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6 Sep 2021 · 2 min read

यौवन की दहलीज पे आकर ……कुछ परिवर्तन होते हैं

गुड़िया रानी के हृदय का
तुमको हाल बताते हैं
एक पुराना किस्सा तुमको
आओ आज सुनाते हैं….!

(01)
बारह वरस की नन्हीं गुड़िया
समझ न पाई कुछ बातें
इसी सोच में , इसी दर्द में
बीत गयीं लम्बी रातें…!

लाल-लाल ये खून कहाँ से
कच्छु में आ जाता है
साफ नया मैं जब भी पहनूँ
वो गन्दा हो जाता है….!

काहे दुखता पेट हमारा
काहे जी मिचलाता है
किस्से पूछूँ कौन बताये
कुछ भी समझ न आता है…!

माँ देखेगी मेरे कपड़े
वो गुस्सा हो जाएगी
गुड़िया रानी सोच रही थी
क्या उनको बतलायेगी…!

माँ की नज़र पड़ी कोने में
वहाँ पड़े कुछ कपड़ों पर
छुप कर देख रही थी गुड़िया
लाल लहू था कपड़ों पर…!

समझ गयी उसकी प्यारी माँ
तुमको राज बताते हैं
एक पुराना किस्सा तुमको
आओ आज सुनाते हैं…!

(02)
बड़े प्यार से मैया ने आ
उसको पास बिठाया है
बोलो बिटिया हमें देखकर
काहे मन घबराया है…!

डरते डरते गुड़िया रानी
मन का हाल सुनाती है
तीन दिनों से कह ना पाई
वो सब बात बताती है….!

कई दिनों से मैया मेरा
पेट बड़ा ही दुखता है
कपड़े इतने बदल लिये पर
पानी लाल न रुकता है…!

जब टॉयलेट मैं जाती हूँ
लाल रंग की आती है
खेल नहीं पाती मैं बिलकुल
चिन्ता खूब सताती है…!

सोच-सोचकर गुड़िया रानी
ख़ुद बातों में उलझ गई
इतना सुनकर उसकी मैया
हालत सारी समझ गई….!

फिर कैसे समझाया माँ ने
आगे तुम्हें बताते हैं
एक पुराना किस्सा तुमको
आओ आज सुनाते हैं…!

(03)
माँ बोली गुड़िया रानी से
बैठो तुम्हें बताती हूँ
क्या होता है मासिक धर्म ये
आज तुम्हें समझाती हूँ….!

यौवन की दहलीज़ पे आकर
परिवर्तन कुछ होते हैं
हर लड़की के ऊट्रस में सुन
अण्डे पैदा होते हैं …!

तीस दिनों तक रहें सुरक्षित
अन्तिम दिन वो जाते टूट
कहें इसी को मासिक धर्म
लाल लहू बहता है फूट …!

देख लहू घबराना मत तुम
ये कुदरत की माया है
माँ बनने की प्रतिक्रिया में
पहला क़दम बढ़ाया है …!

गले लगाकर बोली मैया
गुड़िया रानी बड़ी हुई
योवन की दहलीज पे आकर
मेरी बच्ची खड़ी हुई…!

मासिकधर्म के कारण ही तो
हम सब माँ बन पाते हैं
एक पुराना किस्सा तुमको
आओ आज सुनाते हैं….!

(04)
घबराने की बात नही है
ना डरना है अब तुमको
बड़े ध्यान से सुनना मेरी
क्या करना है अब तुमको…!

हर लड़की के जीवन मे ये
पल इक दिन तो आता है
चक्र चले प्रत्येक महीने
मासिकधर्म कहाता है…!

तीन दिवस से पाँच दिवस तक
रहता है ये मासिकधर्म
पीड़ा-औ-कमजोरी में तुम
करो न कोई भारी कर्म…!

जब भी आगे आयें ये पल
कभी नही घबराना तुम
कॉटन का इक पैड लगाकर
कपड़े सदा बचाना तुम….!

सुनो ख़ुशी से बड़े प्यार से
इस पल को अपनाना तुम
जो भी आज बताया तुमको
औरों को समझाना तुम …!

इस कविता के माध्यम से अब
अदभुत पल महकाते हैं
एक पुराना किस्सा तुमको
आओ आज सुनाते हैं…!

© डॉ० प्रतिभा ‘माही’ पंचकूला

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