माँ ब्रह्मचारिणी
?विधा—- सरसी छंद आधारित गीत
?विषय— ब्रह्मचारिणी (द्वितीय स्वरूप)
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?रचना—-
तप आचरण की प्रतिमूर्ति है, ब्रह्मचारिणी नाम।
हाथ कमण्डलु माला रखतीं, तप ही इनका काम।।
उर में धार महेश्वर को माँ , किया कठिन उपवास।
अगम तपस्या के कारण ही , शिव हिय इनका वास।।
अन्तर्मन से जो भी ध्यावे, रहे नहीं गुमनाम।
हाथ कमण्डलु माला रखतीं, तप ही इनका काम।।
ज्योतिर्मय अत्यंत भव्य है, माता का यह रूप।
त्याग तपस्या वैरागी मन, सब इनके अनुरूप।।
मनोकामना पूरण करती, पूजन सुबहो शाम।
हाथ कमण्डलु माला रखतीं, तप ही इनका काम।।
तपश्चारिणी ब्रह्मचारिणी, देती सबको ज्ञान।
महामुनि अरु सिद्ध पुरूष भी, धरते इनका ध्यान।।
उथल – पुथल जिस हिय मे उठता, पाता मन विश्राम।
हाथ कमण्डलु माला रखती, तप ही इनका काम।।
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#घोषणा
मैं [पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’] यह घोषणा करता हूँ कि मेरे द्वारा प्रेषित रचना मौलिक एवं स्वरचित है।
[पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’]
स्थान: मुसहरवा (मंशानगर), पश्चिमी चम्पारण, बिहार