मिट्टी को जब वो चाक धरे
शीर्षक:मिट्टी को जब वो चाक धरा,
मिट्टी को कुम्हार ने गूंथ लिया
और अपना कार्य शुरू किया।
फिर चढ़ा चाक पर रूप गढ़ा
अनेक रूप दे बर्तन को मढ़ा।
बर्तन मिट्टी से बना के धरा
मिट्टी को चाक पर उसने धरा।
मिट्टी से बना डाली गुल्लक
साथ हक बना डाला कुल्हड़।
एक रूप मटके को दिया
उसने ही पानी को ठंडा किया।
मिट्टी की खुशबू दे कुल्हड़
देशभक्ति याद दिलाती हैं।
मिट्टी का दिया बन जाता हैं
प्रभु चरणों मे जल जाता हैं।
सब तरफ रोशनी होती हैं
जब तेल दीप में जलता हैं।
प्रभु मेरे घर आ जाना तुम
मैं दिया मिट्टी का जलाऊंगी।
हैं नमन कुम्हार तुम्हे मेरा
जो दीप दिया तुमने मुझको।
हैं नमन करती मंजु गुरु को
उन्होने ही गढ़ा मुझको धट सा।
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद