मुक्तक
जब शहर की उदास सी चुप-चाप शाम देखता हूं
गांव में चिड़ियों का चहकना खूब याद करता हूं
अब उदास फिरता हूं इस शहरी पक्के रास्तों में
गांव की पगडंडी की ठोकरें खूब याद करता हूं
सजन
जब शहर की उदास सी चुप-चाप शाम देखता हूं
गांव में चिड़ियों का चहकना खूब याद करता हूं
अब उदास फिरता हूं इस शहरी पक्के रास्तों में
गांव की पगडंडी की ठोकरें खूब याद करता हूं
सजन