माँ तूझे नमन
सीखा है
पसीना बहाना
मैंने माँ से
न वो थकती है
न आराम करती है
बस है उसे चिंता
घर की
कई बार मैंने
मन की आँखो से
खींचे है फोटो
उसके माथे पर
उभरे स्वेद बूंदों के
है गजब का
माधुर्य
प्रेम और
ममत्व उसमें
क्यों कि
वह एक नारी है
उसका त्याग,
जिजीविषा
हम सब पर
भारी है
नमन है माँ
तुझे और
तेरे अनमोल
पसीने को
जिससे मुझे
सींचा है
कर्मठता की और
खींचा है
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल