मां यशोदा का संताप
कान्हा ! तू था देवकी का जाया,
तू तो था धन ही पराया ।
मोह क्यों तुझसे लगा बैठी ।
तुझे अपना मैं समझ बैठी ।
तू मेरी चोरी से गोद में आया ,
चोरी- चोरी मन में समाया ,
मैं भोली इससे अंजान थी ,
अनपढ़ थी नादान थी ।
ना पढ़ पाई भाग्य का लेखा ,
ना समझी हाथों की रेखा ,
विधि अपना खेल रचाती रही ,
और मैं कठपुतली सी नाचती रही ।
तेरे शैशव अवस्था से बालपन तक ,
तेरे मनोहारी रूप सौंदर्य पर रीझती रही ।
तेरी चंचलता , नटखटपन को देख ,
मैं पगली सी बलिहारी जाती रही ।
हां ! तूने मुझे सताया भी बहुत ,
माखन चोरी की आदत जो थी तेरी ।
गोपियों के उलाहने और शिकायते ,
सुनना रोज की दिनचर्या थी मेरी ।
कितनी बार मैने तुझे दंडित किया ,
तुझे मारा -पीटा ,और डराया ,
उखल से बांधा ,कोठरी में बंद किया ,
और कभी कभी प्यार से भी समझाया।
क्या करती मैं तुझे प्रेम जो ,
बहुत करती थी ।
तुझे हर बुराई / उलहानो से ,
दूर रखना चाहती थीं।
तेरे शत्रु बने तेरे ही कंस मामा के ,
आघातों से बचाना चाहती थी ।
यद्यपि तूने उसके हर प्रतिकार का ,
बड़ी वीरता से प्रति उत्तर दिया।
समझ नहीं पाई तू कौन था ,
चमत्कारी बालक या कोई अवतार ।
इतना महान कार्य तूने कैसे किया ?
तू मेरी दृष्टि में तो नन्हा सा मेरा कान्हा था ,
परंतु लोगों के लिए तू तारणहार था ।
मेरे घर आया था मेहमान बनकर ,
तू तो जगत का पालनहार था ।
जीवन के सांझ में मिला मुझे ,
तू मेरा जीवन धन था ।
ओ मेरे प्राण प्यारे , मेरे लल्ला !
तू मेरा अनमोल रत्न था ।
तूने मुझमें ऐसा मातृत्व जगाया,
मेरा तो सारा संसार तुझमें सिमट गया ,
अब तू मुझे छोड़कर जा रहा है क्यों ?
अपनी मैया को छोड़कर … जा रहा है ।
मेरी सारी दुनिया उजाड़ कर जा रहा है ।
मुझे तो तेरी आदत सी हो चली है ,
कैसे जीयूंगी तेरे बिन ,
किस के नाज़ उठाएंगी रात दिन ?
किसको पुकारूंगी रात दिन?
मेरे लाल ! कुछ सोच -विचार तो सही ,
तेरे बिना कैसे काटूंगी शेष जीवन ?
मेरे लल्ला ! मत जा ! तेरे बिन मैं
ना रह सकूंगी ।
मैं मर जाऊंगी ।
सुना तूने ! तेरी मैया मर जायेगी ।
परंतु तू तो है देवकी का जाया ,
वही तो है तेरी असली मैया।
मेरी परवाह भला तुझे क्यों होगी!
तू तो निकला रे बड़ा ही ढोंगी ।
तुने मुझसे कब प्रेम किया,
तूने तो प्रेम का नाटक किया ।
तूने मुझसे प्रेम किया होता तो ,
क्या यूं छोड़कर चला जाता?
अगर जाना ही पड़ा तो कम से कम,
फिर मिलने का वायदा तो कर जाता ।
मगर तूने तो कोई वायदा किया ही नहीं ,
तेरे लिए मैं और नंद बाबा कुछ है ही नहीं ।
तू तो रहा छलिया का छलिया !!
छल कर हमारी भावनाओं को जा रहा है ।
हमारे प्रेम ,ममता, त्याग और सेवा को,
अपने कदमों तले रौंद कर जा रहा है ।
देश हित कर्तव्य पथ हेतु तू जा तू रहा है ,
मगर कुछ कर्तव्य तेरा हमारे प्रति भी था ।
निसंदेह तू जा यह अश्रु पूर्ण आंखें तेरी बाट तकेगीं ।
यह हमारा हठ ही सही ,परंतु हमने तुझसे
बांधा प्रेम का बंधन बांधा था।
अब तू वो बंधन तोड़कर जा रहा है ।
एक हंसती -मुस्कुराती दुनिया उजाड़ कर जा रहा है।
ये दुनिया तुझे फिर न मिलेगी ।
तुझे तेरे नंद बाबा और यशोदा मैया ,
स्नेह व् दुलार की छांव नहीं मिलेगी ।
तू जब कर्त्तव्य पथ पर चलता -चलता
थक जायेगा ।
कभी तो लौट के आयेगा किधर ..
क्या तू लौटकर आएगा??