महिमा पलकों की
पलकें खुलीं
लगा सारा जहां
अपना सा
बंद हुई पलकें
न दिखा
कोई अपना सा
संजोए बैठी
दुल्हन
सतरंगी सपने
बंद किये पलकें
आऐगा शहजादा कोई
बैठाने पलकों में कोई
खुश थी माँ
सरहद से
आते थे संदेशे
आया जब
बंद पलकें बेटा
हो गयी बेचैन माँ
है लाज का गहना
पलकें
झुका के बैठी वो
महफ़िल में
हर कोई दीवाना हो गये
अब और क्या कहें
“संतोष ”
पलकें तेरे लिए
मिली आँख से आँख
और सारा जहां
हकीकत हो गया
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल