“मन”…….. काजल सोनी
मन की बातें मन ही जाने,
कोई और समझ न पाये ।
कभी तन्हा,
कभी गुमसुम बैठे ,
कभी तितली बन उड़ जाये।
देख परिंदों की हलचल,
बच्चों के संग बच्चा बनकर,
खुशियों की ये मस्ती में नाचे,
कभी शोर इसे न भाये ।
लगे कभी महीनों न नहाऊं,
कभी छत से टपकती बारिश में,
तर तर भीग जाये ।
कभी रुसवा ,
कभी पागल रहता ,
मोहब्बत कभी ये बरसाये ।
खाने को कभी जी न लागे,
संग यारों के कभी बैठकर,
जुठा भी छीन छपट कर खाये ।
कभी गम की आग में जलता ,
देख तरसता,
और मचलता,
कभी खुद ही समहल ये जाये ।
मन की बातें मन ही जाने ,
कोई और समझ न पाये । ।
” काजल सोनी “