*”माँ आदि शक्तिदायिनी”*
“माँ शक्तिदायिनी”
हे आदिशक्ति दायिनी माँ ,संकट कष्ट हरे धरा पर पांव धरे।
शिव की अर्द्धागिनी रूप सुहाना,
सोलह श्रृंगार करे।
नीलकंठ महादेव थामे हाथों से ,
आदिशक्ति ने धरा पर जब पांव धरे।
रौद्र रूप धरा अदभुत भयंकर ,
दुष्टों का संहार करे।
सृष्टि रचना का विनाश तय ,
कोई न इसको पार करे।
जहां पग धरती पर रखती हो ,वहाँ सारी धरती का विनाश हो चले।
सुर नर मुनिजन देव ने करुण पुकार लगाई ,
नीलकंठ महादेव ने पुकार सुनकर,
माँ आदिशक्ति को रोक चरणों के नीचे हाथ धरे।
काली दुर्गा ,चंडी बन ,माँ जगदम्बा रूप धारण करे।
तब शांत होकर लंबी जुबान निकाल कर ,
गले मुण्डमाला पहन ,दैत्यों का संहार कर पृथ्वी का भार वहन करे।
शिवशक्ति महाशक्तियों से प्रगट हो,
महिषासुर शुम्भ निशुम्भ दानवों का नाश करे।
भक्तों की फरियाद सुनकर ,पीर संकट कष्ट हरे।
कलयुग जीवन इस महामारी से जगत का कल्याण करे।
आओ हे आदिशक्ति मात भवानी ,
शेर पे सवार हो पग लालिमा धरे।
पांव पैजनिया घुंघरू बांधे हुए ,
छमछम पग लालिमा खिले ,
धरा पर पग धरे।
विचलित हो रहा ये जग संसार ,
प्राणियों के संकट कष्ट हरे।
मायामोह के बंधन में बंधे हुए,
संघर्षो से जूझते जीवआत्मा मुक्त करे।
सुख शांति की तलाश में हैरान परेशान मानव ,
पांव ठिठक कर रह गए ,अब तो आओ माँ जमीं पर पग धरो।
शक्तिदायनी स्वरूपा माँ आपका आगमन से,
संकट कष्ट मिटे शुभ संदेश से माँ नौ रूप धारण कर जब कदम धरे।
नीलकंठ महादेव तब आके ,रुद्राक्ष माला पहन हाथों में तब माँ आदिशक्ति ने पग धरा पे धरे।
शशिकला व्यास ✍️
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