माँ
माँ से बढ़कर कोई नहीं है इस मिथ्या संसार में,
गर्भ नाल से जुड़ी हुई है बच्चों के आहार में।
अपने हिस्से की रोटी भी बच्चों को दिलवाती है,
भूख लगे उनको वो उस से पहले थाल सजाती है।
कहीं कभी भी प्रश्न नहीं है माँ जो दे संस्कार में,
खुद को किया समर्पित उसने बच्चों के व्यवहार में।
अगर कहीं पर पैर जो फिसले अंतर्मन हुंकार करे,
माँ की शक्ति प्रतिपल अपने बच्चों का उद्धार करे।
नौ महीने पेट में रखे खून के छींटों से सींचे,
कहीं ग़लत हो राह अगर तो हाथ पकड़ पीछे खींचे।
माँ के रूप में देवी माँ ही होती है अवतार में,
कद्र करो अनमोल है माँ देती खुशियां बौछार में।
अंतिम क्षण हो जीवन का फिर भी बच्चों का ही सोचे,
मेरे बिन कैसे रह पाएं रोए वो आँखें मीचे।
अपना कुछ भी नहीं है उसका सब बच्चों के प्यार में,
माँ के रूप में मिली है सबको ईश्वर से उपहार में।
श्वेता ठाकुर (स्वरचित)
फरीदाबाद (हरियाणा)