माता पिता सा कोई अपना नहीं।
रिश्तों की भीड़ में ,
कौन अपना कौन पराया।
परख लिया सबको ,
तभी ये विचार मन में आया ।
कहे यदि कोई हमसे ,
तेरे माता पिता से है अजमाया ।
मगर कोई माता पिता ,
सा नजर हमें कभी नही आया ।
सभी की अपनी गृहस्थी है ,
और अपनी संताने है समझ में आया ।
किसी को क्या पड़ी है ,
किसी और के आंसू पोंछे और मनाए ,
बहलाए ,मनुहार करे ,
स्नेह दुलार करे ,जिद पूरी करे ।
ऐसा व्यवहार केवल माता पिता में,
नजर आया।
दुनिया में सब मिल जाता है ,
मगर माता पिता का प्यार नहीं मिलता ।
कहने को तो सब कहते है प्यारी ,
दिलफरेब बातें ,मगर वो सच नही होता ।
अतः यह सत्य वचन है जग में ,
कोई माता पिता सा अपना हितेषी ,
सहारा , मित्र ,हमराज नहीं होता।
ईश्वर को देखा नहीं हमने कभी ,
मगर माता पिता के रूप में ईश्वर ने अपना ,
दर्शन कराया।