मानवावतार (आलेख)
विषय :- मानवावतार
#मङ्गलाचरण:-
अविकाराय शुद्धाय नित्याय परमात्मने।
सदैकरूपरूपाय विष्णवे सर्वजिष्णवे।।
नमो हिरण्यगर्भाय हरये शङ्कराय च।
वासुदेवाय ताराय सर्गस्थित्यन्तकारिणे।।
जो ब्रह्मा, विष्णु और शंकर रूप से जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और संहार के कारण है तथा अपने भक्तों को संसार सागर से तारने वाले हैं, उन विकाररहित, शुद्ध, अविनाशी, परम तत्व परमात्मा, सर्वदा एकरस सर्वविजयी भगवान् वासुदेव विष्णु को प्रणाम करता हूँ।
अवतार (धातु ‘तृ’ एवं उपसर्ग ‘अव’) शब्द का अर्थ है- उतरना अर्थात् ऊपर से नीचे आना। यह शब्द देवों के लिए प्रयुक्त हुआ है, जो मनुष्य अथवा, पशु के रूप में इस पृथ्वी पर अवतीर्ण होते हैं, और, तब तक रहते हैं, जब तक कि, वह उद्देश्य, जिसे वे लेकर यहाँ आते हैं, पूर्ण नहीं हो जाता।
मत्स्य, वाराह, कच्छप अवतार के उपरांत; भगवान विष्णु मानवावतार में छ: बार अवतरित हुए जिसमें, नरसिंह अवतार अर्ध नर एवं अर्ध सिंह के रुप में था।
परशुराम, राम, कृष्ण एवं बुद्ध, ये भारतीय धर्मों में वैष्णव परम्परा का उदघोष करते हैं। अन्य धर्मशास्त्रों के अनुसार , इशु, मुहम्मद साहब, आदि भी, मानवावतार ही है , जो; समय समय पर धर्म की स्थापना के निहित, धरा पर अवतरित हुए।
वैसे तो अवतारों की कई कोटि हैं जैसे अंशांशावतार , अंशावतार , आवेशावतार , कलावतार , नित्यवतार ,युगावतार आदि। ये सभी अवतार मानव रूप में ही हुए हैं
मरीचि आदि ऋषि अंशांशावतार हैं; ब्रह्मा नारदादि अंशावतार हैं ; परशुराम , पृथु आदि आवेशावतार तथा कपिल , वामन और वराहप्रभृति कलावतार हैं।इनमें कुछ नित्यावतार हैं , प्रत्येक युग में और कल्प में वे होते हीं है , जैसे ब्रह्मा जी सृष्टि जब होगी , तब प्रारम्भ में प्रकट होंगे और सृष्टि पर्यंत रहेंगे।कुछ युगावतार हैं , जो निश्चित युगों में होते ही हैं।
वास्तव में सृष्टि के सम्पूर्ण जीव परमात्मा के ही अंशरूप में अवतरित हैं।प्रभु की कला के आधार पर इनकी शक्ति , प्रभाव और क्षमता में अंतर होता है।अल्पकला से युक्त जीव सामान्य होते हैं , स्वयं प्रभु का अवतरण विशेष कलाओं से युक्त होता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि भगवान के अवतार का प्रधान प्रयोजन क्या है?भगवान स्वयं कहते हैं:-
*परित्राणाय साधूनां , विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्मसंस्थापनार्थाय , सम्भवामि युगे-युगे।।*
अर्थात साधुपुरुषों का उद्धार , पापकर्मीयों का विनाश एवं धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ।।
यही अवतारवाद और उसका प्रयोजन है।इत्यमेव अवतारवाद।ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या।।
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【पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’】