ये नारा मत लगाओ ।
-अजय प्रसाद

शादी से बड़ी कोई भूल नहीं है
और ये सच,अप्रैल फूल नहीं है ।
खुश वही है रहता शादी के बाद
जिसके लिए पत्नी बबूल नहीं है ।
जींदगी बेवकूफ बनाती है रोज़
यहाँ कोई वार्षिक उसूल नहीं है।
घर,दफ़तर,बाज़ार या रिश्तेदार
कौन देता यहाँ पर हूल नहीं है ।
बंद करो न अजय ये रोना-धोना
हमारे पास वक्त फिजूल नहीं है ।
-अजय प्रसाद

तोड़ दिया दिल मेरा उसने खुद से अटैच करके
छोड़तें है क्रिकेट में फिल्डर ज्यूँ बॉल कैच कर के ।
इस कम्बखत इश्क़ ने मुझे अब कहीं का न छोड़ा
दिल और दिमाग को रख दिया है डिटैच कर के।
मंदिर,मस्जिद,चर्च औ गुरुद्वारे से भी खफ़ा हूँ मैं
क्यों मेरी जोड़ी बनाई गई थी मिस मैच कर के ।
अच्छा भला जी रहा था मैं बेहद खुशी से ज़िंदगी
रुलाया गया है मुझे,गमों को मुझ से पैच करके ।
ये क्या बात है कि उटपटांग लिखने लगे अजय
उसके मुहल्लेवाले कहीं रख न दे डिस्पैच कर के ।
-अजय प्रसाद

जमाना है अक़्सर उन्हें भूल जाता
जो राहों में सब के है कांटे बिछाता ।
भलाई भी तो हद से ज्यादा बुरी है
जहाँ झोंक आँखों में है धूल जाता ।
दग़ा दोस्त ही जब करें दोस्ती में
है जीगर में चुभ तब कोई शूल जाता ।
न हो बाग पे गर नज़र बागवाँ की
उदासी में मुरझा है हर फूल जाता ।
अजय अब तू भी भूल जा ये शराफ़त
भले को है समझा यहाँ शूल जाता ।
-अजय प्रसाद

पिता
शब्द नहीं परिवार पिता है
खामोशी से प्यार पिता है ।
जग जाहिर है माँ की ममता
मगर असली आधार पिता है ।
धूप,बारिश,सर्दी से बचने को
जैसे छत और दीवार पिता है ।
पीढ़ी दर पीढ़ी की निशानी
रीति-रिवाज संस्कार पिता है ।
हो हैसियत कुछ भी जहां में
बच्चों के लिए संसार पिता है ।
माँ की तारीफें करता हर कोई
पर असल में हकदार पिता है ।
-अजय प्रसाद

आईने अब मुझे चिढ़ाने लगे
हो गया बूढ़ा मैं , बताने लगे ।
क्या करूँ तू बता मैं अब ज़िंदगी
अक़्स अपने ही जब पुराने लगे ।
खौफ़ से रौशनी में जाता नहीं
साया मेरा न अब डराने लगे ।
उम्र का ही असर लगे है मुझे
झुर्रियां चेह्रे पे नज़र आने लगे
चल अजय मान ले हकीक़त तू भी
तेरे अपने भी अब भुलाने लगे ।
-अजय प्रसाद

मुझे नाकाम रहने दे
अभी गुमनाम रहने दे ।
भले नफरत से देखे वो
मुझे बदनाम रहने दे ।
मेरी तकलीफें तो खुश हैं
अभी आराम रहने दे ।
पढूंगा मैं भी ,आँखों में
तेरा पैगाम रहने दे ।
ज़रा जी लूँ मैं गफ़लत में
अभी तू ,जाम रहने दे ।
खुशी में तेरी, खुश हूँ मैं
मुझे बे-नाम रहने दे
अजय तू भूल जा सब कुछ
हसीं ये शाम रहने दे ।
-अजय प्रसाद

टूट कर जो बिखर जाते हैं
क्या पता वो किधर जाते हैं ।
दिल में वो रहते हैं फ़िर कहाँ
जो नज़र से उतर जाते हैं ।
गैर कब तक भला साथ दे
अपने ही जब मुकर जाते हैं ।
पूछते हैं कहाँ हाल अब
दूर से ही गुजर जाते हैं ।
देखा है मैंने लोगों को भी
सब गवां कर सुधर जाते हैं ।
-अजय प्रसाद

गजलों को मेरी तू तहजीब न सीखा
मतला, मकता, काफ़िया, रदीफ न सीखा ।
कितनी बार गिराया है मात्रा बहर के वास्ते
कैसे लिखते हैं दीवान ये अदीब,न सीखा ।
देख ले शायरी में हाल क्या है शायरों का
किस तरह रह जाते हैं गरीब न सीखा ।
महफ़िलें, मुशायरें, रिसाले मुबारक हो तुझे
मशहूर होने की कोई तरक़ीब न सीखा ।
गुजर जाऊँगा गुमनाम, तेरा क्या जाता है
शायरी मेरी है कितनी बद्तमीज़ न सीखा ।
हक़ीक़त भी हक़दार है सुखनवरी में अब
ज़िक्रे हुस्नोईशक़, आशिको रकीब न सीखा ।
मेरी आज़ाद गज़लों पे तंज करने वालों
मुझे कैसे करनी खुद पे ,तन्कीद न सीखा ।
पढ़तें है लोग मगर देते अहमियत नहीं
अजय यहाँ है कितना बदनसीब न सीखा
-अजय प्रसाद

लम्हा गर हूँ
मुख्त्सर हूँ
इश्क़ से मैं
बे-खबर हूँ ।
हुस्न वालों
इक बशर हूँ
रास्तों का
हम सफर हूँ ।
आज भी मैं
दर ब दर हूँ ।
देख तो ले
किस कदर हूँ ।
हाँ ‘अजय’ मैं
हार कर हूँ ।
-अजय प्रसाद

जैसी नियत
वैसी वरकत ।
छोड़ नफ़रत
कर मुहब्बत ।
दिल लगा कर
पाले जन्नत ।
धर्म ,मज़हब
बस है फितरत ।
आओ हम तुम
जोड़े रगवत ।
मिल के रहना
अपनी चाहत।
हम हैं जिंदा
उसकी रहमत ।
ज़िंदगी क्या
रब की नेमत ।
फ़िर अजय तू
कर ले उल्फत ।
-अजय प्रसाद

गज़ल
उम्रभर दर ब दर
ज़िंदगी बेखबर ।
मंजिलें हैं जुदा
रास्ते हम सफर ।
मन्नते है खफ़ा
हर दुआ बेअसर ।
क्या पता क्या खता
चल रहा शूल पर ।
सच बता क्या हुआ
क्या मैं था भूल पर ।
जुर्म है इश्क़ भी
सोंच कर प्यार कर
हार सकता नहीं
है अजय, तू अगर ।
-अजय प्रसाद

वक्त कि मार से तुम बच पाओगे क्या
जो अब तक नहीं हुआ ,कर पाओगे क्या
हो इतने मुतमईन कैसे अपनी वफ़ात पे
जिम्मेदारीयों से यूँही निकल जाओगे क्या
वादा किया था साथ निभाने का उम्रभर
तो मुझको आजमाने फिर आओगे क्या
माना कि हक़ीक़त मे ये मुमकिन ही नहीं हैं
मगर ख्वाबों मे आने से मुकर जाओगे क्या
तुम भी किस बात पे अड़ के बैठे हो अजय
उसने ने कह दिया नही तो मर जाओगे क्या
-अजय प्रसाद
मुतमईन =satisfied मुमकिन =possible
वफ़ात =death मुकर =disobey

जलियाँवाला बाग
चलिये मान लिया की बेहद क्रूर था जनरल डायर
मगर वो गोलियाँ चलाने वाले क्या नहीं थे कायर ?
क्या निहत्थे मासूम लोगों को उन्होँने नहीं देखा ?
क्या उनके दिल में ज़रा सा भी रहम नहीं पनपा ?
बस एक गोली काफी था डायर को मारने के लिए
क्या कोई नहीं था गलती उसकी सुधारने के लिए?
काश कोई होता अगर भगत जैसा माई का लाल
कसम से कहता हूँ कि नहीं हमें होता आज मलाल।
बच जाती तब शायद हजारों मासूम लोगों की जानें
न होता वो जलियाँवाला बाग हत्याकांड आप मानें।
-अजय प्रसाद

मुक्तक संग्रह

क़त्ल का इलज़ाम भी मक़्तूल पे गया
सबूत औ दलीलें सारी फ़िज़ूल मे गया ।
मुंसिफ भी मेहरबाँ हुआ मुजरिम पे यूँ
खिलाफ़ वो अपने ही उसूल के गया ।
-अजय प्रसाद

अपार्टमेन्ट में तुम आँगन तलाश करते हो
यानी पतझड़ में सावन तलाश करते हो।
जंगलों को काट कर घर सजाया है तुमने
आज तुम ये आक्सीजन तलाश करते हो ।
-अजय प्रसाद

दिखाया जो हाथ मैंने नज़ूमी से
कहा,लकीरें तो खफ़ा हैं तुम्ही से ।
कोई कसूर नहीं है तक़दीर का भी
बेड़ा गर्क करते हो खुद शायरी से ।
-अजय प्रसाद

जब होनी नहीं कबूल तो दुआ क्या करूँ
हैं खड़े मेरे खिलाफ गर खुदा , क्या करूँ ।
पहले जैसी वो रगबत भी नहीं रही यारों
खुश तो दूर,रहतें नहीं हैं खफ़ा क्या करूँ ।
-अजय प्रसाद

मुझे तू और तबाही के मन्ज़र न दिखा
खोखले इन्क़लाब के समंदर न दिखा
भला होगा खौफज़दा अब क्यों कोई
मर चुका है ज़मीर उसे खंजर न दिखा
सदमे में जम्हुरीयत है जहालत देखकर
सियासत में है कौन सितमगर न दिखा ।
-अजय प्रसाद

ज़िंदगी आजकल बे-रहम हो रही है
इंसानियत भी अब खतम हो रही है ।
प्यार, दोस्ती, एहसान,वफ़ा, हैं खफ़ा
अहमियत इन सबकी कम हो रही है ।
-अजय प्रसाद

लाठी में उसकी कोई आवाज़ नहीं होता
बगैर उसके रज़ामंदी के आगाज़ नहीं होता ।
माँ-बाप की दुआ,रब की रहमत भी होती है
फ़कत हौसले से यहाँ परवाज़ नहीं होता ।
-अजय प्रसाद

एक दिन गुमनाम ही जहां से गुजर जाऊँगा
ज़िंदगी तेरी नज़रों से जब मैं उतर जाऊँगा ।
कुछ लोग आएंगे मेरी मैयत पे आसूँ बहाने
ओढ़ कफ़न अपने-वजूद से मुकर जाऊँगा ।
-अजय प्रसाद

शायरी में जान ,डाल रहा हूँ मैं
हक़ीक़ते जहान डाल रहा हूँ मैं ।
हुस्नोईश्क़ पे लिखनेवाले हैं ढेरों
बेबसों की दास्तान डाल रहा हूँ मैं।
-अजय प्रसाद

साहित्यकार आप बड़ा सोफिस्टिकेटेड है
रचनाएँ भी आपकी बहुत शेलीब्रेटेड हैं ।
मेरी इतनी ज़ुर्रत कहाँ लूँ आप से पंगा
आप तो इस फील्ड में बेहद डॉमिनेटेड हैं ।
-अजय प्रसाद

चलो माना ‘वो’ तुम्हें पसंद नहीं
मगर क्या तुम भी गैरत मंद नहीं।
नुक्स निकाल के खुश मत रहना
बुराई करने से तो होगे बुलंद नहीं ।
पेश तो करो नई मिसाल तुम कोई
बस बन जाना कोई जयचन्द नहीं।
-अजय प्रसाद

जल रही है ये जनता दिलजले की तरह
हैसियत हैं जैसे बीड़ी, अधजले की तरह ।
सियासत सितमगर कब नहीं रही दोस्तों
हिला देती हैं हौसले जलजले की तरह ।
खुशियों को खुशामद पसंद है बेहद यहाँ
और गम गले लग रहें सिलसिले की तरह ।
-अजय प्रसाद

चुगलखोरी,चापलूसी,चमचागीरी,मतलबपरस्ती में निपुण है
मतलब उस व्यक्ति में तरक्की करने के सौ फीसदी गुण है ।
मुस्कुराकर मिलता है,हाथ मिलाता है और लगता है गले भी
मगर उसकी नीयत में खोंट ही उसका सबसे बड़ा अवगुण है ।
-अजय प्रसाद

अभी मरा नहीं है ज़मीर मेरा
करेगा क्या भला अमीर मेरा ।
जब तक बुलंद हैं हौसले यारों
क्या बिगाड़ लेगा तक़दीर मेरा ।
-अजय प्रसाद

