मां
२१२२/१२१२/२२
मेरे आंखों की रौशनी है मां
लाख ग़म मे वो इक खुशी है मां
?
वो सुलाती है हमको सूखे में
खुद तो गीले में सो रही है मां
?
वो सुनाती हमें कहानी तो
यूं लगे खुद वही परी है मां
?
लाख झिड़की हमें सुनाए पर
वो जमाने से भी भली है मां
?
चांद तो मां ही पर ये सब कहते
चांद सूरज —– की रौशनी है मां
?
सूखने दे नही ——–जो होटों को
समझो अमृत की -इक नदी है मां
?
प्यार करना सभी से ऐ बेटा
ये नसीहत तो दे रही है मां
?
है पुराणों में ये लिखा ‘प्रीतम’
वो तो जन्नत की इक गली है मां