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30 Mar 2018 · 1 min read

मन की गांठे

मन की गांठो की गठरी लिए
उम्र गुजार आए हम
अब बैठे है बेतकलुफ्फ से
खोलने अकड़ी हुई गांठो को
जमाने भर की धूल जमी है
खुलने को करती है मना, ये
गांठे जो जमाने से लगी हुई है।
आओ तुम भी ले आओ
कुछ दम गर रखते हो तो,
हाथो में अपने जो खोले
इन अकड़ी हुई गांठो को
आजमाते है चलो तुम्हारे हौसले

निधि।।।।

Language: Hindi
457 Views
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