(कुछ खत मोहब्बत के) ना कभी लिखा ना कभी लिख पाया
ना कभी लिखा ना कभी लिख पाया है
ना कभी लिखा ना कभी लिख पाया है
तुम्हें मां से ज्यादा तो नहीं
पर मां से कम भी नहीं पाया है
ये बात सच है कि मां ने मेरी जिंदगी सवारी थी
ये बात सच है कि माने मेरी जिंदगी सवारी थी
पर यह भी सच है कि तूने मेरी दुनिया सवारी है
मुझे मा भी प्यारी थी मुझे तू भी प्यारी है
हां मां ने मुझे चलना सिखाया था
हां मां ने मुझे चलना सिखाया था तूने साथ चलना सिखाया है
सर पे मेरे तब मां का साया था
अब साथ मेरे तेरा साया है
ना कभी लिखा ना कभी पाया है
मां मेरे खाने,पीने,पहनने का ख्याल रखती थी
और तू भी मेरे खाने पीने और सोने जागने का ख्याल रखती है
मां भी मेरी देर रात तक राह तकती थी
तू भी मेरी देर रात तक राह तकती है
मां ने मेरा परिचय मेरे पिता से करवाया था
हां माने मेरा परिचय मेरे पिता से करवाया था
तूने मुझे पिता होने का गर्व कराया है
और मां से ही शायद मैं था
तुझसे ही जिंदा मेरा साया है
ना कभी लिखा ना कभी लिख पाया है
ना कभी लिखा ना दोगे लिख पाया है
स्वरचित व मौलिक
सुखप्रीत सिंह “सुखी”
पोवायां शाहजहांपुर