Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Mar 2018 · 3 min read

“माँ”

“माँ”
*****

“माँ” शब्द को परिभाषित करना आसान नहीं है क्योंकि इस एक शब्द में समस्त सृष्टि समाहित है। माँ तो साक्षात् ईश्वर की छवि है। माँ के कदमों में ज़न्नत है।ऐसे वृहद “माँ” शब्द को शब्दों में बाँध पाना नामुमकिन है।माँ के आगे सही-गलत की परिभाषा भी बदल जाती है क्योंकि माँ सिर्फ़ माँ होती है जो पुकारने मात्र से बच्चे की सारी पीड़ा हर लेती है।माँ तो बच्चे की वो ढाल है जो जीवन पर्यंत उसे सुरक्षा प्रदान करती है।माँ बच्चे की जीत का सबसे बड़ा हथियार है उसके अधरों की मधुर मुस्कान है, मीठी लोरी है, शीतल चाँदनी है, घाव की मलहम है, दिल का सुकून है । माँ से घर -घर है।माँ के आँचल की छाँव में आकर बच्चा सारा दु:ख -दर्द भूल जाता है। सबकी डाँट से बचाकर सुख देने वाली केवल माँ ही हो सकती है।जब माँ थी तो उसकी कद्र नहीं जानी आज माँ नहीं है तो उसकी याद में आँसू बहाकर “मातृदिवस” मनाया जा रहा है। जिस माँ ने बच्चे की खुशी के लिए अपने सारे अरमान, सुख-चैन , धन-दौलत समर्पित कर दिए वो अंतिम समय दो मीठे बोल सु नने को तरसती इस दुनिया से चली गई। आज माँ नहीं है पर मेरी रगों में बहते लहू के रूप में वो मेरी रग-रग में समाई है।ज़रा सा भी कष्ट होता है तो सबसे पहले मुँह से “माँ” ही निकलता है।हर पल ऐसा लगता है जैसे वो मेरे सिरहाने खड़ी मुझसे कह रही हैं-“तू चिंता क्यों करती है? मैं हूँ ना तेरे साथ।” माँ को याद करके आज आँसू नहीं रुकते हैं। जब भी कभी मैं बीमार होती थी तब वो मेरा सिर गोद में रख कर सहलाती रहतीं, कॉलेज से आने में ज़रा सी देर हो जाती थी तो दरवाज़े पर खड़ी मेरा इंतज़ार करती नज़र आती थीं। मेरी खुशी के लिए पूरे ज़माने से लड़ लिया करती थीं। कॉलेज कहीं भूखी न चली जाऊँ..ये सोचकर चिल्ले जाड़े में उठकर मेरे लिए अज़वाइन के पराठे सेंकतीं और एक-एक कौर मुँह में खिलातीं। कैसे भूल सकती हूँ उस परिचय को जो संसार में माँ ने मुझे दिया।भगवान संसार में स्वयं नहीं आ सकते थे तो उन्होंने माँ को इस दुनिया में भेज दिया।कहते हैं यदि आपके पास धन-दौलत नहीं है तो भी आप गरीब नहीं हैं क्योंकि आप परिश्रम करके दो वक्त की रोटी कमा सकते हैं लेकिन यदि आपके पास माँ नहीं है तो दुनिया में आपसे अधिक गरीब कोई नहीं है। त्याग- तपस्या , समर्पण की प्रतिमूर्ति माँ के चरणों में सारे सुख निहित हैं। माँ ही मंदिर है, माँ ही मसजिद है, माँ ही काशी है, माँ ही काबा है। आज सब कुछ है मेरे पास पर माँ के हाथों की बनी रोटी की सौंधी महक नहीं है, अथाह प्यार है पर माँ की डाँट का मिठास नहीं है, मान-सम्मान है पर माँ की फटकार में छिपा प्यार नहीं है, मखमल का गद्दा है पर माँ की थपकी और लोरी की आवाज़ नहीं है , गाड़ी-घोड़े सब हैं पर माँ की अँगुली का साथ नहीं है। काश…माँ ! तुम मेरे पास होतीं तो देख पातीं कि आज मैं तुम्हारे आँचल को याद करके कैसे तकिये भिगो रही हूँ , आज मेरा माथा चूमकर सीने से लगाने वाला तुम्हारा वात्सल्य मेरे साथ नहीं है। मैं टकटकी लगाए तुम्हारे आने का इंतज़ार कर रही हूँ। स्वार्थी रिश्तों की इस निर्मम दुनिया में खुद को अकेला पाकर अपने बचपन को याद करती मैं तुम्हारे आँचल की सुखद छाँव ढूँढ़ रही हूँ । सच माँ आज तुम मुझे बहुत याद आ रही हो।