लाठी में उसकी कोई आवाज़ नहीं होता
बगैर उसके रज़ामंदी के आगाज़ नहीं होता ।
माँ-बाप की दुआ,रब की रहमत भी होती है
फ़कत हौसले से यहाँ परवाज़ नहीं होता ।
-अजय प्रसाद

लिखनेवाले तो हैं बहुत,पढ़ने वालों की कमी है
इससे बड़ी साहित्य की और क्या बेइज्ज़ती है ।
नज़रंदाज़ कर मौजूदगी अच्छी रचनाओं की
बिना कुछ कहे गुज़र जाना भी तो ज़्यादती है ।
माना के है नहीं आपके कदेसुखन के बराबर
पर क्या आपके मशवरा के लायक भी नहीं है ।
-अजय प्रसाद

भटकना है मेरी फितरत तो मंजिल क्या करे
बेवफ़ा है मेरी तकदीर,तो संगदिल क्या करे ।
तन्हाईयों ने की है इस कदर मेरी तीमारदारी
वीराने अब हैं मेरी जागीर महफ़िल क्या करे ।
-अजय प्रसाद

लौट आया हूँ आज से मै अपने काम पे
कर्तव्यों को ले जाना है मुझे मुकाम पे ।
जुट जाना है शागिर्दों को फिर सँवारने मे
करनी है भविष्य मजबूत उनके नाम पे।
-अजय प्रसाद

अपने इमानदारी की बेबसी पे मायुस न हो
खोकर आत्मसम्मान कभी चापलूस न हो ।
मतकर मिन्नतें अपनी जाया किसी खुदगर्ज पे
भूल जा तु उसे दिल में जिसके खुलूस न हो
-अजय प्रसाद
अपने इमानदारी की बेबसी पे मायुस न हो
खोकर आत्मसम्मान कभी चापलूस न हो ।
मतकर मिन्नतें अपनी जाया किसी खुदगर्ज पे
भूल जा तु उसे दिल में जिसके खुलूस न हो ।
-अजय प्रसाद

ज़ोशो जुनूँ का है अब इज़हार मजहब
हो गया है आदमी का शिकार मजहब ।
करतें कहाँ हैं लोग अब दिल से इबादत
बन गया है राजनीतिक व्यापार मजहब ।
-अजय प्रसाद

किसी संगदिल की मैं चाह, नहीं करता
फना हो ने की मैं परवाह, नहीं करता ।
तुम्हारी शायरी में कोई दम है,तो ठिक
झूठमूठ मैं कभी वाह! वाह! नहीं करता ।
-अजय प्रसाद
जो होता है सब खुदा की मर्ज़ी से होता है
मगर तबाही इंसान की खुदगर्ज़ी से होता है ।
लगे तो रहते हैं “सत्यमेव जयते “की तख्तियां
कहाँ काम दफ्तरों में फक़त अर्जी से होता है ।
-अजय प्रसाद
कई बार कई चिज़ें सही नहीं होती
जैसी दिखती है वो वैसी नहीं होती ।
हर बात खुदा ने है तय कर दिया
यहाँ पे कुछ भी अनकही नहीं होती ।
-अजय प्रसाद
संयम कम और आकांक्षाएँ अपरीमित
लालसाएं असंख्य और साधन सीमित ।
अनियंत्रित जीवन की अनंत प्रतिस्पर्धा
अनवरत संघर्ष है दिनचर्या अनियमित ।
-अजय प्रसाद
वक्त के साथ ही बदलाव आता है
सोंच नयी नया मिज़ाज लाता है ।
तोड़ सारी पुरानी बंदिशे जग की
नया दौर नये रशमों रिवाज़ लाता है ।
-अजय प्रसाद

बंदिशो में रहने का आदी नहीं हूँ
अहिंसा का पुजारी गाँधी नहीं हूँ ।
दिल गर जीत लिया,जान दे दूंगा
लीडरों सा मै अवसरवादी नहीं हूँ ।
-अजय प्रसाद

रो रही थी आज विचारी गाँधी की तस्वीर
हिंसक ही कर रहे थे अहिंसा पर तक़रीर ।
राम राज के नाम पे वर्षो होती रही है लूट
जाने लोकतंत्र की कब बदलेगी तक़दीर ।
-अजय प्रसाद
लाठी में उसकी कोई आवाज़ नहीं होता
बगैर उसके रज़ामंदी के आगाज़ नहीं होता ।
माँ-बाप की दुआ,रब की रहमत भी होती है
फ़कत हौसले से यहाँ परवाज़ नहीं होता ।
-अजय प्रसाद

किसी कमजर्फ़ से अब इल्तिजा क्या करूँ
जब होनी ही नहीं कबूल तो दुआ क्या करूँ ।
चाहता तो हूँ चलना इमानदारी के रास्तों पर
मगर साथ ही न दे जब ये जमाना क्या करूँ
-अजय प्रसाद

गरीबी में जीना और गुमनाम गुजर जाना है
शोषितों,पीड़ितों तुम्हें ये काम कर जाना है ।
मत रखना उम्मीद अपनी तरक़्क़ी का कभी
हर दौर में बस अपने वजूद से मुकर जाना है ।
-अजय प्रसाद
खुदगर्ज़ी से भरे खोखले आश्वासन
बेहद कारगर है बनावटी अपनापन ।
आजकल वो सफल है सियासत में
जो भी करे इमानदारी से दोहरापन।
-अजय प्रसाद

हुस्न से अदावत न कर
इश्क़ से वगावत न कर ।
जीना है खुशहाल ज़िंदगी
मौत से तू नफ़रत न कर ।
-अजय प्रसाद

मजबूरियाँ मेरी आजकल मुझे चिढ़ा रहीं हैं
मायूसी अपनी कामयाबी पे मुस्कुरा रही हैं ।
अश्क़ आँखों में आने से भी लगे है मुकरने
ख्वाहिशें खामोशी से खुदकुशी किये जा रही है ।
मौत हो गयी है मेरे खिलाफ़ रूठ कर मुझसे
ज़िंदगी रोज़ नये हादसों से दिल बहला रही हैं ।
-अजय प्रसाद

भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता
रहम दिलों में भी जरा नहीं होता ।
बेहद उन्मादि खौफनाक इरादों पे
इंसानियत का पहरा नहीं होता ।
बस हिंसक बेकाबू सोंच होती है
रिश्ता मज़हब से गहरा नहीं होता ।
-अजय प्रसाद

खुद के अन्दर , ज़मीर ज़िंदा रख
भले हो दिल से,अमीर ज़िंदा रख ।
ठीक है तू होगा दौलत मंद मगर
ज़ेहन में एक फ़कीर ज़िंदा रख ।
नामुमकिन है कि मासूमियत लौटे
खुद में बचपन शरीर ज़िंदा रख ।
-अजय प्रसाद
बदसूरत को हसीन बताऊँ कैसे
आसमां को ज़मीन दिखाऊँ कैसे ।
कहतें हैं मुल्क में सब खैरियत है
खुद को ये यकीन दिलाऊँ कैसे ।
-अजय प्रसाद

मुझे तू और तबाही के मन्ज़र न दिखा
खोखले इन्क़लाब के समंदर न दिखा
भला होगा खौफज़दा अब क्यों कोई
मर चुका है ज़मीर उसे खंजर न दिखा
सदमे में जम्हुरीयत है जहालत देखकर
सियासत में है कौन सितमगर न दिखा ।
-अजय प्रसाद

रोज़ खुद को आजमाता हूँ
खफ़ा हो के भी मुस्कुराता हूँ ।
मौत महफ़ूज है ज़िंदगी तले
खुद को ही यकीं दिलाता हूँ ।
-अजय प्रसाद
सत्ता की शिकार अवाम हो रही
ज़्म्हुरियत अब निलाम हो रही ।
कल तलक थीं जो बातें पोशीदा
आजकल वो खुलेआम हो रही ।
-अजय प्रसाद
तेरी नज़रो में मैं बुरा ही सही
दे मुझको तू बददुआ ही सही ।
जीउँगा तेरे नफरत के साये में
इश्क़ मेरा सबसे जुदा ही सही ।
-अजय प्रसाद

ज़िंदगी आजकल बे-रहम हो रही है
इंसानियत भी अब खतम हो रही है ।
प्यार, दोस्ती, एहसान,वफ़ा, हैं खफ़ा
अहमियत इन सबकी कम हो रही है ।
-अजय प्रसाद

भयंकर तबाही की जद में है
आजकल आदमी बेहद में है ।
इजाद कर लिये हैं कई नुस्खे
खुश वो अपने खुशामद में है ।
-अजय प्रसाद

कबाड़ से कमाई की उम्मीद वो करतें हैं
यहाँ कुछ बच्चे कचरे को गौर से पढ़तें हैं
उन्हें अपने भविष्य की कोई फ़िक्र नहीं
हर रोज़ जो बेरहम वर्तमान से लड़तें हैं ।
-अजय प्रसाद
इक हमाम में यारों यहाँ सब नंगे हैं
बाहर से दिखे साफ़ भीतर से गंदे हैं ।
नेता-अभिनेता,या पुलिस-प्रशासन
यारों सब आला दर्जे के भिखमंगे हैं।
साठगांठ के बेजोड़ सिकंदर हैं सारे
गोरे गोरे लोग औ इनके काले धंदे हैं।
-अजय प्रसाद

अहंकार से बढ़ कर कोई विमारी नहीं
लालच से बड़ा कोई भी शिकारी नहीं ।
ज़िंदगी खुशगवार उसकी हो जाती है
जो समझता खुद को आधिकरी नहीं ।
-अजय प्रसाद

गिरे हुए लोग क्या किसी को उठाएंगे
वो तो ओछी मानसिकता ही दिखाएंगे।
विरासत में मिली हैं जो बिसंगतियां
तो कहाँ से अच्छे संस्कार ला पाएंगे।
-अजय प्रसाद

फना होने के एहसास से डरता है
वो अपने आस-पास से डरता है।
पहले अपनी हस्ती से डरता था
अब आम और खास से डरता है ।
-अजय प्रसाद

जल गई है रस्सी मगर एँठन नहीं गया
दिल से अभी तक वो बहम नहीं गया।
रौनक तो रूठ के महफिल से जा चुकी
झूठे दिखावे का यारों अदब नहीं गया ।
-अजय प्रसाद

वजूद समंदर की कतरों से है
हैसियत ज़्ख्मों की अपनों से है ।
खामोशी अदा है गहराइयों की
शोर तो कम अक्ल लहरों से है ।
-अजय प्रसाद

वो जो चीखते थे रील लाईफ में
आज क्यों खामोश हैं वाईफ़ पे ।
-अजय प्रसाद

खोखले रंगीनियों में डूबे हुए लोग
ज़िंदगी की जंग से ऊबे हुए लोग।
बातें करते हैं उन आदर्शो की आज
खुद की हस्ती के मनसूबे हुए लोग ।
-अजय प्रसाद

उंची दुकान और फीकी है पकवान
कितने स्वार्थी होतें हैं नकली महान।
खेल कर जज़्बातों से भूला देतें हैं ये
आखिर हैं किस मिट्टी के बने इन्सान।
-अजय प्रसाद

‘पूछता है भारत’ कब तक करोगे तिज़ारत
मुद्दे के नाम पे टुच्चे बहस और सियासत ।
गले फाड़ कर जो ब्रेकिंग न्यूज़ हो दिखाते
क्या ऐसे ही करोगे तुम सच की हिफाज़त।
-अजय प्रसाद
ग्लैमर की गलीज गलियों मे गुमनाम हैं कई
चकाचौंध के पीछे छिपे हुए बदनाम हैं कई।
बेहद खोखली खुशि और बनावट की हँसी
हक़ीक़त है यहाँ यारों नमक हराम है कई ।
-अजय प्रसाद
हिन्दी की अहमियत की बात करतें हैं
आप तो मासूमियत की बात करतें है ।
जहाँ पाबंदियां है हिंदि बोलने पर भी
उस जगह हिंदी दिवस बात की करतें हैं ।
-अजय प्रसाद

हम हिन्दी भाषा का कभी अपमान नहीं करतें हैं
बस हिंदी दिवस के अलावे सम्मान नहीं करतें हैं।
-अजय प्रसाद

ये भी अजीबोगरीब तमाशा है
कि हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है।
कहने की कोई ज़रूरत नहीं है
दिखावे ढेर और फिक्र ज़रा सा है ।
-अजय प्रसाद
बेहद अफसोस है कि हिंदी दिवस मनाते हैं
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है विश्व को बताते हैं ।
-अजय प्रसाद

तो आप भी साहित्य में षडयंत्र के शिकार हो गए
भयंकर बुद्धिजीवी मानसिकता के विकार हो गए ।
तब तो आप किसी की भी सुनेंगे ही नहीं,क्या कहूँ
जब आप खुद ही अपने आप से दरकिनार हो गए ।
-अजय प्रसाद

आइने से कहो मेरा हिसाब कर दे
मेरे सामने मेरे उम्र-ए-पड़ाव रख दे।
कब,कैसे और कितना मैं बदल गया
आज तलक का जोड़ घटाव कर दे ।
-अजय प्रसाद

रोज़ खुद को मैं आजमाता हूँ
खफ़ा हो कर भी मुस्कुराता हूँ ।
मौत महफ़ूज है जिंदगी के तले
खुद को ही यकीन दिलाता हूँ ।
-अजय प्रसाद

जनता को भी जगना जरुरी है
लूटना सरकार की मजबुरी है ।
बहुत फायदे में रहतें हैं वो लोग
आती जिन्हें करनी जी हुजूरी है।
***

अगर सब खुदा की मर्ज़ी है
तो फ़िर बेशक़ खुदगर्ज़ी है।
सी देता है तन के ज़्ख्मों को
वक्त फकत नाम का दर्जी है।
-अजय प्रसाद

आसमान से गिरे खजूर में अटक गए
मुद्दे जो थे अपने रास्ते से भटक गए ।
न्यूज़ चैनलों ने तो बना दिया है त्रिशंकु
सच और झूठ के बीच हम लटक गए ।
कौन पूछता है हाल अवाम का यहाँ
बिचारे खुद ही सारे मसले गटक गए ।
-अजय प्रसाद

अच्छाइयाँ मेरी वो जानता है
मुझे अपना दुश्मन मानता है ।
जब जब होती उसे ज़रुरत
तब तब ही वो पहचानता है ।
-अजय प्रसाद

परदे के पीछे के पाखंडी लोग
दौलत नशे में चूर घमंडी लोग।
कितने खोखले किरदार हैं ये
कलयुग के काकभुशंडि लोग।
-अजय प्रसाद

सत्य परेशान हो सकता है,पराजित नहीं
जब तक झूठ को कर दे वो साबित नहीं।
-अजय प्रसाद

सत्य जहाँ अकर्मण्य है
न्याय वहाँ पे नगण्य है ।
लालसा जब हो बेलगाम
सोंचता कौन पाप पुण्य है
-अजय प्रसाद

दोषियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई हो रही है
पुलिस-प्रशासन और सरकार उन्हें ढो रही है ।
कर रहें हैं सज़ा दिलाने का वे पुख्ता इन्तेजाम
और अदालत है कि समय का रोना रो रही है ।
-अजय प्रसाद

और क्या ??
मनाते तो हैं पुण्य तिथी व जयंती और क्या?
मृतात्मा महापुरुषोँ पर इससे ज्यादा गौर क्या?
उनके उच्च विचार भला हमारे किस काम के ?
हैं उनके लिए तो पुस्तकों से बेहतर ठौर क्या ?
-अजय प्रसाद

खाया जिस थाली में हमने उस में ही छेद किया
वतन के मसलों पर अक़सर ही मतभेद किया ।
अपनी डफली अपना राग हमेशा ही सुनाते रहे
औरों के लिए हमने कभी न कोई खेद किया ।
भाड़ में जाए अवाम हमें क्या लेना-देना है यारों
बस पैसों के लिए हमने खुद को मुस्तैद किया ।
-अजय प्रसाद

समाज जब सबकुछ चुपचाप स्वीकारता है
तब ये अनैतिकता अपने पाँव पसारता है ।
ध्रितराष्ट्र जब पुत्र मोह में चुपचाप रहता है
तभी द्रौपदी की साड़ी दुशासन उतारता है।
-अजय प्रसाद

अपनी नज़रों से खुद को गिरा कर आया हूँ
इंसानियत से पिछा मैं छुड़ा कर आया हूँ । किसी बात का होता मुझपे कोई असर नहीं
दिल को जब से मैं पत्थर बना कर आया हूँ ।
-अजय प्रसाद

क्या उन्हें मशवरा देना
बस हाँ में हाँ मिला देना ।
देखना दरक जाएगा खुद
दर्पण को उन्हें दिखा देना ।
क्या कहने उनकी हँसी का
फूल कोई जैसे खिला देना।
-अजय प्रसाद

आइये आसान को जटिल बनाते हैं
किसी अहमक को आलिम बनाते हैं ।
जो है उसमें खुश रहते हैं हम कहाँ
जो नहीं मिला उसे तक़दीर बनाते हैं।
-अजय प्रसाद

रोज़ वायदे कर के तोड़ देता हूँ
खुद को अपने हाल पे छोड़ देता हूँ
खफ़ा रहते है मुझसे ख्वाब मेरे
अक़सर बुनकर उन्हें तोड़ देता हूँ
-अजय प्रसाद

उसे अपनी खूबसूरती पर नाज़ है
मगर मेरी आँखो के लिए खाज़ है।
नहीं फिदा होना मुझे उस चेह्र पर
वजूद जिसका कल नहीं आज है।
-अजय प्रसाद

तू कभी मुझे आजमा कर तो देख
दायरा-ए-दोस्ती में लाकर तो देख ।
रख दूँगा मैं कायनात तेरे कदमों में
बस इक बार मुस्कुराकर तो देख ।
-अजय प्रसाद

खुद को कहीं उलझा कर देख
उलझन किसीकी सुलझा कर देख।
देखनी गर है यां हैसियत अपनी
फूलों की तरहा मुरझा कर देख ।
-अजय प्रसाद

सतर्क और सुरक्षित रहें
मरने को भी अपेक्षित रहें ।
जन्मे हैं आप दलितों के घर
ज़िंदगी भर उपेक्षित रहें ।
-अजय प्रसाद

जब खामोशी से आप सब कुछ स्वीकारतें हैं
मतलब आप अपने ही वजूद को दुत्कारतें हैं ।
जिसे आपने बड़े प्यार से पाला था आस्तीन में
ये वही साँप है जो आजकल फुफकारतें हैं ।
-अजय प्रसाद

मुलभुत ढांचे में ऐसा बदलाव हो
सर्दियों में सबके लिए अलाव हो।
इस कदर इन्तज़ाम कर या खुदा
कभी किसी को न कोई अभाव हो
-अजय प्रसाद

चलिए ले चलें सभ्यता-संस्कृति से दूर
देखतें हैं आज वेब सीरीज़ मिर्ज़ापुर।
बेहतरीन हैं अदाकार और अदाकारी
गालियाँ सुनने को भी हैं करतें मजबूर ।
-अजय प्रसाद

आजकल बच्चे जब बड़े हो जाते हैं
खुद के ही खिलाफ खड़े हो जाते हैं।
भुला देते हैं कुर्बानियां वो माँ बाप के
जब अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं ।
-अजय प्रसाद

कबूल मेरी ये दुआ हो जाए
इंसानियत भी वबा हो जाए ।
बरपाये कहर कायनात पर
इन्सानो का भला हो जाए ।
-अजय प्रसाद

.

सहूलियत के हिसाब से समाचार दिखातें हैं
क्योंकि उसी कमाई से घर परिवार चलाते हैं ।
फ़ायदा चाहिए चैनेल को हर हाल में बस
आईये मौके के मुताबिक मुद्दों को उठाते हैं ।
***
खुद की ही बुराई आप क्यों नहीं करते
एक साथ पुण्य औ पाप क्यों नहीं करते ।
नुक्स निकालतें हैं दूसरों की बहुत जल्द
खुद की भी सफाई आप क्यों नहीं करते ।
-अजय प्रसाद

अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार रहे हैं
अवाम पे वो गुस्सा अपना उतार रहे हैं ।
लगता है उनकी नज़रों में गड़ गया हूँ मैं
आजकल जता मुझसे बहुत प्यार रहें हैं ।
-अजय प्रसाद

छुरियाँ दोस्तों उनके दिलों पर ही चलती है
मेरी मौजूदगी महफिल में जिनको खलती है ।
बेअदबी मेरी उनको बिल्कुल बर्दाश्त नहीं
तारीफ़ कोई भी करे जुबां उनकी जलती है ।
-अजय प्रसाद

यहाँ कोई किसी का हमेशा-हमेशा नहीं होता
सियासत में कोई अपना पराया नहीं होता ।
सहूलियत देख कर साथ देतें हैं एक दूजे का
कोई दोस्ती,दुश्मनी या भाईचारा नहीं होता ।
****

क्यों न बहती गंगा में हाथ धो लूँ मैं
थोड़ी सी घड़ियालि रोना रो लूँ मैं ।
कहीं मौका मुकर न जाए मुझसे
कुछ देर खुद के साथ भी हो लूँ मैं।
-अजय प्रसाद

ज़िंदगी से उबरना चाहता हूँ
खुदा अब मैं मरना चाहता हूँ ।
घुटन होने लगी है शराफत में
ज़रा सा मैं बिगड़ना चाहता हूँ।
-अजय प्रसाद

दायरे में वो अपने सिमट गया
ज़िंदगी औ मौत से निपट गया ।
उम्रभर न ढँक सका जो तन को
कफ़न से आज वही लिपट गया ।
लाश में भी थी लज़्ज़त गज़ब की
देखते हीआंखोँ से आसूँ रपट गया ।
-अजय प्रसाद

टकराने का अंज़ाम बस लहरों से पूछो
मुस्कुराने का अंज़ाम इन अधरों से पुछो।
गुजारी है जिन्होंने तमाम उम्र सन्नाटे में
किस कदर है गुजरी जरा बहरों से पूछो ।
थे कभी खुशहाल जो गाँव की शक्ल में
हैं कितने आज बेचैन उन शहरों से पूछो।
-अजय प्रसाद

जी मिलिये हमारे पड़ोसी से,रहते हैं बगल मे
अक़सर हम मिलतें रहते है फ़ेसबुक पटल पे।
वहीं दुआ सलाम कर लेते हैं घनिष्टता के साथ
हम वक्त जाया नहीं करतें साथ-साथ टहल के
जब हर मौके के वास्ते है इमोजी वहाँ मौजुद
तो क्यों फ़िर तकलीफ करें हम गले मिल के ।
-अजय प्रसाद

सवाल दर सवाल मगर जवाब सिफ़र है
जो आने वाला था वो इन्क़लाब किधर है।
तू तो कहता था कि सब महफ़ूज है यहाँ पे
मगर यहाँ ऐसा कौन है जो मौत से निडर है
-अजय प्रसाद

उगे हैं सहित्यिक मंच कुकुरमुत्ते जैसे
बिल्कुल अनगिनत पेड़ों के पत्ते जैसे ।
हर कोई कर रहा है सेवा साहित्य की
मधुमक्खियाँ करतीं मधु के छत्ते जैसे ।
-अजय प्रसाद

आधे अधूरे मन से काम मत करना
मदारी के जमूरे से काम मत करना ।
तुम्हें अपना न सके जो हर हालत में
ज़िंदगी कभी उसके नाम मत करना
-अजय प्रसाद

एक दूसरे की गल्तियां गिनाने लगे हैं
मतलब कुर्सियां अपनी बचाने लगे हैं ।
अब कौन कितना गिरा हुआ है यहाँ
बस यही सियासतदां बताने लगे हैं ।
-अजय प्रसाद

मुझे अनरगल उटपटांग कुछ कहना

हाँ जोखिम तो मैं उठा रहा हूँ
पत्थरों को जो पिघला रहा हूँ ।
दाद देनी पड़ेगी आपको हुजूर
प्यास समंदर की बुझा रहा हूँ।
अजय प्रसाद

आप मुझे बर्दाश्त नहीं कर सकते
क्योंकि बर्खास्त नहीं कर सकते ।
मेरी जीत आपको बड़ी अखरती है
और मुझे परास्त नहीं कर सकते ।
-अजय प्रसाद

खामोशी से खुश हो कर मैं अपना काम करता हूँ
अदब और कायदे में रह कर ही सलाम करता हूँ ।
चाहे कोई किसी मक़सद से आया हो मिलने मुझे
पूरे खुलूस के साथ मैं उसका एहतराम करता हूँ ।
-अजय प्रसाद

मेरी मंजिल अलग,मेरा रास्ता अलग है
मेरी कश्ती अलग ,मेरा नाखुदा अलग है ।
मेरे साथ चलने वाले ज़रा सोंच ले फ़िर से
मेरी रहगुजर अलग, मेरा वास्ता अलग है ।
मेरी तंज़ीम अलग मेरा रहनुमा अलग है
-अजय प्रसाद

लिए कांधे पर खुद की लाश ज़िंदा हूँ
ज़िंदगी,मैं तेरी रुसवाई पे शर्मिन्दा हूँ ।
जो कभी किसी का एक जैसा न रहा
उसी वक्त के हाथों पीटा गया कारिंदा हूँ ।
-अजय प्रसाद

