माँ चन्द्रघण्टा
?#शहर—- मुसहरवा (मंशानगर) पश्चिमी चम्पारण, बिहार
?#विधा—- छंद मुक्त गीत
?#विषय— माँ चन्द्रघंटा (तृतीय दिवस)
______________________________________________
?#रचना—-
#मुखड़ा:-
रूप अघोरी भूत गणों संग, गौरा चले ब्याहन।
देव – मनुज की बात कहें क्या, डरे वहाँ थे पाहन।।
#अंतरा :-
मैना मातु गीरीं धरा पर, मुर्छा ने था खेरा।
चन्द्रघंटा बन पार्वती ने, किया खतम यह फेरा।।
किया निवेदन नम्र मातु ने, सिंह है जिनका वाहन।
देव – मनुज की बात कहें क्या, डरे वहाँ थे पाहन।।
स्वर्ण सा सुंदर रूप शुशोभित, श्वेत पुष्प की माला।
नवराते में पूजन इनकी, खुले भाग्य का ताला।।
अश्विन सुदी तीज तिथि को, करते सभी अवाहन।
देव – मनुज की बात करें क्या, डरे वहाँ थे पाहन।।
घंटे जैसा गर्जन माँ की, चन्द्र भाल है धारे।
दुष्ट – दनुज सब माँ संमुख आ,अतुलित बल से हारे।।
वेदों में वर्णित है महिमा, कहते हैं सब काहन।
देव – मनुज की बात करें क्या, डरे वहाँ थे पाहन।।
दीर्घायु आरोग्य सुखी वह, जो इनको है ध्याता।
पाप मुक्त अरु निर्विकार हो,सुख ही सुख वह पाता।।
अपने भक्तों का हरपल माँ, करती है अवगाहन।
देव – मनुज की बात करें क्या, डरे वहाँ थे पाहन।।
=====================================
#घोषणा
मैं [पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’] यह घोषणा करता हूँ कि मेरे द्वारा प्रेषित रचना मौलिक एवं स्वरचित है।
[पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’]
स्थान :- दिल्ली