बारिश की बूदों में माँ तू, मेघ सरस बन जाती है।
तेज धूप के आतप में तू ,आँचल ढ़क दुलराती है।

तन्हाई में बनी खिलौना ,आकर मुझे हँसाती है।
आज कहे रजनी माँ तुझसे ,याद बहुत तू आती है।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी, उ. प्र.
संपादिका-साहित्य धरोहर

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Comment · 541 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
View all
You may also like:
संगीत की धुन से अनुभव महसूस होता है कि हमारे विचार व ज्ञान क
संगीत की धुन से अनुभव महसूस होता है कि हमारे विचार व ज्ञान क
Shashi kala vyas
जो चाहने वाले होते हैं ना
जो चाहने वाले होते हैं ना
पूर्वार्थ
ज़िंदगी जीना
ज़िंदगी जीना
Dr fauzia Naseem shad
-शेखर सिंह ✍️
-शेखर सिंह ✍️
शेखर सिंह
राणा सा इस देश में, हुआ न कोई वीर
राणा सा इस देश में, हुआ न कोई वीर
Dr Archana Gupta
मैं हर इक चीज़ फानी लिख रहा हूं
मैं हर इक चीज़ फानी लिख रहा हूं
शाह फैसल मुजफ्फराबादी
महाप्रलय
महाप्रलय
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
कुंडलिया - गौरैया
कुंडलिया - गौरैया
sushil sarna
सीनाजोरी (व्यंग्य)
सीनाजोरी (व्यंग्य)
Dr. Pradeep Kumar Sharma
उम्र थका नही सकती,
उम्र थका नही सकती,
Yogendra Chaturwedi
19. कहानी
19. कहानी
Rajeev Dutta
*पूजा का थाल (कुछ दोहे)*
*पूजा का थाल (कुछ दोहे)*
Ravi Prakash
ये भी क्या जीवन है,जिसमें श्रृंगार भी किया जाए तो किसी के ना
ये भी क्या जीवन है,जिसमें श्रृंगार भी किया जाए तो किसी के ना
Shweta Soni
तेरा फिक्र
तेरा फिक्र
Basant Bhagawan Roy
मिलेंगे कल जब हम तुम
मिलेंगे कल जब हम तुम
gurudeenverma198
एक सही आदमी ही अपनी
एक सही आदमी ही अपनी
Ranjeet kumar patre
सूरज सा उगता भविष्य
सूरज सा उगता भविष्य
Harminder Kaur
* विजयदशमी *
* विजयदशमी *
surenderpal vaidya
पचीस साल पुराने स्वेटर के बारे में / MUSAFIR BAITHA
पचीस साल पुराने स्वेटर के बारे में / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
2399.पूर्णिका
2399.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
रेल दुर्घटना
रेल दुर्घटना
Shekhar Chandra Mitra
"तू है तो"
Dr. Kishan tandon kranti
रूपसी
रूपसी
Prakash Chandra
दो शे'र
दो शे'र
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
■ मिली-जुली ग़ज़ल
■ मिली-जुली ग़ज़ल
*Author प्रणय प्रभात*
प्यार लिक्खे खतों की इबारत हो तुम।
प्यार लिक्खे खतों की इबारत हो तुम।
सत्येन्द्र पटेल ‘प्रखर’
शक्ति की देवी दुर्गे माँ
शक्ति की देवी दुर्गे माँ
Satish Srijan
जीवन मंत्र वृक्षों के तंत्र होते हैं
जीवन मंत्र वृक्षों के तंत्र होते हैं
Neeraj Agarwal
हे भगवान तुम इन औरतों को  ना जाने किस मिट्टी का बनाया है,
हे भगवान तुम इन औरतों को ना जाने किस मिट्टी का बनाया है,
Dr. Man Mohan Krishna
चुनावी वादा
चुनावी वादा
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
Loading...