मन ही मन में प्रश्न उठे हैं आज घनेरे
मन ही मन में प्रश्न उठे हैं आज घनेरे।
दुनिया भर में तिमिर गहन सबके मन घेरे।।
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घोर कालिमा बनकर छायी
नभ में इक आज बदरिया।
जाने कैसे इस दुनिया को
लागी है आज नजरिया।।
गायब है मुस्कान अधर से,चित्त चितेरे।
मन ही मन में प्रश्न उठे हैं आज घनेरे।।
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आशंका का दौर चल रहा,
मन में भय का जोर पल रहा।
घायल है विश्वास स्वयं का
मानव खुद को स्वयं छल रहा।।
घोर तमस में डूबे मन के ऊर्ध्व उजेरे।
मन ही मन में प्रश्न उठे हैं आज घनेरे।।
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ल्हाशों का अंबार लगा है।
इंसां खुद के हाथ ठगा है।
काट रहे हैं जड़ अपने ही
हर विचार अब घात पगा है।
चीखें घर से आतीं उजड़े गेह बसेरे।
मन ही मन में प्रश्न उठे हैं आज घनेरे।।
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?अटल मुरादाबादी ?