Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Nov 2020 · 3 min read

मनुष्य में पशुता और पशुओं में सहिष्णुता!!

मानव में मानव नहीं दिखता,
बढ़ रही है मानव में पशुता,
इधर पशुओं का व्यवहार भी बदल रहा है,
अब उसमें हिंसा की जगह सहिष्णुता का भाव दिखता है,

मानव ने अपने को ना जाने कितने खांचों में बांट दिया है,
और हर बात पर उसमें बढ़ रही हिंसा है,
हम ऊंच नीच में बंटे हैं,
अमीर-गरीब में सिमटे है,
जात पात में,
धर्म-संप्रदाय में,
स्त्री-पुरुष में
गोरे और काले में,
हिंसक और अहिंसक में,
प्यार और घृणा में,
गुण और अवगुण में,
बिरोध और भक्ति में,
विश्वास और अविश्वास में
सदियां बीत गई कितनी,
हमको यह समझने में,
मनुष्य क्यों हिंसक हुआ जा रहा है,
शिक्षित होने पर भी बढ़ रही है अशिष्टता!

इधर पशुओं को हम देख रहे हैं,
वह अपनी भूख तक ही सिमटे है,
इसके अतिरिक्त नहीं कोई लालसा ,
बस अपने-अपने आहार तक ही है सिमटा ,
वह हर हाल में रह लेता है,
मनुष्य के संग भी वह जी लेता है,
अंन्य प्रजातियों के संग भी घुल मिल लेता है,
यह तो हम अपने घर आंगन में ही देख सकते हैं,
कुत्ते बिल्ली एक संग घर के मालिक के साथ रह लेते हैं,
खुब आंख मिचौली भी करते रहते हैं,
गाय भैंस एक ही नांद में घास चुगते है,
एक ही बर्तन पर पानी पी लेते हैं,
घोड़े गधे भी संग संग रहते हैं,
भेड़ बकरियां भी एक संग चुगते है,
अब तो कुत्ते-बंदर भी साथ दिखते हैं,
अजायबघरों के तो खेल ही निराले हैं,
एक संग भिन्न भिन्न प्रजातियों के जानवर डाले हैं,
यह एक साथ अठखेलियां करते हुए दिखते हैं,
बिना किसी की भाषा-बोली को समझे भी,
एक साथ खेलते डोलते है,
कहीं पर भी नहीं करते हैं किसी की भावनाओं का अतिक्रमण,
ना ही करते हैं किसी पर नाहक आक्रमण,
प्रेम भाव से जीना है तो कोई इनसे सीखे,
कैसे परिस्थितियों में ढलना है तो इनसे सीखे,
ना ही कोई कपट,ना ही कोई छीना झपटी,
अपने हिस्से की खाते हैं,
और फिर विश्राम फरमाते हैं,
जो छूट जाए,उस पर ना कोई अधिकार जताते हैं,
भेड बकरियों को देख लो,
कितने मेल जोल से रहते हैं,
एक दूसरे के शरीर पर,सिर रख कर सो लेते हैं,
कहीं कोई किसी पर अहसान नहीं जताता,
ना ही कोई किसी को पराया होने का बोध कराता,
यह सबकुछ कितना खास है,
क्या नहीं यह अपने पन का अहसास है!

