120. माँ मेरी सहेली
माँ की ममता सबसे प्यारी ,
कहती हमें वो राज दुलारी ।
बेटों से भी ज्यादा मानती ,
मुझे ही अपना बेटा जानती ।।
मेरे मन में होती जो भी बात ,
बेझिझक कहती हूँ उसके साथ ।
कुछ कहने में उससे डर ना लगती ,
वो मुझे मेरी सहेली सी दिखती ।।
कुछ भी छिपाऊँ उससे तो,
मेरा मन बहुत घबराता है ।
उससे कहे बिना मेरे दिल को,
कहीं चैन नहीं मिल पाता है ।।
अच्छा हो या बुरा,
सब बातें माँ से कहती हूँ ।
कुछ गलत न हो मेरी जिंदगी में,
इसलिये सहेली की तरह रहती हूँ।।
गर जो मैं थोड़ी परेशान रहती तो,
मन ही मन मेरी बात जान लेती है।
बिन कहे ही माँ मेरी, ना जाने कैसे,
सब परेशानी दूर कर देती है ।।
उसका दिल है ममता का सागर,
सदा खुशी ही खुशी वो देती है ।
इन खुशियों के बदले में हमसे,
माँ कभी भी कुछ नहीं लेती है।।
माँ मेरे लिए है एक खंभा,
उसे ही मानती मैं जगदंबा ।
सारे जग में ईश्वर पहुँच न पाते,
इसलिये वो माँ को बनाते ।।
माँ का प्यार पाने को वो भी,
खुद धरती पर बच्चा बनकर आते ।
ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों का,
पूरा त्रिलोक ही इसी ममता में समाते ।।
नोट :- यह कविता मैं अपनी पत्नी हेतु उसकी माँ के लिए मदर्स डे पर लिखा था । लेकिन ऐसे यह कविता उन समस्त माताओं और उनकी बेटे – बेटीयों के लिए है । जो माँ – बेटा – बेटी तीनों बिल्कुल सहेली की तरह रहते हैं उसके प्यार में यह समर्पित है मेरी कविता । अच्छा लगे तो आपलोग कृप्या अपना आशीर्वाद जरूर देंगे ।
कवि – मन मोहन कृष्ण
तारीख – 08/05/2021
समय – 08 : 42 ( रात्रि )
संपर्क – 9065388391