Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Jun 2020 · 4 min read

मायके

कुवार का महीना था रिमझिम बरसात का मौसम था और अगले दिन शारदीय नवरात्र चढ़ने वाला था। उस दिन मैं दोपहर तीन बजे के करीब सो कर उठा तो देखा कि मां खेतों से घास काट के आई और डेली लेदी कटा घर में रख दी और झटपट तैयार होने लगी। मुझसे बोली बेटा तू भी तैयार हो जा और मुझे अपने ननिहाल पहुंचा दे।

बात यह थी कि उस दिन दिनभर रुक-रुक कर बारिश हुई थी और उस समय भी बारिश होने की संभावना थी जिसके कारण समय दोपहर हो गया था। उस समय घर पर सब कोई उपस्थित था जैसे की भाभी, पिताश्री, बड़े भैया आदि पर किसी को यह हिम्मत नहीं हो रहा था कि वह कह दे जे ए मां आज रुक जा क्योंकि दिन भर बारिश हुई है और फिर बारिश होने की संभावना है, कल मायके चले जाना। डरते – डरते मैंने कहा मां आज रुक जा बारिश हो रही है, कल चले जाना पर मां नहीं मानी। अगर एही बात भाभी कहती की ए मां आज रुक जाइए कल मामा जी के यहां चले जाइएगा तो मां यह कहती की तुमको जाना होता है तो अपने भाई को बुला करके अपने मायके चले जाती है और मेरे मायके से फोन आया है और जा रही हूं तो सब बारिश का बहाना बनाकर रोक रहा हैं। इसी के कारण किसी ने मना नहीं किया।

बस मां मानने वाली कहां थी? झटपट तैयार हो गई और मैं भी तैयार हो करके बाइक निकाल ली। मां को गाड़ी पर बैठाया और अपने मोतीपुर गांव से निकल करके महज तीन किलोमीटर दूर जैसे ही बलुआ रमपुरवा गांव में पहुंचा की बारिश होना शुरू हो गई। बस सड़क के किनारे एक गुमटी थी, उसी गुमटी में बारिश से बचने के लिए छिप गयें।

कुछ देर तक बारिश होने लगी तब मैं मां से बोला मां आप से घर पर ही बोला था कि आज मत जाओ पर आप नहीं मानी अभी से कहता हूं। यहां से घर चला जाए ज्यादा दूर हम लोग नहीं आ पाए हैं। नहीं तो मामा जी के यहां जाते – जाते रास्ते में ही हमलोग भीग जाएंगें। अब मां को लगा कि हम इन्हें घर लौटा ले जाएंगे। जिसके वजह से उन्होंने कहा बेटा चलो हमलोग चलते हैं। इसी बारिश में, धीरे-धीरे तो बारिश हो रही है। मुझे समझ में आ गया की मां मानने वाली नहीं है। बस मैं कुछ देर के लिए चुप हो गया और बोला मां ठीक है आपकी इच्छा है तो मैं पहुंचाऊंगा लेकिन थोड़ा बारिश धीमी हो जाए तो चला जाएगा। तब तक बारिश धीमी हो गई और फिर मैंने गाड़ी स्टार्ट किया और चल दिया। कुछ दूर आगे बढ़ा तब तक पेट्रोल पंप मिला वहां से तेल गाड़ी में डलवाया। तब तक फिर तेजी से बारिश होने लगी। अब वहां भी रुकना पड़ा। उस समय मैंने देखा कि मां के अंदर मायके जाने को लेकर बहुत ही उमंग और उत्साह हैं। इससे मुझे लगा कि मां को पहुंचा देना ही ठीक है। तब तक बारिश छूट गई। फिर मैंने गाड़ी स्टार्ट किया और चल दिया जैसे ही मैंने एक चौक को पार किया। तब तक मां अचानक से बोली, बेटा ए कौन सा चौक है? मैंने बताया की यह नाथ बाबा चौक है। कुछ देर आगे बढ़ा तो फिर उन्होंने पूछा, बेटा ए कौन सा गांव है? फिर मैंने बताया की मां यह नाथ बाबा चौक से आगे की ओर जितना हमलोग आए हैं, ये सारे बगही गांव में आते हैं।