यारों मैं भी एक फ़ेसबुकिया साहित्यकार हूँ
ये और बात मैं लिखता घटिया और बेकार हूँ ।
रहता हूँ तलाश में मैं दिन-रात मौज़ुआत के
रख देता हूँ उड़ेल पोस्ट पर मन के उदगार हूँ ।
-अजय प्रसाद

जैसा हूँ वैसा ही मंजूर कर
वरना अपने आप से दूर कर ।
रहने दे मुझको तू मेरी तरह
तेरी तरहा यूँ मत मजबूर कर ।
-अजय प्रसाद

हम होंगे कामयाब एक दिन
ज़र्रे से आफताब एक दिन ।
जो आज कह रहे हैं नक्कारा
कहेंगे वही नायाब एक दिन ।
-अजय प्रसाद

मेरी मंजिल अलग,मेरा रास्ता अलग है
मेरी कश्ती अलग ,मेरा नाखुदा अलग है ।
मेरे साथ चलने वाले ज़रा सोंच ले फ़िर से
मेरा हमसफर अलग,मेरा कारवां अलग है
-अजय प्रसाद

हम करतें हैं इस समाचार का पुरजोर खंडन
हमने ही किया है अपराधियों का महिमामंडन।
न्यूज़ चैनलों के होतें हैं कुछ अपने उसूल यारों
कर देंगें आपका भी गर आप दें कोई विज्ञापन ।
-अजय प्रसाद

जो मर चुका है विचारों से
क्या लेना उसे अखब़ारों से ।
सुनता नहीं जब किसी की
क्या मतलब चित्कारों से
-अजय प्रसाद

अपराधी कोई भी हो बख्शा नहीं जाएगा
नेताओं के मुँह से ये जुमला नहीं जाएगा ।
चाहे कोई भी हो पार्टी ,किसी की सरकार
हर वारदात के बाद यही दोहराया जाएगा ।
-अजय प्रसाद

चैनलों पर रोज़ आकर जो दहाड़ रहें हैं
वही निकले चूहे जब खोदे पहाड़ गएं हैं ।
जाँ गंवाते जवानों की शहादत के नाम पे
पार्टी नेता एक दूसरे के कुर्ते फाड़ रहें हैं ।
-अजय प्रसाद

या रब मेरे दिल को पत्थर कर दे
या मजलूमों के दिन बेहतर कर दे ।
-अजय प्रसाद
***
चाहता मैं हूँ कि वो खफ़ा ही रहे
वास्ते उसके दिल में वफा ही रहे ।
जिसके बाद कुछ लिखा न जाय
मेरे लिये वो आखरी सफ़ा ही रहे ।
-अजय प्रसाद
***
वजूद समंदर की कतरों से है
हैसियत ज़्ख्मों की अपनों से है ।
खामोशी अदा है गहराइयों की
शोर तो कम अक्ल लहरों से है ।
-अजय प्रसाद
***
और इससे बुरा होगा क्या हाल मेरा
वक्त करता है अक्सर इस्तेमाल मेरा ।
ठोकरें खाकर मै सम्भलता कैसे यारों
रास्तों ने रोका है सफ़र अड़ंगा डाल मेरा ।
-अजय प्रसाद
***

सरकारी इमदाद जैसे हो ईद का चाँद
थाना,दफ्तर या अदालत,शेर की मांद ।
हो प्राईवेट अस्पताल या प्राईवेट स्कूल
दोनो लूट रहे हैं आज अवाम को फांद ।
-अजय प्रसाद

खुद अपनी बातों पे भी अमल नहीं करता
ज़ख्मों की नुमाईश मै हर पल नही करता ।
बांट कर रख दे जो इंसानों को इंसानों से
ऐसी किसी बात की मै पहल नही करता ।
-अजय प्रसाद

बहुत हो चुकी तक़रीर अब तस्वीर बदलनी चाहिए
बेबस, बेघर मजलूमों की तक़दीर बदलनी चाहिए ।
न वो मंज़िल न वो मुसाफिर,और न वो रहनुमा रहे
बदल चुके हैं मसले अब तदबीर बदलनी चाहिए ।
-अजय प्रसाद

अनैतिक रिश्तों की ये है अनरगल कहानियाँ
उधार की आधुनिकता में अधनंगी जवानियाँ।
उबाऊ अभिनय कराते हुए पकाऊ पटकथाएं
नये दौर की ये हैं यारों मनोरंजक मनमानीयाँ।
– अजय प्रसाद

किसी की जिम्मेदारी तो तय हो
ज़रा सा तो भगवान का भय हो ।
आखिर कब तक टाले जाएंगे
जनता के लिए कुछ तो समय हो ।
-अजय प्रसाद

सच्चाई तस्वीरों में हो ज़रूरी नहीं
खुदाई फ़कीरों में हो ज़रूरी नहीं ।
जेहन से भी लोग करते है गुलामी
कलाई जंजीरों में हो ज़रूरी नहीं ।
-अजय प्रसाद

कौन यहाँ यारों कितना काबिल है
मेरी रुसवाई में अपने ही शामिल हैं
देखा जो हश्र आलिमों का यहाँ
लगा उनसे बेहतर तो हम जाहिल हैं ।
-अजय प्रसाद

किसी संगदिल की मैं चाह, नहीं करता
फना हो ने की मैं परवाह, नहीं करता ।
तुम्हारी शायरी में कोई दम है,तो ठिक
झूठमूठ मैं कभी वाह! वाह! नहीं करता ।
-अजय प्रसाद

ज़ख्मों पे मरहम अब लगाता कौन है
इस कदर प्यार अब लूटाता कौन है ।
ये तो कमाल है यारों शायरी की वर्ना
शायरों को आजकल सताता कौन है ।
-अजय प्रसाद

ये जो रिश्तों का जाल है
यही तो जी का जंजाल है ।
जो है जितना अमीर यहाँ
उतना दिल से कंगाल है ।
-अजय प्रसाद

पूत के पाँव पालने में ही नज़र आते हैं
ये अलग बात है कभी-कभर आते हैं ।
गुजरे जमाने की बात मैं नहीं कर रहा
मगर आज के दौर में अक़्सर आते हैं ।
उम्मीद औलाद से लगाते हैं माँ बाप
वो उन्हें बृद्धाश्रम छोड़ कर आते हैं ।
-अजय प्रसाद

क्या पता था कि फ्यूचर उसका ब्राईट होगा
जिस एरिया में है थानेदार वो रेड लाईट होगा ।
आम के आम और मिलेंगे गुठलियों के दाम
इनकम अब उसका ब्लैक एंड व्हाइट होगा ।
-अजय प्रसाद

वो क्या जाने हो ना विनम्र और नतमस्तक
जिसने केवल अंको के लिए पढ़ी है पुस्तक ।
तुम्हारे गीत,गजलों,कहानियों में ही ज़िक्र है
हमने तो देखी ही नहीं कोई मसीहा अबतक ।
-अजय प्रसाद

तक़सीम हुआ था मुल्क मसाइलों के लिए क्या
आज़ादी हमने पाई इन काहिलों के लिए क्या ।

देते खोखले आश्वासन,बहाते हैं घड़ियाली आसूँ
जाँ गँवाई जवानों ने इन जाहिलों के लिए क्या

दफन है दफ्तरों में तरक्की अनगिनत गावों की
किए थे वायदे फक़त फाइलों के लिए क्या ।
-अजय प्रसाद

बहुत हो चुकी तक़रीर अब तस्वीर बदलनी चाहिए
बेबस, बेघर मजलूमों की तक़दीर बदलनी चाहिए ।
न वो मंज़िल न वो मुसाफिर,और न वो रहनुमा रहे
बदल चुके हैं मसले अब तदबीर बदलनी चाहिए ।
-अजय प्रसाद

कोस मत अंधेरे को , दिया जला
सोंच मत किसने किया तेरा भला ।
खौफ़ क्या होगा तुझे हादसों से
हादसों के साये में ही तू है पला ।
-अजय प्रसाद

आकड़ों में उलझ कर अकड़ गये वो
असलियत की ज़मीं से उजड़ गये वो ।
सिर्फ़ एलानों से फायदे कुछ नहीं होते
जब मैंने कहा तो मुझपे बिगड़ गये वो ।
-अजय प्रसाद
टूटेगा एक दिन देखना ये गरूर तेरा
नजर में जब आ जाएगा कसूर तेरा ।
हो जायेगी नफ़रत अपने आप से ही
उतरेगा जिस दिन ये नशा हुजूर तेरा ।
-अजय प्रसाद

गिरा कर मुझको संभल गया कोई
और हद से आगे निकल गया कोई ।
मैं तो पड़ा रहा किसी हाथ के लिए
देख मुझको रास्ता बदल गया कोई ।
-अजय प्रसाद

गैरों से है कितना लगाव
और अपनो से मनमुटाव
देते है वो उलाहने अक़्सर
जब भी मिलता है दाव ।
टीसने लगें हैं रिश्ते अब
बनके दिल मे नासूर घाव ।
-अजय प्रसाद

चैनलों पे चर्चे हैं आजकल
बेहूदा अगरचे हैं आजकल ।
सारे नुमाईंदे हैं खोटे सिक्के
तंज़ीमों ने खर्चे हैं आजकल ।
कितने फिक्रमंद हैं ये बिचारे
चुनावी जो पर्चे हैं आजकल ।
-अजय प्रसाद
तंज़ीमो =राजनीतक दलों

कितनी बदनसीब मेरी ये तक़दीर है
जैसे जंग लगी हुई कोई शमशीर है ।
जिंदगी उलझ गई है मेरी हालातों में
गोया कि यारों मसला-ए-कश्मीर है ।
-अजय प्रसाद

हर फरमाइश पूरी कर के भी दूर हैं
औलाद के हाथों माँ बाप मजबूर हैं ।
शिक्षा,कपड़े,मोबाइल महँगे पाकर भी
बच्चे अच्छे संस्कारों से कोसों दूर है ।
-अजय प्रसाद

कितनी बदनसीब मेरी ये तक़दीर है
जैसे जंग लगी हुई कोई शमशीर है ।
जिंदगी उलझ गई है मेरी हालातों में
गोया कि यारों मसला-ए-कश्मीर है ।
-अजय प्रसाद

रिश्ते वो बस रूटीन से निभाते रहें हैं
अक़्सर अपने ज़रूरत पर आते रहें हैं ।
किए ज़ुल्म हम पे जिन्होंने बेहिसाब
करम अपने उंगलियों पे गिनाते रहे हैं
भूलकर मेरी तकलीफें उनके लिए
कितना है किया एहसान जताते रहें हैं
-अजय प्रसाद

तू मुझे अपने दिल में बसा ले ऐसे
रौशनी अन्धेरे को छिपा ले जैसे ।
मैं रहूँगा कब्ज़े में तेरे हमेशा
बंद फूलों में रहते हैं भँवरे जैसे ।
-अजय प्रसाद

तजुर्बे की ताकत तुम क्या जानो
बुजुर्गो की हालत तुम क्या जानो
कितना असर है दुआओं में इनके
टल जाती है आफत तुम क्या जानो
-अजय प्रसाद

सत्य जहाँ भी अकर्मण्य है
न्याय वहाँ पे नगण्य है ।
लालसा जब हो बेलगाम
सोंचता कौन पाप पुण्य है ।
वासना जहाँ है विराजमान
प्रेम अपराध एक जघन्य है ।
-अजय प्रसाद

आईये हम सब मिलकर कातिल तलाश करें
कौन कौन थे इस ज़ुर्म में शामिल तलाश करें ।
मौके का फायदा उठाने के लिए ही सही यारों
मिडिया,लीडर,शायर ओ आमिल तलाश करें ।
-अजय प्रसाद

खुद अपनी बातों पे भी अमल नहीं करता
ज़ख्मों की नुमाईश मै हर पल नही करता ।
बांट कर रख दे जो इंसानों को इंसानों से
ऐसी किसी बात की मै पहल नही करता ।
-अजय प्रसाद

कांग्रेस,भाजपा,बसपा आप या समाजवादी
हैं सारी राजनीतिक पार्टियां ही अवसरवादी ।
हमदर्दी इनकी जनता के लिए चुनाव तक है
जितने के बाद अवाम तो है फक़त आवादी ।
-अजय प्रसाद
कोशिशों से कामयाब होते देखा है
जर्रे को भी आफताब होते देखा है ।
तुम कहते हो शायरी से क्या होगा ?
मैंने गज़लों से इंकलाब होते देखा है ।
-अजय प्रसाद

अब मुझे किसी सहारे की ज़रूरत नही है
डूबती नईया हूँ किनारे की ज़रूरत नही है ।
ढल गई उम्र जरूरतों को पूरा करते-करते
गुजरने वाला हूँ गुजारे की ज़रूरत नहीं है ।
-अजय प्रसाद

रिश्तों मे रफ्ता-रफ्ता अब दरार आ गई
बागों में नफरत के भी है बहार आगई ।
रहते थे कभी मिलजुलकर हम सब यहाँ
अब तो शिकवे भी दिलों में हज़ार आ गई ।
-अजय प्रसाद

