माँ हू्ँ तो
माँ हू्ँ तो
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मैं निर्वासित ही सही
पुत्र तो मैंनें ही जन्में हैं,
रानी, महरानी हो
या कोई गरीब,
पर माँ सिर्फ़ माँ होती है,
माँ कभी अमीर या गरीब कहाँ होती है?
हर माँ की तरह मैं भी
अपने लालों की
परवरिश करती हू्ँ,
उनके जीवन को सजाती संवारती हू्ँ,
अपना दायित्व ही तो निभाती हू्ँ,
जीवन पथ पर चलने का
हर सलीका समझाती हू्ँ,
माँ हू्ँ तो माँ का कर्तव्य
निभाती हू्ँ।
संस्कारों की सीख से
उनका जीवन संवारती हू्ँ।
तभी तो माँ कहलाती हू्ँ।
◆ सुधीर श्रीवास्तव