मुक्तक — प्रकृति एवं प्रवृत्ति
(१)प्रकृति के साथ प्रवृत्ति विचित्र है।
सबके अपने चरित्र है।
कोई शत्रु किसी का,
वही दूसरे का मित्र है।
चाहते हैं हम भाव एक हों,
नाम जिसका “पवित्र” है।
(२) चिंतन में चैतन्यता, जन-जन में जागे चेतना।
समाज में हो समरसता, समझे सब की वेदना।
नेह बरसे, कोई ना तरसे, घर घर हरसे,
खुशियां ही खुशियां होगी, अनुनय विचार करके देखना।
(३) यह तन, जिस में बसा हमारा मन।
त्याग समर्पण ही सच्चा जीवन।
खिले क्यारियां, महके उपवन,
बना लिया, मैंने इसको ही अपना धन।।
राजेश व्यास अनुनय