Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Nov 2018 · 1 min read

मां

मां का तो आंचल बना है,
अश्रु पी जाने के लिए।
नयनो मे सागर रूका है,
ममता बरसाने के लिए।

ढेरों मन्नत मांग कर ,
मां बसाती है जो आशियाने।
वही मां उलझन है क्यों,
उस आशियाने के लिए।

ठोकर लगे न दुनिया की,
मां पलपल मन्नत बुने।
वही बालक क्यों छोड़ देते
ठोकरे खाने के लिए।

प्रेम की प्रतिमूर्ति नारी,
दुनिया में ये सब कहें।
फिर मचलता उसका ह्रदय क्यों,
प्रेम पाने के लिए।

सोच कर ये मन मेरा,
आज फिर अतृप्त है।
शब्दों की जननी जो मां है,
क्यों सदा निशब्द है।
ममता महेश
खानपुर दिल्ली

Language: Hindi
10 Likes · 2 Comments · 612 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मेरी चाहत
मेरी चाहत
umesh mehra
"शिष्ट लेखनी "
DrLakshman Jha Parimal
सत्य की खोज में।
सत्य की खोज में।
Taj Mohammad
व्यापार नहीं निवेश करें
व्यापार नहीं निवेश करें
Sanjay ' शून्य'
डीजे
डीजे
Dr. Pradeep Kumar Sharma
*दुखड़ा कभी संसार में, अपना न रोना चाहिए【हिंदी गजल/गीतिका】*
*दुखड़ा कभी संसार में, अपना न रोना चाहिए【हिंदी गजल/गीतिका】*
Ravi Prakash
वो भी तो ऐसे ही है
वो भी तो ऐसे ही है
gurudeenverma198
गांधी जी के आत्मीय (व्यंग्य लघुकथा)
गांधी जी के आत्मीय (व्यंग्य लघुकथा)
दुष्यन्त 'बाबा'
फिर से आयेंगे
फिर से आयेंगे
प्रेमदास वसु सुरेखा
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मिलना हम मिलने आएंगे होली में।
मिलना हम मिलने आएंगे होली में।
सत्य कुमार प्रेमी
■ समझने वाली बात।
■ समझने वाली बात।
*Author प्रणय प्रभात*
हर एक सब का हिसाब कोंन रक्खे...
हर एक सब का हिसाब कोंन रक्खे...
कवि दीपक बवेजा
हां मैं पागल हूं दोस्तों
हां मैं पागल हूं दोस्तों
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
"हकीकत"
Dr. Kishan tandon kranti
पतझड़
पतझड़
ओसमणी साहू 'ओश'
कितनी हीं बार
कितनी हीं बार
Shweta Soni
*निकला है चाँद द्वार मेरे*
*निकला है चाँद द्वार मेरे*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
रमेशराज की विरोधरस की मुक्तछंद कविताएँ—2.
रमेशराज की विरोधरस की मुक्तछंद कविताएँ—2.
कवि रमेशराज
जुदाई - चंद अशआर
जुदाई - चंद अशआर
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
सफ़ेद चमड़ी और सफेद कुर्ते से
सफ़ेद चमड़ी और सफेद कुर्ते से
Harminder Kaur
प्रतिध्वनि
प्रतिध्वनि
पूर्वार्थ
आवाज़ ज़रूरी नहीं,
आवाज़ ज़रूरी नहीं,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
अजनबी !!!
अजनबी !!!
Shaily
इत्तिहाद
इत्तिहाद
Shyam Sundar Subramanian
छीज रही है धीरे-धीरे मेरी साँसों की डोर।
छीज रही है धीरे-धीरे मेरी साँसों की डोर।
डॉ.सीमा अग्रवाल
करो तारीफ़ खुलकर तुम लगे दम बात में जिसकी
करो तारीफ़ खुलकर तुम लगे दम बात में जिसकी
आर.एस. 'प्रीतम'
"खामोशी की गहराईयों में"
Pushpraj Anant
इंसान को इंसान से दुर करनेवाला केवल दो चीज ही है पहला नाम मे
इंसान को इंसान से दुर करनेवाला केवल दो चीज ही है पहला नाम मे
Dr. Man Mohan Krishna
क्यूं हँसते है लोग दूसरे को असफल देखकर
क्यूं हँसते है लोग दूसरे को असफल देखकर
Praveen Sain
Loading...