इधर हम मनुष्य गण भी क्या जीव हैं,
बिला वजह के भी झगड़ने की वजह ढूंढते हैं,
हम खेत-खलियान पर झगड़ते हैं,
हम मकान-दूकान पर झगड़ते हैं,
हम ऊंच-नीच के नाम पर झगड़ते हैं,
हम जात पात पर भी झगड़ते हैं,
हम गांव-मोहल्लों के लिए झगड़ते हैं,
हम अमीर-गरीब पर झगड़ते हैं,
हम धर्म-संप्रदाय पर झगड़ते हैं,
कहीं हिन्दू मुस्लिम पर झगड़ते हैं,
तो कहीं ईसाईयत-व गैर ईसाईयत पर झगड़ते हैं,
कभी हम सर्वोच्च होने का दंभ भरते हैं,
तो कहीं पर हम आर्थिक साम्राज्य पाने को झगड़ते हैं,
कहीं पर हम विकसित होने पर अडे है,
तो कहीं पर हम विकसित होने के लिए जूझने को खड़े हैं,
हमारी लड़ाई की अनेक गाथाएं हैं,
हम श्रेष्ठता की अगुवाई में खड़ी करते बाधाएं हैं,
हम अपने हितों के लिए पड़ोसियों को लडा सकते हैं,
अपने अस्त्र-शस्त्र की बिक्री बढ़ाने को लड़ाई छिड़ा सकते हैं,
हम अपने गुरुर में इतने व्यस्त हैं,
हम अपनी जरूरत दर्शाने में अभ्यस्त हैं,
हम ना जाने किस गुरुर में इतने ब्याकूल हैं,
क्या जाने हम अपने बर्चस्व को बचाने में मसगूल है,
हमें किसी दूसरे की स्वीकार्यता स्वीकार नहीं,
अपने को पहचानने में,
इंसानियत खो गई है कहीं !!

Language: Hindi
1 Like · 4 Comments · 240 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Jaikrishan Uniyal
View all
You may also like:
गीत शब्द
गीत शब्द
Suryakant Dwivedi
* तेरी सौग़ात*
* तेरी सौग़ात*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
असोक विजयदसमी
असोक विजयदसमी
Mahender Singh Manu
अपमान
अपमान
Dr Parveen Thakur
तेरा सहारा
तेरा सहारा
Er. Sanjay Shrivastava
पृष्ठों पर बांँध से बांँधी गई नारी सरिता
पृष्ठों पर बांँध से बांँधी गई नारी सरिता
Neelam Sharma
#सच्ची_घटना-
#सच्ची_घटना-
*Author प्रणय प्रभात*
है सियासत का असर या है जमाने का चलन।
है सियासत का असर या है जमाने का चलन।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
फ़ितरत
फ़ितरत
Priti chaudhary
अहोई अष्टमी का व्रत
अहोई अष्टमी का व्रत
Harminder Kaur
शुभ रक्षाबंधन
शुभ रक्षाबंधन
डॉ.सीमा अग्रवाल
कुप्रथाएं.......एक सच
कुप्रथाएं.......एक सच
Neeraj Agarwal
चल मनवा चलें.....!!
चल मनवा चलें.....!!
Kanchan Khanna
बेशर्मी से रात भर,
बेशर्मी से रात भर,
sushil sarna
रिश्तों में परीवार
रिश्तों में परीवार
Anil chobisa
এটি একটি সত্য
এটি একটি সত্য
Otteri Selvakumar
यह हक़ीक़त है
यह हक़ीक़त है
Dr fauzia Naseem shad
ज़िन्दगी में किसी बड़ी उपलब्धि प्राप्त करने के लिए
ज़िन्दगी में किसी बड़ी उपलब्धि प्राप्त करने के लिए
Paras Nath Jha
गीत मौसम का
गीत मौसम का
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
सब समझें पर्व का मर्म
सब समझें पर्व का मर्म
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
अंदाज़े बयाँ
अंदाज़े बयाँ
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मैं भी क्यों रखूं मतलब उनसे
मैं भी क्यों रखूं मतलब उनसे
gurudeenverma198
*** आकांक्षा : एक पल्लवित मन...! ***
*** आकांक्षा : एक पल्लवित मन...! ***
VEDANTA PATEL
मेरे राम
मेरे राम
Prakash Chandra
मिट गई गर फितरत मेरी, जीवन को तरस जाओगे।
मिट गई गर फितरत मेरी, जीवन को तरस जाओगे।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
2725.*पूर्णिका*
2725.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
भ्रात-बन्धु-स्त्री सभी,
भ्रात-बन्धु-स्त्री सभी,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
यूंही नहीं बनता जीवन में कोई
यूंही नहीं बनता जीवन में कोई
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
*दुर्गा अंबे रानी, पधारो लेकर नन्हे पॉंव (गीत)*
*दुर्गा अंबे रानी, पधारो लेकर नन्हे पॉंव (गीत)*
Ravi Prakash
रास्तो के पार जाना है
रास्तो के पार जाना है
Vaishaligoel
Loading...