मन मगन हो गया है
मन मगन हो गया है (गीत)
*************************
मात्रा भार 14 – 14 (28)
आ गयी बरसात देखो, मन मगन अब हो गया है।।
झूम कर खुशियों से कृषक, खेत अपने बो गया है।।
देख सूखा मन डरा औ,
मातु वसुधा रो रही थी।
भय हृदय आकाल का औ,
भाग्य रानी सो रही थी।
मन जो पसीजा इन्द्र का,
आ गयी बरसात प्यारी।
खेत सुखे तृप्त हो गये,
है जल से पूरित क्यारी।
मेघ की महिमा निराली, मन अगन को धो गया है।
आ गयी बरसात देखो, मन मगन अब हो गया है।
जब तलक बरसात थी ना ,
नयन तकते मेघ को थे।
मन डरा था तब कृषक का,
देख सूखे खेत को थे।
हर्ष का आभास लेकर,
मेघ की आयी सवारी।
है कृषक का मन प्रफुल्लित,
मिट गयी दिल बेकरारी।
देख हरियाली कृषक मन, हर्ष से अब रो गया है।
आ गयी बरसात देखो, मन मगन अब हो गया है।
क्या करे कृषक बेचारा,
कृषि नही जीवन नहीं है।
खेती में है जां बसता,
जिंदगी इसका यहीं है।
आँखों की ज्योति बढ़ी है,
पुष्प मन का खील गया है।
खेत सिंचित हो गये औ ,
हर्ष से मन भर गया है।
बादलों के ओट में दुर्भाग्य उसका सो गया है
आ गयी बरसात देखो, मन मगन अब हो गया है।
********
✍✍पं.संजीव शुक्ल “सचिन”