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30 Nov 2018 · 1 min read

माँ तुम तो अनमोल हो !

जब खुली बंद पलकें मेरी, तेरा ही दीदार हुआ
देखा जब तुझको माँ, मुझे पहली नज़र का प्यार हुआ |

नन्हा सा था जिस्म मेरा, तुमने ही जान तो डाला था
दोनो हाथों से समेटे हुए, माँ आँचल में मुझे सम्भाला था |

तुम ही शीतल तुम ही निर्मल, तुम अंबर तुम ही धरातल
तुम हो मधुर ध्वनि सरगम की, तुम हो बहता झरना कलकल|

ना रूकती हो, ना थकती हो, निस्वार्थ सबका ध्यान रखती हो
जिंदगी की धूप और छाँव सब सहती हो, मुँह से एक आह भी ना कहती हो |

सोचती थी कई बार माँ कैसे ये सब कर जाती हो
पूछती थी कई बार माँ मुझे ये राज क्यूँ ना बताती हो |

वक्त ने सब समझा ही दिया, माँ का मोल बतला ही दिया
तुम हो मेरी श्वास माँ, तुम धड़कन तुम आस माँ
देवों की छवि, ममता की मूरत,
ना देखी तुमसे प्यारी कोई सूरत |

आँचल में समेटे बैठी हूँ आज मैं एक नन्ही सी जान को
महसूस कर सकती हूँ माँ तुम्हारे उन अरमान को |

आह निकले जब बच्चे की तो, दर्द से माँ ही गुजरती है
जब एक दर्द में बच्चा रोये, जाने कई पीड़ाओ से माँ गुजरती है |

ना लगा सकता माँ कोई तेरी ममता का मोल
सबको जीवन देने वाली माँ तू तो है अनमोल !

अप्रकाशित एवं मौलिक –
मनीषा दुबे
सिंगरौली (म.प्र.)

12 Likes · 29 Comments · 1211 Views
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