माँ की अभिलाषाऔर पुत्र की जिज्ञासा
माँ की अभिलाषा व पुत्र की जिज्ञासा
उक्तदिवस महा शिव रात्रि का पर्व था , लोग सोमवार का व्रत रखकर, अनुष्ठान कर रहे थे ।कांवड़िए, बम भोले का गगन भेदी नारा लगाते गंगा जल से शिव का अभिषेक व स्नान करा रहे थे , सारा वातावरण शिव भक्ति से शिव मय हो गया था । मंदिरों मे शिव- आराधना प्रात :कल से प्रारम्भ थी । पंडित जी आज बहुत व्यस्त थे , उन्हे रुद्राभिषेक कराना था , कई जगह कार्यक्रम था । भोले बाबा की कृपा से सावन में धन की प्राप्ति पर्याप्त मात्र में हो रही थी । दान –दक्षिणा हेतु शिव –भक्तों ने खुले हृदय से तिजोरी का मुंह खोल दिया था ।
पंडित जी का एक पुत्र अर्जुन था जो व्यवसाय से लेखपाल था , इन्ही दिनों अर्जुन की पत्नी आलिया पूर्ण गर्भ से थी ,
रिमझिम बारिश हो रही थी , धरती रात्रि की काली चादर ओढ़ निद्रा मग्न होने का यत्न कर रही थी । चारों तरफ नीरवता , शांति व वीरानी थी , कभी कभार गली के कुत्ते धमा चौकड़ी मचाते हुये किसी अंजान राही पर भौकते, तब वातावरण की नीरवता भंग होती थी , पुन :शांति छा जाती थी ।
रात्रि के तृतीय प्रहार में आलिया को प्रसव पीड़ा प्रारम्भ हुई , आलिया को यह पंचम प्रसव- अनुभूति थी , उसकी तीन बेटियाँ व एक बेटा था । पाँचवी संतान के गर्भ में आने केपश्चात अर्जुन ने आलिया से कहा था –
आलिया अगर अब बेटी हुई तो मेरा हार्ट फेल हो जाएगा , इससे आलिया की भावनाए आहत हुई , आलिया निरंतर प्रार्थना करती की उसे पुत्र की प्राप्ति हो , जिससे परिवारका निर्वहन कुशलता पूर्वक हो सके , अगर पुत्री हुई तो अर्जुन के हृदय को धक्का लगेगा और कहीं अनर्थ हो गया तो , उसका परिवार नष्ट हो जाएगा । परिवार का आधार केवल अर्जुन था ।
ग्राम मे रात्रि के समय घर में प्रसव हेतु धाय के अतिरिक्त कोई चिकित्सक उपलब्ध नहीं होता है ,धाय को बुलावा भेजा गया । प्रात :06 बजे आलिया ने पुत्र रत्न को जन्म दिया । शिशु के क्रंदन से खुशी की लहर दौड़ गयी , आलिया को सर्व प्रथम, जब ये ज्ञात हुआ की पुत्र रत्न हुआ है तो उसने भगवान को लाख –लाख धन्यवाद दिया ।
माता –पिता परिवार नियोजन में बराबर के हिस्से दार होते हैं , किन्तु लिंग- भेद आज भी माना जाता है । शिक्षित समाज होने के बावजूद लिंग- भेद समाज की एक त्रासदी से कम नहीं है । बालिका के जन्म के समय घर भर मे मायुषी छा जाती है , पुरुषों व स्त्रियों को समाज में व संविधान में बराबर का अधिकार प्राप्त है व बालिकाओं को समस्त शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हैं, फिर भी, समाज मे बालिकाओ की उपेक्षा की जाती है , भाइयों के सापेक्ष उनकी अवमानना आज भी होती है।
बेटे की परवरिश में आलिया ने कोई कसर न छोड़ी , बहनों ने, अपने छोटे भाई का नाम प्यार से गौरव रखा । गौरव धीरे धीरे बड़ा होने लगा , बहनों ने उसकी शिक्षा का पूरा ख्याल रखा । मात्र तीन वर्ष की आयु में उसे गिनती गिनना व पहाड़े कंठस्थ याद हो गए , मात्रा व अक्षरों का ज्ञान भरपूर हो गया ।
जब गौरव पाँच वर्ष का हुआ , उसके पिता ने उसे ग्राम के प्राथमिक विध्यालय मे भर्ती करा दिया । गौरव ने जिस शिक्षा को पूर्व में ग्रहण कर लिया था उसी शिक्षा को उसकी कक्षा के छात्र अब सीख रहे थे । अत :गौरव ने अपने पिता से कक्षा द्वितीय मे दाखिला कराने का आग्रह किया , शिक्षक बालक की प्रतिभा से प्रभावित थे , अंतत :उसे कक्षा द्वितीय मे बैठने की अनुमति दी गयी, किन्तु जब छात्रों को पुस्तक अध्ययन , गिनती , पहाड़े पढ़ने का समय आता उसकी उपेक्षाकर दी जाती । गौरव को योग्यता रहते अवसर न मिलने से बहुत बुरा लगता था । उसे बताया गया की उसका नाम कक्षा प्रथम में पंजीकृत है और वह कक्षा प्रथम का छात्र है ।
गौरव अपनी कक्षा मे प्रथम आया , उसकी उपस्थिती शत –प्रतिशत थी । लेकिन एक दिन एसी घटना घटित हुई जिसने उसके पूरे जीवन पर अपनी छाप छोड़ी ।
स्वतन्त्रता दिवसकी पूर्व रात्रि में, मुसलाधार वर्षा हुई थी , प्रात :गौरव के पास विध्यालय जाने के दो मार्ग थे उसे एक का चुनाव करना था , एक दूरगामी पक्का मार्ग था जिससे विध्यालय को पहुँचने पर देर हो सकती थी , दूसरा मार्ग दुर्गम व दल- दल युक्त था । उसे स्वतन्त्रता दिवस के समारोह मे शामिल होना था , गौरव ने दल- दल युक्त मार्ग का चुनाव किया । बालपन में उसे दल-दल की वास्तविकता व भयावहता का ज्ञान नहीं था , घुटने –घुटने कीचड़ मे धसते हुए उसने बड़ी बहादुरी से आधे मार्ग को पार कर लिया, दल- दल की भयंकरता देख कर उसका दिल रह रह कर दहल उठता था । जब आधा मार्ग रह गया गुरु जी की नजर उस पर पड़ी । गुरुजी ने छात्रों को गौरव को दल- दल से निकालने का आदेश दिया । गौरव को दल- दल से निकाला गया । गौरव हाथ -पैर धोकर समारोह मे शामिल हुआ ।
उसी दिन छात्रों ने एक बड़ा केंकड़ा पकड़ा। , गुरु जी ने केंकड़े को अपनी मेज पर रखने का आदेश दिया, और गौरव को अपनी कक्षा से बुला कर दिखाया , गौरव, केंकड़े की वास्तविकता से अंजान था, किन्तु , वह गुरु जी के मन्तव्य से भी अंजान था । उस केंकड़े को पूर्ववत कूप मे छोड़ दिया गया । गौरव के लिए यह परीक्षा की घड़ी थी , वह आने वाले पलों में अपने अंदर उठने वाले झंझावात से अंजान था , एक प्रश्न जिसका उत्तर उसे जीवन भर खोजना था ।
अच्छी पुस्तके, छात्रों की सच्ची मित्र होती हैं , अच्छी पुस्तके न केवल ज्ञान वर्धक होती हैं किन्तु जीवन की अनेक जटिल समस्याओं का समाधान भी करती हैं व व्यावहारिक रूप से परिपक्व बनाती हैं
गौरव को उसके बड़े भाई ने एक पुस्तक भेंट की, जिसका नाम था” जीत आपकी” । जिसका अध्ययन करने पर उसका ध्यान एक प्रसंग ने आकर्षित किया , उसमे लिखा था कि लकड़ी के दोनों तरफ से खुले बॉक्स मे जब कई केंकड़ो को रखा जाता है तो वे कभी बाहर नहीं निकल सकते क्योंकि, वे एक दूसरे की टाँगो में उलझकर रह जाते हैं। आजाद होने का अवसर मिलने पर भी वे उसका फायदा नहीं उठा पाते हैं ।
इस प्रसंग का आशय था कि , यदि, हम सब ईर्ष्या- द्वेष युक्त समाज में निवास करते हैं तो उन्नति के अवसर होते हुए हम सब एक दूसरे की टांग खीचते रहेंगे और,सुअवसर का लाभ हम नहीं उठा सकेंगे । अंतत :एसे समाज का विनाश निश्चित है ।
गौरव के मन मे उमड़ते सवालों को विराम मिला , उसे लगा कि उसे समाधान मिल गया है । प्रतीक स्वरूप बचपन में प्रदर्शित केंकड़े का मन्तव्य इससे उचित क्या हो सकता है । गुरु जी का सादर आभार व्यक्त करते हुए गौरव ने कभी ईर्ष्या –द्वेष ना करने की ठानी । उसका उदार , दयालु, जिज्ञासु हृदय इस उनुत्तरित प्रश्न का समाधान पाकर संतुष्ट हो गया था ।
27-08-2018 डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
सीतापुर ।