‘माँ’ तेरे साथ तेरे हांथ के बिन, अकेले में रोती हूँ मैं !
‘माँ’ तेरे साथ तेरे हांथ के बिन, अकेले में रोती हूँ मैं
आ कि तुझ बिन सब होके भी कुछ नहीं होती हूँ मैं।
तेरी वो डांट, तेरा वो चिल्ला के मेरा बस नाम लेना
आ कि अपने नाम से ही अब खुद को बुलाती हूँ मैं।
जब भी कोई माँ अपने बच्चे को सीने से लगाती है
तड़प कर तेरी याद के दामन से लिपट जाती हूँ मैं।
लोग जो कहते हैं, बड़ी लज्ज़त है मेरी हांथों में
उनको तेरी हांथों के लज्ज़त के किस्से सुनाती हूँ मैं।
हर उठते निबाले में तेरे होने कि एक निशानीढूँढू
तेरे खाने कि खुशबु को कभी भुला नहीं पाती हूँ मैं।
जब भी कोई अपने हांथों से मेरे बालों को सहलाता है
बैठे-बैठे ही तेरी यादों की समंदर में डूब जाती हूँ मैं।
आ कि तुझ बिन अब भी छोटी सी चिरैया हूँ मैं
पंख होते हुए भी खुल के उड़ नहीं पाती हूँ मैं !
***
… सिद्धार्थ…