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23 Jul 2020 · 1 min read

मुकद्दर मजदूर का

रात भर सपनों में खुशहाल संसार देखा,
सुबह हुई तो काँच सा बिखरा हुआ मंजर देखा,
चहुं ओर चिल्लाती चिखती खामोशी दिखी,
वही काँपती हाथ और वही बिफरा मजदूर दिखा |

चाहता है ‘मनोहर’ भी, हर मजदूर का लेखा बदलना,
ऐसा हसीं सपना, है क्या कभी किसी ने देखा ?
भूख से बिलखती, दाल रोटी को तरसती,
हर तरफ मानवता की बिलखती तस्वीर देखा |

रुस्वाईयाँ हीं नज़र आयीं हर तरफ, जिधर देखा,
टकटकी लगाये आँखों में प्रेम मांगती आस देखा,
बसंती फूलों के इंतजार में खो गए थे हम कहाँ,
आँख खुली और जागे तो वही बेबस इंसान देखा |

जाने क्यों अजनबी सा हुआ अपना ये संसार देखा,
देखते हीं रह गए ‘मनोहर’, हमने ज़िधर भी देखा,
गरीब के इस नसीब में अनगिनत गम भरमार देखा,
अमीर को खुशियों का हकदार, मजदूर का ऐसा मुकद्दर देखा |

लेखक – मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव
पता- निकट शीतला माता मंदिर , शितला नगर , ग्राम तथा पोस्ट – बिजनौर , जिला – लखनऊ , उत्तर प्रदेश , भारत , पिन – 226002
सम्पर्क – 8787233718
E-mail – manoranjan1889@gmail.com

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