आप मुझे बर्दाश्त नहीं कर सकते
क्योंकि बर्खास्त नहीं कर सकते ।
मेरी जीत आपको बड़ी अखरती है
और मुझे परास्त नहीं कर सकते ।
-अजय प्रसाद
आईये हम आज कुछ और करतें हैं
अपनी गल्तियों पे भी गौर करतें हैं ।
बहुत बिठाया है अक्लमंदो को सर पे
ज़रा जाहिलों को भी सिरमौर करतें हैं
-अजय प्रसाद
बदल चुके हैं हालात हुजूर अब तो मानिये
नही रही आप मे वो बात अब तो मानिये ।
कब तक छ्लेँगे जनता को जूमलो से आप
ढल चुकी है गफलती रात अब तो मानिये ।
-अजय प्रसाद

दोषपूर्ण राजनीती से कुछ तो हटकर हो
अब के मज़म्मत रहनुमाओ की डटकर हो ।
उम्र जैसे हर पल हर दिन हो रहा है कम
काश ज़ुर्म भी हर पल हर दिन घटकर हो ।
-अजय प्रसाद
देख हालत इंसानों की सिहर जाता हूँ
कुछ मालुम नहीं मुझे किधर जाता हूँ ।
इतनी विसंगतियों के बावजुद हूँ जिंदा
बस ज़मीर ओ जेहन से मर जाता हूँ ।
-अजय प्रसाद

जिधर देखो उधर बस यही मंज़र है
सबके हाथों में तकनीकि खंजर है
अफसोस है कि उन्हें पता ही नही
कितना खालीपन खुद के अन्दर है ।
-अजय प्रसाद

जुमले नहीं अब जबाब चाहिए
पांच साल का हिसाब चाहिए ।
जिसमे हो हमारे प्रश्नो के उत्तर
वही अपेक्षित किताब चाहिए ।
-अजय प्रसाद

हक़ीक़त से भला तुझे है इंकार क्यों ?
झूठी चमक से इतना तुझे है प्यार क्यों ?
इतनी अकड़ भी देख अच्छी नहीं होती
मालूम है अंजाम फ़िर अहंकार क्यों ?
-अजय प्रसाद

क्या पता था कि फ्यूचर उसका ब्राईट होगा
जिस एरिया में है थानेदार वो रेड लाईट होगा ।
आम के आम और मिलेंगे गुठलियों के दाम
इनकम अब उसका ब्लैक एंड व्हाइट होगा ।
-अजय प्रसाद
तकलीफें ही बन जाती हैं ताक़त कभी कभी
और दे जाती हैं मुश्किलें भी राहत कभी कभी ।
टुट जाती है हिम्मत, हिम्मतवालों के इश्क़ में
बुजदिली कर जाती हैं हिमाकत कभी कभी ।
सहती रहीं हैं ज़ुल्मों सितम हलाला के नाम पे
बोझ लगती है मुझे तो ये रिवायत कभी कभी ।
-अजय प्रसाद
शब्द मेरे सब शहीद हो गए
जब से हम तेरे अज़ीज़ हो गए ।
चाँद सूरज फूल तारे हैं खफ़ा
हम जो तेरे मुरीद हो गए ।
-अजय प्रसाद

धीरे-धीरे खुद मैने उससे किनारा कर लिया
जो भी मिला,जितना मिला गुजारा कर लिया ।
वक्त से पहले,तक़दीर से ज्यादा किसे मिला ?
बस यही सोंच कर जीना गवारा कर लिया ।
फ़िर कभी तन्हाईयों को शिकायत नहीं रही
जब तेरी यादों को मैने सहारा कर लिया ।
-अजय प्रसाद

मसर्रत है मेरे नसीब में कहाँ ?
हैसियत मुझ गरीब में कहाँ ?
जब कोई मेरी दिलरुबा नहीं
तो शामिल मै रकीब में कहाँ?
-अजय प्रसाद

ज़हमत ज़िन्दगी के हम उठा रहें हैं
लम्हे-लम्हे खुद को यूँही मिटा रहें हैं ।
घर ,दफ्तर ,वीबी,बच्चे या दोस्तों में
सुबहो शाम ,रात और दिन लूटा रहे हैं ।
-अजय प्रसाद

हमारी भी कुछ हैसियत है क्या
अच्छा! तो हमें क्यों नहीं पता ।
सदियाँ गुजर गयी समझने में
मालिक कौन?इन्सान या खुदा ।
-अजय प्रसाद

जी हाँ हम लोग शर्टिफाइड गरीब हैं
जनसंख्या विस्फोट में हम शरीक हैं।
और क्या सबूत चाहिए आपको सर
गुरवतों से हमारे रिश्ते बड़े करीब हैं ।
-अजय प्रसाद

जान पर खेल जो कर जान बचा रहे हैं
खुद को मुश्किलों में भी आजमा रहे हैं ।
रहम कर या खुदा अपने नेक बंदो पर
मरीजों के लिए जो आज मसीहा रहे हैं ।
-अजय प्रसाद

सरकारी इमदाद जैसे हो ईद का चाँद
थाना,दफ्तर या अदालत,शेर की मांद ।
हो प्राईवेट अस्पताल या प्राईवेट स्कूल
दोनो लूट रहे हैं आज अवाम को फांद ।
-अजय प्रसाद

फुर्सत मिले जो सोशल मीडिया से
तो कर लेना दो चार बातें भी माँ से ।
भले भूल जा तू मातृ दिवस मनाना
बस हरदिन चाहते रहना दिलोजाँ से ।
-अजय प्रसाद

क्या बकते हो,मज़दूर पैदल चल रहें हैं
वो तो बस अपनी हैसियत में ढल रहें हैं ।
सहूलियत सियासतदानों से न्यूज़ में है
हक़ीक़त रास्तों पे बेबस निकल रहें हैं ।
-अजय प्रसाद

अपनी शर्तों पे जिया है और कुछ नहीं
तुझ पे रहमते खुदा है और कुछ नहीं ।
जिंदगी भर बस मुसलसल जद्दोजहद
आंधियों में एक दिया है और कुछ नहीं ।
-अजय प्रसाद

मरना तो तय है ये जानते हैं सब
बस ये नही,कहाँ, कैसे और कब ।
माज़ी दफ़ा हैं मुस्तकबिल है खफ़ा
हाल के चाल पर टिके हुए हैं सब ।
-अजय प्रसाद

ज़ख्मों पे मरहम अब लगाता कौन है
इस कदर प्यार अब लूटाता कौन है ।
ये तो कमाल है यारों शायरी की वर्ना
शायरों को आजकल सताता कौन है ।
-अजय प्रसाद

चेह्र पे शिकन हो या माथे पसीना
सीखा है हमने हर हाल में जीना ।
मेहनत,मजदूरी है अपनी मजबूरी
हो सर्द रात या जून का महीना ।
-अजय प्रसाद

और भी है बहुत कुछ करना शायरी के सिवा
ज़िंदगी भर है आहें भरना शायरी के सिवा ।
तुम कहते हो कि यार “अपना टाईम आएगा ”
बस इसी इंतज़ार में है मरना शायरी के सिवा ।
-अजय प्रसाद

खुश मत होना तू दावते सुखन पा कर
मैने झेला हैं यारों मुशायरों में जा कर ।
दाद,दुआ,सलाम खैरियत तो खैर छोड़ो
डकार भी न ली,औरों के कलाम खा कर
-अजय प्रसाद

हादसों के जो लोग शिकार हो गये
लीडरों के वास्ते मददगार हो गये ।
जीते जी जिनको कभी हक़ ना मिला
मरकर मुआवजो के हक़दार हो गये ।
-अजय प्रसाद

वजूद समंदर की कतरों से है
हैसियत ज़्ख्मों की अपनों से है ।
खामोशी अदा है गहराइयों की
शोर तो कम अक्ल लहरों से है ।
-अजय प्रसाद

बहुत हो चुकी तक़रीर अब तस्वीर बदलनी चाहिए
बेबस, बेघर मजलूमों की तक़दीर बदलनी चाहिए ।
न वो मंज़िल न वो मुसाफिर,और न वो रहनुमा रहे
बदल चुके हैं मसले अब तदबीर बदलनी चाहिए ।
-अजय प्रसाद

(दिल्ली दंगो के बाद)
कितना खौफनाक होगा वो मंज़र देख रहा हूँ
ज़मीं पे पड़े हूए लहू-लुहान पत्थर देख रहा हूँ ।
किस कदर इंसानियत हुई है शर्मसार दंगों में
तवाही से तब्दील ये रौनकें खंडहर देख रहा हूँ ।
सहमे-सहमे चेहरे,सुनसान सड़कें,बेनूर गलियाँ
अपनी बेगुनाही पे खामोश है खंजर देख रहा हूँ ।
-अजय प्रसाद

मजदूरों के मजबूरियों का मज़ाक न बनाएं
खींचकर तस्वीरें उनकी उन्हें और न सताएं ।
करना है मदद हक़ीक़त में,तो खामोशी से करें
करके सरेआम दिखावा यारों उन्हें और न गिराएं ।
-अजय प्रसाद

शेरों-शायरी में खुद को कर तबाह रहा हूँ
फक़त दिल रखने को कर वाह वाह रहा हूँ ।
तारीफ़ के बदले ही मिलतें हैं यारों तारीफ़
इसी रिश्ते को फ़ेसबुक पर निबाह रहा हूँ ।
लाइक्स और कमेंट्स के फिराक में दोस्तों
ऊल-जुलूल पोस्टों पर भी डाल निगाह रहा हूँ ।
-अजय प्रसाद

आईये हम सब मिलकर कातिल तलाश करें
कौन कौन थे इस ज़ुर्म में शामिल तलाश करें ।
मौके का फायदा उठाने के लिए ही सही यारों
मिडिया,लीडर,शायर ओ आमिल तलाश करें ।
-अजय प्रसाद
फक़त मुझसे ही वो मेरी बुराई करता है
इस तरह मेरी हौसला अफजाई करता है ।
छा जाती है चेहरे पे खुशी देखते ही मुझे
मतलब मुझसे प्यार तो इन्तेहाई करता है ।
कहीं लग न जाये नज़र किसी रक़ीब की
बड़ी बेरुखी से वो मेरी पज़ीराई करता है ।
-अजय प्रसाद
इन्तेहाई = बहुत
पज़ीराई =स्वागत welcom
रक़ीब = प्रेम से प्रतिद्वंदिता करने वाले

सत्य जहाँ भी अकर्मण्य है
न्याय वहाँ पे नगण्य है ।
लालसा जब हो बेलगाम
सोंचता कौन पाप पुण्य है ।
वासना जहाँ है विराजमान
प्रेम अपराध एक जघन्य है ।
-अजय प्रसाद

चाहता मैं हूँ कि वो खफ़ा ही रहे
वास्ते उसके दिल में वफा ही रहे ।
जिसके बाद कुछ लिखा न जाय
मेरे लिये वो आखरी सफ़ा ही रहे ।
-अजय प्रसाद

तजुर्बे की ताकत तुम क्या जानो
बुजुर्गो की हालत तुम क्या जानो
कितना असर है दुआओं में इनके
टल जाती है आफत तुम क्या जानो
-अजय प्रसाद
जब आइने तुम्हें भा ने लगे
और अकेले में मुस्कुराने लगे ।
समझ लेना तुम्हारी खैर नहीं
जब नींद ही तुम्हें जगाने लगे ।
-अजय प्रसाद
वजूद समंदर की कतरों से है
हैसियत ज़्ख्मों की अपनों से है ।
खामोशी अदा है गहराइयों की
शोर तो कम अक्ल लहरों से है ।
-अजय प्रसाद
या रब मेरे दिल को पत्थर कर दे
या मजलूमों के दिन बेहतर कर दे ।
-अजय प्रसाद
***
चाहता मैं हूँ कि वो खफ़ा ही रहे
वास्ते उसके दिल में वफा ही रहे ।
जिसके बाद कुछ लिखा न जाय
मेरे लिये वो आखरी सफ़ा ही रहे ।
-अजय प्रसाद
***
वजूद समंदर की कतरों से है
हैसियत ज़्ख्मों की अपनों से है ।
खामोशी अदा है गहराइयों की
शोर तो कम अक्ल लहरों से है ।
-अजय प्रसाद
***
और इससे बुरा होगा क्या हाल मेरा
वक्त करता है अक्सर इस्तेमाल मेरा ।
ठोकरें खाकर मै सम्भलता कैसे यारों
रास्तों ने रोका है सफ़र अड़ंगा डाल मेरा ।
-अजय प्रसाद
***

सरकारी इमदाद जैसे हो ईद का चाँद
थाना,दफ्तर या अदालत,शेर की मांद ।
हो प्राईवेट अस्पताल या प्राईवेट स्कूल
दोनो लूट रहे हैं आज अवाम को फांद ।
-अजय प्रसाद

खुद अपनी बातों पे भी अमल नहीं करता
ज़ख्मों की नुमाईश मै हर पल नही करता ।
बांट कर रख दे जो इंसानों को इंसानों से
ऐसी किसी बात की मै पहल नही करता ।
-अजय प्रसाद

बहुत हो चुकी तक़रीर अब तस्वीर बदलनी चाहिए
बेबस, बेघर मजलूमों की तक़दीर बदलनी चाहिए ।
न वो मंज़िल न वो मुसाफिर,और न वो रहनुमा रहे
बदल चुके हैं मसले अब तदबीर बदलनी चाहिए ।
-अजय प्रसाद

जो मर चुका है विचारों से
क्या लेना उसे अखब़ारों से ।
सुनता नहीं जब किसी की
क्या मतलब चित्कारों से
-अजय प्रसाद

लिखनेवाले तो हैं बहुत,पढ़ने वालों की कमी है
इससे बड़ी साहित्य की और क्या बेइज्ज़ती है ।
नज़रंदाज़ कर मौजूदगी अच्छी रचनाओं की
बिना कुछ कहे गुज़र जाना भी तो ज़्यादती है ।
माना के है नहीं आपके कदेसुखन के बराबर
पर क्या आपके मशवरा के लायक भी नहीं है ।
-अजय प्रसाद

यारों मैं भी एक फ़ेसबुकिया साहित्यकार हूँ
ये और बात मैं लिखता घटिया और बेकार हूँ ।
रहता हूँ तलाश में मैं दिन-रात मौज़ुआत के
रख देता हूँ उड़ेल पोस्ट पर मन के उदगार हूँ ।
-अजय प्रसाद

जैसा हूँ वैसा ही मंजूर कर
वरना अपने आप से दूर कर ।
रहने दे मुझको तू मेरी तरह
तेरी तरहा यूँ मत मजबूर कर ।
-अजय प्रसाद

हम होंगे कामयाब एक दिन
ज़र्रे से आफताब एक दिन ।
जो आज कह रहे हैं नक्कारा
कहेंगे वही नायाब एक दिन ।
-अजय प्रसाद

मेरी मंजिल अलग,मेरा रास्ता अलग है
मेरी कश्ती अलग ,मेरा नाखुदा अलग है ।
मेरे साथ चलने वाले ज़रा सोंच ले फ़िर से
मेरा हमसफर अलग,मेरा कारवां अलग है
-अजय प्रसाद

लिए कांधे पर खुद की लाश ज़िंदा हूँ
ज़िंदगी,मैं तेरी रुसवाई पे शर्मिन्दा हूँ ।
जो कभी किसी का एक जैसा न रहा
उसी वक्त के हाथों पीटा गया कारिंदा हूँ ।
-अजय प्रसाद

ये जो रिश्तों का जाल है
यही तो जी का जंजाल है ।
जो है जितना अमीर यहाँ
उतना दिल से कंगाल है ।
-अजय प्रसाद

कौन यहाँ यारों कितना काबिल है
मेरी रुसवाई में अपने ही शामिल हैं
देखा जो हश्र आलिमों का यहाँ
लगा उनसे बेहतर तो हम गाफ़िल हैं ।
-अजय प्रसाद

खून के घूंट जो पीकर रोज़ जी रहे है
खामोशी से ज़ुल्मों सितम सह रहे हैं ।
जिन्होंने कभी गरीबी में जिया ही नहीं
वही आप गरीबों का मसीहा कह रहे हैं

खामोशी से खुश हो कर मैं अपना काम करता हूँ
अदब और कायदे में रह कर ही सलाम करता हूँ ।
चाहे कोई किसी मक़सद से आया हो मिलने मुझे
पूरे खुलूस के साथ मैं उसका एहतराम करता हूँ ।
-अजय प्रसाद
हम करतें हैं इस समाचार का पुरजोर खंडन
हमने ही किया है अपराधियों का महिमामंडन।
न्यूज़ चैनलों के होतें हैं कुछ अपने उसूल यारों
कर देंगें आपका भी गर आप दें कोई विज्ञापन ।
-अजय प्रसाद
पूत के पाँव पालने में ही नज़र आते हैं
ये अलग बात है कभी-कभर आते हैं ।
गुजरे जमाने की बात मैं नहीं कर रहा
मगर आज के दौर में अक़्सर आते हैं ।
उम्मीद औलाद से लगाते हैं माँ बाप
वो उन्हें बृद्धाश्रम छोड़ कर आते हैं ।
-अजय प्रसाद
चैनलों पर रोज़ आकर जो दहाड़ रहें हैं
वही निकले चूहे जब खोदे पहाड़ गएं हैं ।
जाँ गंवाते जवानों की शहादत के नाम पे
पार्टी नेता एक दूसरे के कुर्ते फाड़ रहें हैं ।
-अजय प्रसाद
तो आप भी साहित्य में षडयंत्र के शिकार हो गए
भयंकर बुद्धिजीवी मानसिकता के विकार हो गए ।
तब तो आप किसी की भी सुनेंगे ही नहीं,क्या कहूँ
जब आप खुद ही अपने आप से दरकिनार हो गए ।
-अजय प्रसाद
अहंकार से बढ़ कर कोई विमारी नहीं
लालच से बड़ा कोई भी शिकारी नहीं ।
ज़िंदगी खुशगवार उसीकी हो जती है
जो समझता खुद को आधिकरी नहीं ।
-अजय प्रसाद
किसी की जिम्मेदारी तो तय हो
ज़रा सा तो भगवान का भय हो ।
आखिर कब तक टाले जाएंगे
जनता के लिए कुछ तो समय हो ।
-अजय प्रसाद
सच्चाई तस्वीरों में हो ज़रूरी नहीं
खुदाई फ़कीरों में हो ज़रूरी नहीं ।
जेहन से भी लोग करते है गुलामी
कलाई जंजीरों में हो ज़रूरी नहीं ।
-अजय प्रसाद
कौन यहाँ यारों कितना काबिल है
मेरी रुसवाई में अपने ही शामिल हैं
देखा जो हश्र आलिमों का यहाँ
लगा उनसे बेहतर तो हम जाहिल हैं ।
-अजय प्रसाद
किसी संगदिल की मैं चाह, नहीं करता
फना हो ने की मैं परवाह, नहीं करता ।
तुम्हारी शायरी में कोई दम है,तो ठिक
झूठमूठ मैं कभी वाह! वाह! नहीं करता ।
-अजय प्रसाद
अपराधी कोई भी हो बख्शा नहीं जाएगा
नेताओं के मुँह से ये जुमला नहीं जाएगा ।
चाहे कोई भी हो पार्टी ,किसी की सरकार
हर वारदात के बाद यही दोहराया जाएगा ।
-अजय प्रसाद
जो मर चुका है विचारों से
क्या लेना उसे अखब़ारों से ।
सुनता नहीं जब किसी की
क्या मतलब चित्कारों से
-अजय प्रसाद
शायरी मेरा शौक है पेशा नहीं
आमदनी इसमे एक पैसा नहीं ।
अब न दौर है मीरो-गालिब का
और मैं भी हूँ उनके जैसा नहीं ।
-अजय प्रसाद ज़िंदगी अपनी जैसे एल ई डी टीवी स्क्रीन है
खुद तो काला मगर औरों के लिए रंगीन है ।
चैनेल कॉमेडी का यारों चेह्रे पर चला रक्खा है
कहीं किसी को ये न लगे बंदा बेहद गमगीन है ।
-अजय प्रसाद

मुहब्बत भरे ये जज़्बाती गज़ल कब तक कहोगे
कब्रे मुमताज को तुम, ताजमहल कब तक कहोगे ।
जिसने चाहा ही नहीं मुहब्बत में खुद को मिटाना
खुदगर्ज़ शाहज़हाँ को प्रेमी पागल कब तक कहोगे ।
-अजय प्रसाद

औकात आदमी की आदमी से पूछ
हालात आदमी की आदमी से पूछ ।
है किस कदर परेशां वो खुद से ही
ज़ज्बात आदमी की आदमी से पूछ ।
आदमी ने दिये क्या क्या आदमी को
सौगात आदमी की आदमी से पूछ ।
-अजय प्रसाद
गजलें मेरी बहर में बेशक़ नही है
तो क्या मुझे कहने का हक़ नही है ।
माफ़ करना अदीवों गुस्ताखियाँ
मुझे पढ़ने वाले तो अहमक नही है ।
-अजय प्रसाद

सरकारी अनुदान पर टिकी हुई जो संस्थाएँ हैं
कम होती जा रही उन पर लोगों की आस्थाएँ हैं ।
बदहाल रख रखाव उदासीन ढुल मुल रवैया है
लापरवाह कर्मचारियों से ग्रसित ब्यवस्थाएँ हैं ।
-अजय प्रसाद

खोखले जज्बात से वो मेरा इस्तकबाल करते हैं
लबों पे खुशी मन द्वेषि ,अभिनय कमाल करते हैं ।
कहाँ दे पाते हैं जवाब हम उन बच्चों को कभी
हमसे ,जब हमारी इमानदारी पे सवाल करते है ।
-अजय प्रसाद

हो रहा है सत्ता, के लिये षडयंत्र
सड़ गया है इस कदर लोकतंत्र ।
सियासत में तिज़ारत हो जब हावी
बिक जाता है तब बेबस प्रजातंत्र ।
-अजय प्रसाद

ठोकरें हम को शाबाशी लगतीं हैं
गालियां भी सबकी दुआ सी लगतीं हैं ।
ठान लेता हूँ जब जोखिम उठाने की
मुश्किलें भी तब ज़रा सी लगतीं हैं ।
-अजय प्रसाद

मेरे साथ मुझमें रहता कौन है
जो हमेशा मुझे समझता गौण है ।
अक़्सर अपने बुजदिल ज़मीर पे
चीखता मै हूँ औ वो रहता मौन है ।
-अजय प्रसाद

एक दिन गुमनाम ही जहां से गुजर जाऊँगा
ज़िंदगी तेरी नज़रों से जब मैं उतर जाऊँगा ।
कुछ लोग आएंगे मेरी मैयत पे आसूँ बहाने
ओढ़ कफ़न अपने-वजूद से मुकर जाऊँगा ।
-अजय प्रसाद

भटकना है मेरी फितरत तो मंजिल क्या करे
बेवफ़ा है मेरी तकदीर,तो संगदिल क्या करे ।
तन्हाईयों ने की है इस कदर मेरी तीमारदारी
वीराने अब हैं मेरी जागीर महफ़िल क्या करे ।
-अजय प्रसाद

लौट आया हूँ आज से मै अपने काम पे
कर्तव्यों को ले जाना है मुझे मुकाम पे ।
जुट जाना है शागिर्दों को फिर सँवारने मे
करनी है भविष्य मजबूत उनके नाम पे।
-अजय प्रसाद

अपने इमानदारी की बेबसी पे मायुस न हो
खोकर आत्मसम्मान कभी चापलूस न हो ।
मतकर मिन्नतें अपनी जाया किसी खुदगर्ज पे
भूल जा तु उसे दिल में जिसके खुलूस न हो
-अजय प्रसाद

अपने इमानदारी की बेबसी पे मायुस न हो
खोकर आत्मसम्मान कभी चापलूस न हो ।
मतकर मिन्नतें अपनी जाया किसी खुदगर्ज पे
भूल जा तु उसे दिल में जिसके खुलूस न हो ।
-अजय प्रसाद

ज़ोशो जुनूँ का है अब इज़हार मजहब
हो गया है आदमी का शिकार मजहब ।
करतें कहाँ हैं लोग अब दिल से इबादत
बन गया है राजनीतिक व्यापार मजहब ।
-अजय प्रसाद

किसी संगदिल की मैं चाह, नहीं करता
फना हो ने की मैं परवाह, नहीं करता ।
तुम्हारी शायरी में कोई दम है,तो ठिक
झूठमूठ मैं कभी वाह! वाह! नहीं करता ।
-अजय प्रसाद
जो होता है सब खुदा की मर्ज़ी से होता है
मगर तबाही इंसान की खुदगर्ज़ी से होता है ।
लगे तो रहते हैं “सत्यमेव जयते “की तख्तियां
कहाँ काम दफ्तरों में फक़त अर्जी से होता है ।
-अजय प्रसाद
कई बार कई चिज़ें सही नहीं होती
जैसी दिखती है वो वैसी नहीं होती ।
हर बात खुदा ने है तय कर दिया
यहाँ पे कुछ भी अनकही नहीं होती ।
-अजय प्रसाद
संयम कम और आकांक्षाएँ अपरीमित
लालसाएं असंख्य और साधन सीमित ।
अनियंत्रित जीवन की अनंत प्रतिस्पर्धा
अनवरत संघर्ष है दिनचर्या अनियमित ।
-अजय प्रसाद
वक्त के साथ ही बदलाव आता है
सोंच नयी नया मिज़ाज लाता है ।
तोड़ सारी पुरानी बंदिशे जग की
नया दौर नये रशमों रिवाज़ लाता है ।
-अजय प्रसाद

बंदिशो में रहने का आदी नहीं हूँ
अहिंसा का पुजारी गाँधी नहीं हूँ ।
दिल गर जीत लिया,जान दे दूंगा
लीडरों सा मै अवसरवादी नहीं हूँ ।
-अजय प्रसाद

रो रही थी आज विचारी गाँधी की तस्वीर
हिंसक ही कर रहे थे अहिंसा पर तक़रीर ।
राम राज के नाम पे वर्षो होती रही है लूट
जाने लोकतंत्र की कब बदलेगी तक़दीर ।
-अजय प्रसाद

लाठी में उसकी कोई आवाज़ नहीं होता
बगैर उसके रज़ामंदी के आगाज़ नहीं होता ।
माँ-बाप की दुआ,रब की रहमत भी होती है
फ़कत हौसले से यहाँ परवाज़ नहीं होता ।
-अजय प्रसाद

किसी कमजर्फ़ से अब इल्तिजा क्या करूँ
जब होनी ही नहीं कबूल तो दुआ क्या करूँ ।
चाहता तो हूँ चलना इमानदारी के रास्तों पर
मगर साथ ही न दे जब ये जमाना क्या करूँ
-अजय प्रसाद

गरीबी में जीना और गुमनाम गुजर जाना है
शोषितों,पीड़ितों तुम्हें ये काम कर जाना है ।
मत रखना उम्मीद अपनी तरक़्क़ी का कभी
हर दौर में बस अपने वजूद से मुकर जाना है ।
-अजय प्रसाद

खुदगर्ज़ी से भरे खोखले आश्वासन
बेहद कारगर है बनावटी अपनापन ।
आजकल वो सफल है सियासत में
जो भी करे इमानदारी से दोहरापन।
-अजय प्रसाद

हुस्न से अदावत न कर
इश्क़ से वगावत न कर ।
जीना है खुशहाल ज़िंदगी
मौत से तू नफ़रत न कर ।
-अजय प्रसाद

मजबूरियाँ मेरी आजकल मुझे चिढ़ा रहीं हैं
मायूसी अपनी कामयाबी पे मुस्कुरा रही हैं ।
अश्क़ आँखों में आने से भी लगे है मुकरने
ख्वाहिशें खामोशी से खुदकुशी किये जा रही है ।
मौत हो गयी है मेरे खिलाफ़ रूठ कर मुझसे
ज़िंदगी रोज़ नये हादसों से दिल बहला रही हैं ।
-अजय प्रसाद

भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता
रहम दिलों में भी जरा नहीं होता ।
बेहद उन्मादि खौफनाक इरादों पे
इंसानियत का पहरा नहीं होता ।
बस हिंसक बेकाबू सोंच होती है
रिश्ता मज़हब से गहरा नहीं होता ।
-अजय प्रसाद

खुद के अन्दर , ज़मीर ज़िंदा रख
भले हो दिल से,अमीर ज़िंदा रख ।
ठीक है तू होगा दौलत मंद मगर
ज़ेहन में एक फ़कीर ज़िंदा रख ।
नामुमकिन है कि मासूमियत लौटे
खुद में बचपन शरीर ज़िंदा रख ।
-अजय प्रसाद

बदसूरत को हसीन बताऊँ कैसे
आसमां को ज़मीन दिखाऊँ कैसे ।
कहतें हैं मुल्क में सब खैरियत है
खुद को ये यकीन दिलाऊँ कैसे ।
-अजय प्रसाद

मुझे तू और तबाही के मन्ज़र न दिखा
खोखले इन्क़लाब के समंदर न दिखा
भला होगा खौफज़दा अब क्यों कोई
मर चुका है ज़मीर उसे खंजर न दिखा
सदमे में जम्हुरीयत है जहालत देखकर
सियासत में है कौन सितमगर न दिखा ।
-अजय प्रसाद
रोज़ खुद को आजमाता हूँ
खफ़ा हो के भी मुस्कुराता हूँ ।
मौत महफ़ूज है ज़िंदगी तले
खुद को ही यकीं दिलाता हूँ ।
-अजय प्रसाद
सत्ता की शिकार अवाम हो रही
ज़्म्हुरियत अब निलाम हो रही ।
कल तलक थीं जो बातें पोशीदा
आजकल वो खुलेआम हो रही ।
-अजय प्रसाद
तेरी नज़रो में मैं बुरा ही सही
दे मुझको तू बददुआ ही सही ।
जीउँगा तेरे नफरत के साये में
इश्क़ मेरा सबसे जुदा ही सही ।
-अजय प्रसाद

ज़िंदगी आजकल बे-रहम हो रही है
इंसानियत भी अब खतम हो रही है ।
प्यार, दोस्ती, एहसान,वफ़ा, हैं खफ़ा
अहमियत इन सबकी कम हो रही है ।
-अजय प्रसाद

भयंकर तबाही की जद में है
आजकल आदमी बेहद में है ।
इजाद कर लिये हैं कई नुस्खे
खुश वो अपने खुशामद में है ।
-अजय प्रसाद

कबाड़ से कमाई की उम्मीद वो करतें हैं
यहाँ कुछ बच्चे कचरे को गौर से पढ़तें हैं
उन्हें अपने भविष्य की कोई फ़िक्र नहीं
हर रोज़ जो बेरहम वर्तमान से लड़तें हैं ।
-अजय प्रसाद
इक हमाम में यारों यहाँ सब नंगे हैं
बाहर से दिखे साफ़ भीतर से गंदे हैं ।
नेता-अभिनेता,या पुलिस-प्रशासन
यारों सब आला दर्जे के भिखमंगे हैं।
साठगांठ के बेजोड़ सिकंदर हैं सारे
गोरे गोरे लोग औ इनके काले धंदे हैं।
-अजय प्रसाद

अहंकार से बढ़ कर कोई विमारी नहीं
लालच से बड़ा कोई भी शिकारी नहीं ।
ज़िंदगी खुशगवार उसकी हो जाती है
जो समझता खुद को आधिकरी नहीं ।
-अजय प्रसाद

गिरे हुए लोग क्या किसी को उठाएंगे
वो तो ओछी मानसिकता ही दिखाएंगे।
विरासत में मिली हैं जो बिसंगतियां
तो कहाँ से अच्छे संस्कार ला पाएंगे।
-अजय प्रसाद

फना होने के एहसास से डरता है
वो अपने आस-पास से डरता है।
पहले अपनी हस्ती से डरता था
अब आम और खास से डरता है ।
-अजय प्रसाद

जल गई है रस्सी मगर एँठन नहीं गया
दिल से अभी तक वो बहम नहीं गया।
रौनक तो रूठ के महफिल से जा चुकी
झूठे दिखावे का यारों अदब नहीं गया ।
-अजय प्रसाद

वो जो चीखते थे रील लाईफ में
आज क्यों खामोश हैं वाईफ़ पे ।
-अजय प्रसाद

खोखले रंगीनियों में डूबे हुए लोग
ज़िंदगी की जंग से ऊबे हुए लोग।
बातें करते हैं उन आदर्शो की आज
खुद की हस्ती के मनसूबे हुए लोग ।
-अजय प्रसाद

उंची दुकान और फीकी है पकवान
कितने स्वार्थी होतें हैं नकली महान।
खेल कर जज़्बातों से भूला देतें हैं ये
आखिर हैं किस मिट्टी के बने इन्सान।
-अजय प्रसाद

‘पूछता है भारत’ कब तक करोगे तिज़ारत
मुद्दे के नाम पे टुच्चे बहस और सियासत ।
गले फाड़ कर जो ब्रेकिंग न्यूज़ हो दिखाते
क्या ऐसे ही करोगे तुम सच की हिफाज़त।
-अजय प्रसाद
ग्लैमर की गलीज गलियों मे गुमनाम हैं कई
चकाचौंध के पीछे छिपे हुए बदनाम हैं कई।
बेहद खोखली खुशि और बनावट की हँसी
हक़ीक़त है यहाँ यारों नमक हराम है कई ।
-अजय प्रसाद
हिन्दी की अहमियत की बात करतें हैं
आप तो मासूमियत की बात करतें है ।
जहाँ पावन्न्दियाँ है हिंदि बोलने पर भी
उस जगह हिंदि दिवस बात की करतें हैं ।
-अजय प्रसाद

हम हिन्दी भाषा का कभी अपमान नहीं करतें हैं
बस हिंदी दिवस के अलावे सम्मान नहीं करतें हैं।
-अजय प्रसाद

ये भी अजीबोगरीब तमाशा है
कि हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है।
कहने की कोई ज़रूरत नहीं है
दिखावे ढेर और फिक्र ज़रा सा है ।
-अजय प्रसाद
बेहद अफसोस है कि हिंदी दिवस मनाते हैं
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है विश्व को बताते हैं ।
-अजय प्रसाद

तो आप भी साहित्य में षडयंत्र के शिकार हो गए
भयंकर बुद्धिजीवी मानसिकता के विकार हो गए ।
तब तो आप किसी की भी सुनेंगे ही नहीं,क्या कहूँ
जब आप खुद ही अपने आप से दरकिनार हो गए ।
-अजय प्रसाद

आइने से कहो मेरा हिसाब कर दे
मेरे सामने मेरे उम्र-ए-पड़ाव रख दे।
कब,कैसे और कितना मैं बदल गया
आज तलक का जोड़ घटाव कर दे ।
-अजय प्रसाद

रोज़ खुद को मैं आजमाता हूँ
खफ़ा हो कर भी मुस्कुराता हूँ ।
मौत महफ़ूज है जिंदगी के तले
खुद को ही यकीन दिलाता हूँ ।
-अजय प्रसाद

जनता को भी जगना जरुरी है
लूटना सरकार की मजबुरी है ।
बहुत फायदे में रहतें हैं वो लोग
आती जिन्हें करनी जी हुजूरी है।
***

अगर सब खुदा की मर्ज़ी है
तो फ़िर बेशक़ खुदगर्ज़ी है।
सी देता है तन के ज़्ख्मों को
वक्त फकत नाम का दर्जी है।
-अजय प्रसाद

आसमान से गिरे खजूर में अटक गए
मुद्दे जो थे अपने रास्ते से भटक गए ।
न्यूज़ चैनलों ने तो बना दिया है त्रिशंकु
सच और झूठ के बीच हम लटक गए ।
कौन पूछता है हाल अवाम का यहाँ
बिचारे खुद ही सारे मसले गटक गए ।
-अजय प्रसाद

अच्छाइयाँ मेरी वो जानता है
मुझे अपना दुश्मन मानता है ।
जब जब होती उसे ज़रुरत
तब तब ही वो पहचानता है ।
-अजय प्रसाद

परदे के पीछे के पाखंडी लोग
दौलत नशे में चूर घमंडी लोग।
कितने खोखले किरदार हैं ये
कलयुग के काकभुशंडि लोग।
-अजय प्रसाद

सत्य परेशान हो सकता है,पराजित नहीं
जब तक झूठ को कर दे वो साबित नहीं।
-अजय प्रसाद

सत्य जहाँ अकर्मण्य है
न्याय वहाँ पे नगण्य है ।
लालसा जब हो बेलगाम
सोंचता कौन पाप पुण्य है
-अजय प्रसाद

दोषियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई हो रही है
पुलिस-प्रशासन और सरकार उन्हें ढो रही है ।
कर रहें हैं सज़ा दिलाने का वे पुख्ता इन्तेजाम
और अदालत है कि समय का रोना रो रही है ।
-अजय प्रसाद

और क्या ??
मनाते तो हैं पुण्य तिथी व जयंती और क्या?
मृतात्मा महापुरुषोँ पर इससे ज्यादा गौर क्या?
उनके उच्च विचार भला हमारे किस काम के ?
हैं उनके लिए तो पुस्तकों से बेहतर ठौर क्या ?
-अजय प्रसाद

खाया जिस थाली में हमने उस में ही छेद किया
वतन के मसलों पर अक़सर ही मतभेद किया ।
अपनी डफली अपना राग हमेशा ही सुनाते रहे
औरों के लिए हमने कभी न कोई खेद किया ।
भाड़ में जाए अवाम हमें क्या लेना-देना है यारों
बस पैसों के लिए हमने खुद को मुस्तैद किया ।
-अजय प्रसाद

समाज जब सबकुछ चुपचाप स्वीकारता है
तब ये अनैतिकता अपने पाँव पसारता है ।
ध्रितराष्ट्र जब पुत्र मोह में चुपचाप रहता है
तभी द्रौपदी की साड़ी दुशासन उतारता है।
-अजय प्रसाद

