मन की लगाम।
चल इधर आ
बैठ सुन उधर मत देख
यहाँ मुझ से बात कर
कभी दुसरों की बात नही सुनते
कभी दुसरों को बुरा नही कहते
वो देख हरे भरे खेत बाग बगीचे
हे भगवान!छोड़ ये झगड़ा
अब मान जा
ये तेरा मेरा छोड़
सब माया है
क्या खाऊं क्या न खाऊ
ऐसी इच्छामत कर
ऊंची उड़ान ये अच्छा है
कम थकान ये अच्छा है
सत्य को जान ये अच्छा है
मन की लगाम
पकड़ना नही है आसान।
रचनाकार :– प्रेम कश्यप