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1 Nov 2018 · 1 min read

माँ –आर के रस्तोगी

माँ पहली शिक्षक है,वह ही मात भाषा सिखाती है
वह भले गीले में सोये,बच्चे को सूखे में सुलाती है

माँ नौ मास कोख में रखती है प्रसव पीड़ा भी सहती है
वह खुद भूखी रहकर भी ,बच्चे को खाना खिलाती है

माँ का जिसने दूध पिया,वह हष्ट-पुष्ट बन जाता है
जो माँ को दूध लजाता है,वह शत्रु को पीठ दिखता है

माँ की ममता का कोई मोल नहीं,ना ही ख़रीदा जा सकता है
सात जन्म भी कोई जन्म ले,उसका ऋण ना चुका सकता है

माँ का ह्रदय बड़ा कोमल है,टूटने पर ना कर सकते भरपाई
पूछेगी तुम्हारे गिरने पर,”बेटा कही चोट तो नही तुझे आई”

माँ से बड़ा संसार में कोई नहीं,भगवान भी उसे शीश झुकाते है
वह सबकी जग जननी है,सब देवता भी उससे संसार में आते है

माँ बोलने पर मुहँ खुलता है,बाप बोलने पर वह बंद हो जाता है
माँ शब्द को जरा बोल कर देखो,कैसा अदुभुत आनन्द आता है

माँ की विशेषता वर्णन करने पर,शब्द कोष भी खाली हो जाता है
माँ में एक ऐसा ममत्व है ,जिसमे समस्त ब्रहमांड समा जाता है

आर के रस्तोगी ,गुरुग्राम (हरियाणा )

40 Likes · 158 Comments · 4040 Views
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