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27 Feb 2018 · 1 min read

मवाद

धर्म जब तक
मंदिर की घंटियों में
मस्जिद की अजानों में
गुरूद्वारे के शब्द-कीर्तनों में
गूंजता रहे तो अच्छा है
मगर जब वो
उन्माद-जुनून बनकर
सड़कों पर उतर आता है
इंसानों का रक्त पीने लगता है
तो यह एक गंभीर समस्या है?

एक कोढ़ की भांति हर व्यवस्था और समाज को
निगल लिया है धार्मिक कट्टरता के अजगर ने ।

अब कुछ-कुछ दुर्गन्ध-सी उठने लगी है
दंगों की शिकार क्षत-विक्षत लाशों की तरह
सभी धर्म ग्रंथों के पन्नों से!

क्या यही सब वर्णित है
सदियों पुराने इन रीतिरिवाजों में?
रुढियों-किद्वान्तियों की पंखहीन परवाजों में?
ऋषि-मुनियों पैगम्बरों साधु-संतों द्वारा
उपलब्ध कराए इन धार्मिक खिलौनों को
टूटने से बचने की फिराक में
ताउम्र पंडित-मौलवियों की डुगडुगी पे
नाचते रहेंगे हम बन्दर- भालुओं से…!

क्या कोई ऐसा नहीं जो एक थप्पड़ मारकर
बंद करा दे इन रात-दिन
लाउडस्पीकर पर चीखते धर्म के
ठेकेदारों के शोर को?

जिन्हें सुनकर पक चुके हैं कान
और मवाद आने लगा है इक्कीसवीं सदी में!

Language: Hindi
233 Views
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