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18 Sep 2020 · 1 min read

मन रे..तू धीरज धर!

मन रे .. तू धीरज धर!

क्षण, प्रति़क्षण एक आस
बेताब अरमानों की प्यास
सब कुछ तो है पास
फिर निरंतर किसकी तलाश
मन रे .. तू धीरज धर

बेदाग़ जैसे श्वेत कपास
रचने चला था इतिहास
बन के रह गया परिहास
बिखर गया विश्वास
मन रे .. तू धीरज धर

टूटते सपनों का आकाश
प्रतिपल करता हताश
कब विरह से अवकाश
पीड़ा के झंझावत का नाश
मन रे .. तू धीरज धर

अंतर्मन कोलाहल निवास
ओढ़े ख़ामोशियाँ लिबास
एकाकी जीवन नीरस उदास
सुनेपन का चुभता अहसास
मन रे .. तू धीरज धर

रेत ज्यों तपती हर श्वास
चिर वेदना भरा आभास
अनश्वर मोह का कारावास
स्वच्छंद होने का प्रयास
मन रे .. तू धीरज धर

गहन तम का कर विनाश
नभ करुण-किरणों का प्रकाश
खिल उठे नव जीवन पलाश
पूरी होगी हर अभिलाष
मन रे .. तू धीरज धर

रेखा

Language: Hindi
2 Likes · 3 Comments · 512 Views
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