मधुमास में
इस बार
मधुमास में
फिर खेलेंगे
होली हम
तेरी यादो संग
मोतियों से भी
बेशकीमती
शबनमी
अश्रु जल में
घुले होंगे
अनेको अनूठे रंग
कुछ प्रेम के,
कुछ क्रोध के
नाराजगी संग,
कुछ अनबन के
हास परिहास
संग उपहास के
शायद धुंधला जाये
ह्रदय पर लगी
उस छाप को
जो आज तक दमकती है
सुनहरे रंग में
और महका जाती है
मेरे तन बदन को
अपने बासंती
मधुमास से !
!
!
—:: डी के निवातिया ::—