मुक्तक
वो शब्द कहाँ से लाऊँ, तेरी प्रतिछाया जिसे बनाऊँ
एक माँ की जाई हम, आ तेरी परछाईं मैं बन जाऊँ।
तू उर में ही मेरे रहती है, कहां कहीं और तू बसती है
मुझ में थोड़ा तू रोती है मुझ में ही तो तू हसती है।
तू कहे अगर तो मैं अद्भुत कुछ ऐसा कर जाऊँ
खुद में ही तेरी प्रतिछाया बन थोड़ी निखर आऊँ ।
…सिद्धार्थ