‘मलिनता का प्रहार’
हो क्या गया जाने निगोड़े समाज को,
ताक में रख दी है सारी लोक लाज को।
अब शिक्षा – मंदिर भी बचे न सुपावन,
देख यूँ हृदय रोये, बरसे ज्यों सावन।
सुना था हर बालक बनेगा यहाँ राम,
सीता हर बाला,यह फैलेगा पैगाम।
शिकार हुई शुचिता मलिन वात की,
दिन में रही सुरक्षा ना रही रात को।
ताक में रख दी है सारी लोक लाज को।
लक्ष्मण की रेखा, न जटायु के पंख,
आज जिधर देखो, बस बिच्छू के डंक।
पता नहीं क्या हुआ, ये भारद्वाज को,
ताक में रख दी है सारी लोक लाज को।
पाप इतने बढ़ रहे, वसुन्धरा की गोद में,
घृणित आँधियाँ उठी हैं ‘मयंक’ अन्तर्नोद में ।
भेड़िये शिकारी बढ़ रहे भारी समाज में,
नोंच-नोंच मिटा रहे संस्कारी साज को।
ताक में रख दी है सारी लोक लाज को।