अपनी नज़रों से खुद को गिरा कर आया हूँ
इंसानियत से पिछा मैं छुड़ा कर आया हूँ । किसी बात का होता मुझपे कोई असर नहीं
दिल को जब से मैं पत्थर बना कर आया हूँ ।
-अजय प्रसाद

क्या उन्हें मशवरा देना
बस हाँ में हाँ मिला देना ।
देखना दरक जाएगा खुद
दर्पण को उन्हें दिखा देना ।
क्या कहने उनकी हँसी का
फूल कोई जैसे खिला देना।
-अजय प्रसाद

आइये आसान को जटिल बनाते हैं
किसी अहमक को आलिम बनाते हैं ।
जो है उसमें खुश रहते हैं हम कहाँ
जो नहीं मिला उसे तक़दीर बनाते हैं।
-अजय प्रसाद

रोज़ वायदे कर के तोड़ देता हूँ
खुद को अपने हाल पे छोड़ देता हूँ
खफ़ा रहते है मुझसे ख्वाब मेरे
अक़सर बुनकर उन्हें तोड़ देता हूँ
-अजय प्रसाद

उसे अपनी खूबसूरती पर नाज़ है
मगर मेरी आँखो के लिए खाज़ है।
नहीं फिदा होना मुझे उस चेह्र पर
वजूद जिसका कल नहीं आज है।
-अजय प्रसाद

तू कभी मुझे आजमा कर तो देख
दायरा-ए-दोस्ती में लाकर तो देख ।
रख दूँगा मैं कायनात तेरे कदमों में
बस इक बार मुस्कुराकर तो देख ।
-अजय प्रसाद

खुद को कहीं उलझा कर देख
उलझन किसीकी सुलझा कर देख।
देखनी गर है यां हैसियत अपनी
फूलों की तरहा मुरझा कर देख ।
-अजय प्रसाद

सतर्क और सुरक्षित रहें
मरने को भी अपेक्षित रहें ।
जन्मे हैं आप दलितों के घर
ज़िंदगी भर उपेक्षित रहें ।
-अजय प्रसाद

जब खामोशी से आप सब कुछ स्वीकारतें हैं
मतलब आप अपने ही वजूद को दुत्कारतें हैं ।
जिसे आपने बड़े प्यार से पाला था आस्तीन में
ये वही साँप है जो आजकल फुफकारतें हैं ।
-अजय प्रसाद

मुलभुत ढांचे में ऐसा बदलाव हो
सर्दियों में सबके लिए अलाव हो।
इस कदर इन्तज़ाम कर या खुदा
कभी किसी को न कोई अभाव हो
-अजय प्रसाद

चलिए ले चलें सभ्यता-संस्कृति से दूर
देखतें हैं आज वेब सीरीज़ मिर्ज़ापुर।
बेहतरीन हैं अदाकार और अदाकारी
गालियाँ सुनने को भी हैं करतें मजबूर ।
-अजय प्रसाद

आजकल बच्चे जब बड़े हो जाते हैं
खुद के ही खिलाफ खड़े हो जाते हैं।
भुला देते हैं कुर्बानियां वो माँ बाप के
जब अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं ।
-अजय प्रसाद

कबूल मेरी ये दुआ हो जाए
इंसानियत भी वबा हो जाए ।
बरपाये कहर कायनात पर
इन्सानो का भला हो जाए ।
-अजय प्रसाद

.

सहूलियत के हिसाब से समाचार दिखातें हैं
क्योंकि उसी कमाई से घर परिवार चलाते हैं ।
फ़ायदा चाहिए चैनेल को हर हाल में बस
आईये मौके के मुताबिक मुद्दों को उठाते हैं ।
***
खुद की ही बुराई आप क्यों नहीं करते
एक साथ पुण्य औ पाप क्यों नहीं करते ।
नुक्स निकालतें हैं दूसरों की बहुत जल्द
खुद की भी सफाई आप क्यों नहीं करते ।
-अजय प्रसाद

अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार रहे हैं
अवाम पे वो गुस्सा अपना उतार रहे हैं ।
लगता है उनकी नज़रों में गड़ गया हूँ मैं
आजकल जता मुझसे बहुत प्यार रहें हैं ।
-अजय प्रसाद

छुरियाँ दोस्तों उनके दिलों पर ही चलती है
मेरी मौजूदगी महफिल में जिनको खलती है ।
बेअदबी मेरी उनको बिल्कुल बर्दाश्त नहीं
तारीफ़ कोई भी करे जुबां उनकी जलती है ।
-अजय प्रसाद

यहाँ कोई किसी का हमेशा-हमेशा नहीं होता
सियासत में कोई अपना पराया नहीं होता ।
सहूलियत देख कर साथ देतें हैं एक दूजे का
कोई दोस्ती,दुश्मनी या भाईचारा नहीं होता ।
****

क्यों न बहती गंगा में हाथ धो लूँ मैं
थोड़ी सी घड़ियालि रोना रो लूँ मैं ।
कहीं मौका मुकर न जाए मुझसे
कुछ देर खुद के साथ भी हो लूँ मैं।
-अजय प्रसाद

ज़िंदगी से उबरना चाहता हूँ
खुदा अब मैं मरना चाहता हूँ ।
घुटन होने लगी है शराफत में
ज़रा सा मैं बिगड़ना चाहता हूँ।
-अजय प्रसाद

दायरे में वो अपने सिमट गया
ज़िंदगी औ मौत से निपट गया ।
उम्रभर न ढँक सका जो तन को
कफ़न से आज वही लिपट गया ।
लाश में भी थी लज़्ज़त गज़ब की
देखते हीआंखोँ से आसूँ रपट गया ।
-अजय प्रसाद

टकराने का अंज़ाम बस लहरों से पूछो
मुस्कुराने का अंज़ाम इन अधरों से पुछो।
गुजारी है जिन्होंने तमाम उम्र सन्नाटे में
किस कदर है गुजरी जरा बहरों से पूछो ।
थे कभी खुशहाल जो गाँव की शक्ल में
हैं कितने आज बेचैन उन शहरों से पूछो।
-अजय प्रसाद

जी मिलिये हमारे पड़ोसी से,रहते हैं बगल मे
अक़सर हम मिलतें रहते है फ़ेसबुक पटल पे।
वहीं दुआ सलाम कर लेते हैं घनिष्टता के साथ
हम वक्त जाया नहीं करतें साथ-साथ टहल के
जब हर मौके के वास्ते है इमोजी वहाँ मौजुद
तो क्यों फ़िर तकलीफ करें हम गले मिल के ।
-अजय प्रसाद

सवाल दर सवाल मगर जवाब सिफ़र है
जो आने वाला था वो इन्क़लाब किधर है।
तू तो कहता था कि सब महफ़ूज है यहाँ पे
मगर यहाँ ऐसा कौन है जो मौत से निडर है
-अजय प्रसाद

उगे हैं सहित्यिक मंच कुकुरमुत्ते जैसे
बिल्कुल अनगिनत पेड़ों के पत्ते जैसे ।
हर कोई कर रहा है सेवा साहित्य की
मधुमक्खियाँ करतीं मधु के छत्ते जैसे ।
-अजय प्रसाद

आधे अधूरे मन से काम मत करना
मदारी के जमूरे से काम मत करना ।
तुम्हें अपना न सके जो हर हालत में
ज़िंदगी कभी उसके नाम मत करना
-अजय प्रसाद

एक दूसरे की गल्तियां गिनाने लगे हैं
मतलब कुर्सियां अपनी बचाने लगे हैं ।
अब कौन कितना गिरा हुआ है यहाँ
बस यही सियासतदां बताने लगे हैं ।
-अजय प्रसाद

मुझे अनरगल उटपटांग कुछ कहना है
चैनलों के सुर्खियों में बने जो रहना है ।
इतनी सस्ती पब्लिशिटी छोड़ दूँ कैसे
आखिर कीमती किफायत भी करना है
-अजय प्रसाद

आंखों में सब मंज़र चुभते हैं
हालात के ये खंजर चुभते हैं ।
लाख खो जाऊँ मैं रंगीनियों में
खोखले से ये समंदर चुभते हैं।
-अजय प्रसाद

आगई है आज अक्ल ठिकाने प्रकाशकों की
जो चाटुकारिता में निपुण थे शाहकारों की ।
तकनीक ने दिया है इनको वो तगड़ा झटका
भूल गए हैं अपनी अकड़ पिछ्ले दशकों की ।
-अजय प्रसाद

इन्सान खुदा

हमारी भी कुछ हैसियत है क्या
अच्छा! तो हमें क्यों नहीं पता ।
सदियाँ गुजर गयी समझने में
मालिक कौन? इन्सान या खुदा ।
-अजय प्रसाद

सहरा में हूँ नागफनी की तरह
दोस्ती में हूँ दुश्मनी की तरह।
हैसियत की तू हकीकत न पूछ
खुद घर में हूँ अलगनी की तरह।
-अजय प्रसाद
बहस और विवाद ज़रूरी है
हर्ष और विषाद ज़रूरी है।
ताकी खड़ा रहे ज़्म्हुरियत
जनतंत्र की बुनियाद ज़रूरी है ।
-अजय प्रसाद

जैसा हूँ वैसा ही मंजूर कर
वरना अपने आप से दूर कर ।
रहने दे मुझको तू मेरी तरह
तेरी तरहा यूँ मत मजबूर कर ।
-अजय प्रसाद

हम होंगे कामयाब एक दिन
ज़र्रे से आफताब एक दिन ।
जो आज कह रहे हैं नक्कारा
कहेंगे वही नायाब एक दिन ।
-अजय प्रसाद

मुझे वरगलाने की बात करता है
कहीं दिल लगाने की बात करता है ।
लोग यहाँ कितना किफायत करतें हैं
और ‘वो’ सब लूटाने की बात करता है ।
-अजय प्रसाद

शक़्ल में फूलों के खार मिलें
दुश्मनी निभाने को यार मिलें ।
ठोकरों ने है संभाला अक्सर
सबक मुझको हर बार मिलें ।
-अजय प्रसाद

एक दिन गुमनाम ही जहां से गुजर जाऊँगा
ज़िंदगी तेरी नज़रों से जब मैं उतर जाऊँगा ।
कुछ लोग आएंगे मेरी मैयत पे आसूँ बहाने
ओढ़ कफ़न अपने-वजूद से मुकर जाऊँगा ।
-अजय प्रसाद

वादे से मुकरना दुनिया ने सिखाया
आगे से गुजरना दुनिया ने सिखाया ।
कब,कँहा,किससे, कितना और कैसे
मुझे है उबरना दुनिया ने सिखाया ।
-अजय प्रसाद

लिए कांधे पर खुद की लाश ज़िंदा हूँ
ज़िंदगी,मैं तेरी रुसवाई पे शर्मिन्दा हूँ ।
जो कभी किसी का एक जैसा न रहा
उसी वक्त के हाथों पीटा गया कारिंदा हूँ ।
-अजय प्रसाद

अपनी शर्तों पे जिया है और कुछ नहीं
मुझ पे रहमते खुदा है और कुछ नहीं ।
जिंदगी भर बस मुसलसल जद्दोजहद
आंधियों में एक दिया है और कुछ नहीं ।
-अजय प्रसाद

दौलत,शोहरत,तोहफे,तमगे न पुरस्कार चाहिए
बस आप के दिलों में खुद के लिए प्यार चाहिए ।
जो मिले,जब मिले और जैसे जिस हाल में मिले
नज़रों में आदर, अपनापन और सत्कार चाहिए ।
-अजय प्रसाद

उसकी नफरतों से निखर गया
इश्क़ में मैं इस कदर गया ।
मेरी बद हवासी का आलम न पूछ
तवाही की तरफ़ ,खुश हो कर गया ।
-अजय प्रसाद

अपने हिस्से की हम दुनिया दारी रखें
कुछ तो अपने अंदर भी इमानदारी रखें ।
कोसना सरकार को हमेशा ठिक नहीं
जितनी हो सके उतनी ज़िम्मेदारी रखें ।
अगर करतें हैं उम्मीद दूसरों से वफ़ा की
तो उनके लिए भी दिल में वफादारी रखें ।
-अजय प्रसाद
शहर दर शहर है अन्दोलनों का कहर
किसे फ़िक्र,अवाम है परेशां किस कदर ।
तोड़फोड़,आगजनी और हिंसक प्रदर्शन
कौन फैला रहा है ये अशान्ति का ज़हर ।
-अजय प्रसाद

किस कदर आज है मजबूर आदमी
अपनों से भी हो गया है दूर आदमी ।
किसकी खता थी कौन भुगत रहा है
सोंचता है बैठ कर बेकसूर आदमी ।
-अजय प्रसाद
संयम कम और आकांक्षाएँ अपरीमित
लालसाएं असंख्य और साधन सीमित ।
अनियंत्रित जीवन की अनंत प्रतिस्पर्धा
अनवरत संघर्ष है दिनचर्या अनियमित ।
-अजय प्रसाद

Language: Hindi
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