इस तरीके से वह अजीबो – गरीब सवाल पूछ रही थी और उनके अंदर बहुत ही उमंग और उत्साह था मायके जाने को लेकर। ऐसा लग रहा था जैसे कोई नई नवेली दुल्हन जो पहली बार अपने मायके जा रही है। ऐसा नहीं था कि वह पहली बार अपने मायके जा रही थी या बहुत दिनों के बाद जा रही थी। कई बार अपने मायके गई है, गाड़ी से गई है, पैदल भी गई है और उसी रास्ते से गई है। उसके बावजूद भी आज अजीबो – गरीबों बातें सुनने को मिल रही थी। अब इस सारी बातें को सुनकर मुझसे रहा नहीं गया और मैं मां से पूछ लिया की मां इस बार मामा जी के यहां जाने को लेकर आपके अंदर इतना उमंग और उत्साह क्यों हैं? तब मां ने बताया कि देखो बेटा ऐसा सौभाग्य मुझे बीस वर्षों के बाद मिली हैं। क्योंकि इसी तरह बीस वर्ष पहले शारदीय नवरात्र के शुभ अवसर पर मुझे मायके के से बुलावट आई थी। उस समय तुम्हारी नानी जिंदा थी और मैं यही पर नवरात्र की थी। फिर वही सौभाग्य मुझे आज प्राप्त हुई है कि मेरी मां के गुजर जाने के बाद पहली बार शारदीय नवरात्र के शुभ अवसर पर मुझे बुलाया गया है और इस बार के नवरात्र यही पर करुंगी।

तब जाकर मुझे समझ में आया कि मायके जाने को लेकर मां इतना उत्साहित क्यों थी? लेकिन एक बात यह भी सच है कि औरत कभी भी अपने मायके जाने को लेकर हमेशा उत्साहित रहती हैं।

लेखक – जय लगन कुमार हैप्पी ⛳

Language: Hindi
3 Likes · 4 Comments · 430 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
घाघरा खतरे के निशान से ऊपर
घाघरा खतरे के निशान से ऊपर
Ram Krishan Rastogi
कुछ भी रहता नहीं है
कुछ भी रहता नहीं है
Dr fauzia Naseem shad
"बचपने में जानता था
*Author प्रणय प्रभात*
कुछ तो गम-ए-हिज्र था,कुछ तेरी बेवफाई भी।
कुछ तो गम-ए-हिज्र था,कुछ तेरी बेवफाई भी।
पूर्वार्थ
यक्ष प्रश्न
यक्ष प्रश्न
Shyam Sundar Subramanian
मेरी  हर इक शाम उम्मीदों में गुजर जाती है।। की आएंगे किस रोज
मेरी हर इक शाम उम्मीदों में गुजर जाती है।। की आएंगे किस रोज
★ IPS KAMAL THAKUR ★
तीजनबाई
तीजनबाई
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
"वक्त के गर्त से"
Dr. Kishan tandon kranti
उलझनें तेरे मैरे रिस्ते की हैं,
उलझनें तेरे मैरे रिस्ते की हैं,
Jayvind Singh Ngariya Ji Datia MP 475661
दया समता समर्पण त्याग के आदर्श रघुनंदन।
दया समता समर्पण त्याग के आदर्श रघुनंदन।
जगदीश शर्मा सहज
सत्य की खोज
सत्य की खोज
dks.lhp
वाह टमाटर !!
वाह टमाटर !!
Ahtesham Ahmad
" सत कर्म"
Yogendra Chaturwedi
मेरे सिवा कौन इतना, चाहेगा तुमको
मेरे सिवा कौन इतना, चाहेगा तुमको
gurudeenverma198
एक तो गोरे-गोरे हाथ,
एक तो गोरे-गोरे हाथ,
SURYA PRAKASH SHARMA
विषय -परिवार
विषय -परिवार
Nanki Patre
चातक तो कहता रहा, बस अम्बर से आस।
चातक तो कहता रहा, बस अम्बर से आस।
Suryakant Dwivedi
किस्मत की लकीरें
किस्मत की लकीरें
Dr Parveen Thakur
*किसी की भी हों सरकारें,मगर अफसर चलाते हैं 【मुक्तक】*
*किसी की भी हों सरकारें,मगर अफसर चलाते हैं 【मुक्तक】*
Ravi Prakash
3035.*पूर्णिका*
3035.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
परिश्रम
परिश्रम
ओंकार मिश्र
--शेखर सिंह
--शेखर सिंह
शेखर सिंह
मन पतंगा उड़ता रहे, पैच कही लड़जाय।
मन पतंगा उड़ता रहे, पैच कही लड़जाय।
Anil chobisa
धर्म-कर्म (भजन)
धर्म-कर्म (भजन)
Sandeep Pande
सर्वे भवन्तु सुखिन:
सर्वे भवन्तु सुखिन:
Shekhar Chandra Mitra
नारी का बदला स्वरूप
नारी का बदला स्वरूप
विजय कुमार अग्रवाल
वक्त और हालात जब साथ नहीं देते हैं।
वक्त और हालात जब साथ नहीं देते हैं।
Manoj Mahato
साँसों के संघर्ष से, देह गई जब हार ।
साँसों के संघर्ष से, देह गई जब हार ।
sushil sarna
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
Loading...