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30 Dec 2017 · 1 min read

मिलन तो दो रूह का होता है क्यों लोग जिस्म का खेल समझते है

मिलन तो दो रूह का होता है
क्यों लोग जिस्म का खेल समझते है

अपनी जिस्म की प्यास बुझाने के लिए
क्यों नदी का बहता आब समझते है

चाँद तारे तोड़ लाना सम्भव नही
तो क्यों झूठे वादे बेहिसाब करते है

नहीं बहता आब रेत के समुन्द्र में
क्यों रेत में आब की तलाश करते है

वज़न था, नम रेत में कल तक आब से
आज सूखे रेत को रेगिस्तान की आग कहते है

नहीं बुझती प्यास जब आब से
उस दर दर भटकने को ही तो तलाश कहते है

भूपेंद्र रावत
30/12/2017

1 Like · 261 Views
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