मन को मैंने रंग डाला है,इस होली में।
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गीतिका~
(छन्द- शक्तिपूजा ,मात्रिक – 16,8)
मन को मैंने रॅग डाला है,इस होली में।
तन को मैंने रॅग डाला है, इस होली में।।
भस्म हुए सब गिले शिकायत,मन साफ हुए,
और होलिका को मान मिला,इस होली में।
प्रेम लुटाकर गले लगाया,सबने सबको,
रूठों को भी पुन: मनाया,इस होली में।
मन के सारे मैल हटाकर,करते वंदन,
संबंधों के पुष्प खिलाये,इस होली में।
छोड दिये सब पीछे सपने,कदम बढाये,
कविता के नव बीज उगाये,इस होली में।
कटुता का भी दहन किया है,इस होली में।
कोरोना के दोष जलाये,इस होली में।।
??अटल मुरादाबादी✍️?