**मानवता का पाठ पढ़ ! रे मन**
बंधु पढ़ लो, भगिनी सुन लो ,गीत नया मैंने लिख डाला।
प्रकृति का उपहार यह जीवन, क्या इसको हमने कर डाला।।
जल मिला जंगल मिला था कितना मंगल करते थे।
काटे जंगल धरती चीरी, पानी पाताल पहुंचा डाला।।
बंधन तोड़े, अपने छोड़े, परिवार आज क्यों टूट रहे।
साथ कभी सब रहते थे हम, एकाकीपन क्यों ला डाला।।
आधुनिकता से करी मित्रता, शत्रु प्राचीनता को मान चलें।
ऐसा भी क्या स्वांग रचाया, देह को नंगी कर डाला।।
हाथ से छूटे ना मोबाइल,दिल इसका दीवाना हो गया।
देख देख कर इतना देखा, नयनों में आने लगा जाला।।
दिखावा ऐसा दिखने लगा, मानो भक्ति सारी पा ली हो।
नेक नियति बाहर से दिखती, अंदर ही अंदर घोटाला।।
विषय अनुनय कौन से जोडूं, डगर पे खुद को अपनी मोडूं।
मानवता का पाठ पढ़ रे मन, हाथ में लेकर तू माला।।
राजेश व्यास अनुनय