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10 Aug 2020 · 1 min read

मिली एक नारी सु कुमारी, फिरभी इधर उधर तकता है।

मिली एक नारी सु कुमारी, फिर भी इधर उधर क्यों फिरता है
घर की मुर्गी दाल बराबर, नैन मटक्का करता है
घर में पढ़ा रहे घोंघे सा, बाहर बहुत उचकता है
मौन व्रत साधता है घर में, बाहर बातें रस ले ले कर करता है
घर में रहता है उदास, बाहर रोमांटिक हो जाता है
नहीं सुहाते पकवान घरों के, बाहर सब कुछ खाता है
कब समझेगा मूरख प्राणी, क्यों समझ नहीं आता है
लटक रहे हैं पैर कबर में, फिर भी सोच न पाता है

सुरेश कुमार चतुर्वेदी

Language: Hindi
11 Likes · 10 Comments · 256 Views
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