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11 Jan 2017 · 1 min read

मुक्तक

दो मुक्तक

उदय
उदयाचल से उदित हुआ नव रश्मि दिनमान
रक्तिम आभा फ़ैल गई धरती आसमान
नई किरण नई आशा प्रेरणा का स्रोत है
जीव जंतु बनस्पति सबको देता है प्राण |
अस्त
उदय गिरि से अस्ताचल तक आता है चलकर
अस्त होता है संध्या बेला बिलकुल थककर
चाँद तारे स्वागत में उनके हाज़िर नभ में
रात्रि विराम के बाद फिर उदित होता दिनकर |
© कालीपद ‘प्रसाद’

Language: Hindi
260 Views
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