मुक्तक
हमने ठोकरों में रखा है एहसास-ए-मसर्रत को
तुम्हें गर दरकार हो इसकी तो लेते हुए जाना !
…सिद्धार्थ
२.
दिल से याद कर मगर फ़रियाद न कर
दिल कि बातों को तू यूँ खुलेआम न कर
३.
हम मौसमों की तरह बदलने के कायल नहीं
पहले से ही हम घायल हैं और घायल न करो !
…सिद्धार्थ