” मन हुआ गुलबिया ” !!
लेपित चंदन ,
मले हल्दी –
और उबटन |
रूप सजा ,
संवरा तो –
लगा ज्यों कुंदन |
फिसलन ही –
फिसलन है ,
देह हुई रेशमिया ||
कजरारा काजर ,
आँखों में –
काढ़ लिया |
प्रियतम के ,
सपनों को –
ऐसे ही ताड़ लिया |
चितवन तो –
चितवन है ,
अँखियाँ नचनियां ||
आँचल हाथों से ,
फिसले औ –
लहराये |
जंजीर बनी ,
अलकें तो –
जब तब बल खाए |
संदेशा पाते –
भरती कुलांचें ,
ऐसी हिरनिया ||
बार बार लागे ,
है आहट –
द्वार पर |
चैन कहाँ ,
अब मुझको –
पल पल मुखर |
खोया है धीरज –
हुए असहज ,
ऐसी लगनिया ||
इंतजार मानो ,
है बस की –
बात नहीं |
हाथों से छूटे ,
हैं अपने –
हालात कहीं |
खोई सुध बुध –
याद कहाँ अब कुछ ,
तेरी जुगनिया ||
बृज व्यास