मिलन तो दो रूह का होता है क्यों लोग जिस्म का खेल समझते है
मिलन तो दो रूह का होता है
क्यों लोग जिस्म का खेल समझते है
अपनी जिस्म की प्यास बुझाने के लिए
क्यों नदी का बहता आब समझते है
चाँद तारे तोड़ लाना सम्भव नही
तो क्यों झूठे वादे बेहिसाब करते है
नहीं बहता आब रेत के समुन्द्र में
क्यों रेत में आब की तलाश करते है
वज़न था, नम रेत में कल तक आब से
आज सूखे रेत को रेगिस्तान की आग कहते है
नहीं बुझती प्यास जब आब से
उस दर दर भटकने को ही तो तलाश कहते है
भूपेंद्र रावत
30/12/2017