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19 Nov 2020 · 1 min read

मुक्तक

कोई तो है जो निज़ाम को चला रहा है
सूरज, चांद, तारों को जला बुझा रहा है
तेरे लिए कितनों ने खुद को मिटा डाला
खुदा, ईश्वर तो कोई ईशु बता रहा है।

अपनों की जलन का मारा हुआ है आदमी का मन
खुद की औलाद से हारा हुआ है आदमी का मन
सारी उम्र उलझनो में गुज़ार देता है आदमी
अब तो सागर सा खारा हुआ है आदमी का मन।

रंगीन शहर नहीं मुझे मेरा सादा गांव चाहिए
एसी कूलर नहीं नीम , बरगद की छांव चाहिए
भौतिक संसाधन तो केवल ‌क्षणिक सुख दे पाते हैं
असल ‌सुख के लिए दया ,प्रेम,त्याग का भाव चाहिए।

नूर फातिमा खातून नूरी जिला-कुशीनगर‌‌‌

Language: Hindi
1 Comment · 508 Views
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